हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥
हरि तुम हरो जन की भीर…
भगत कारण रूप नरहरि धर्यो आप शरीर॥
हिरण्यकश्यप मारि लीन्हो धर्यो नाहिन धीर॥
हरि तुम हरो जन की भीर…
बूड़तो गजराज राख्यो कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर चरणकंवल सीर॥
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर॥
मत रोवै ए धौली धौली गाँ - भजन (Mat Rove Aie Dholi Dholi Gay)
श्रीमहालक्ष्मीस्तोत्रम् विष्णुपुराणान्तर्गतम् (Mahalakshmi Stotram From Vishnupuran)
ना जी भर के देखा, ना कुछ बात की - भजन (Na Jee Bhar Ke Dekha Naa Kuch Baat Ki)
Post Views: 161