यह श्री रामअवतार स्तुति, भगवान श्री रामचंद्र के इस भूलोक पर आगम की एक सुंदर अनुभूति को दर्शित करती है। श्री रामअवतार स्तुति नवजात शिशु बधाई, सोहर, जन्मदिन जैसे अवसरों पर अत्यधिक लोकप्रिय है। इन स्तुति शब्दों को सुनने के पश्चात प्रभु श्रीराम भक्त कुछ और सुनने की चाह अपने मन से त्याग ही देते है।
छंद:
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला,
कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी,
अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा,
निज आयुध भुजचारी ।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला,
सोभासिंधु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी,
केहि बिधि करूं अनंता ।
माया गुन ग्यानातीत अमाना,
वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर, सब गुन आगर,
जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी,
भयउ प्रगट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया,
रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी, यह उपहासी,
सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना,
चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई,
जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
जानकी स्तुति - भइ प्रगट किशोरी (Janaki Stuti - Bhai Pragat Kishori)
श्री महालक्ष्मी अष्टक (Shri Mahalakshmi Ashtakam)
माता पुनि बोली, सो मति डोली,
तजहु तात यह रूपा ।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना,
होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं,
ते न परहिं भवकूपा ॥
दोहा:
बिप्र धेनु सुर संत हित,
लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु,
माया गुन गो पार ॥
– तुलसीदास रचित, रामचरित मानस, बालकाण्ड-192