शब्द ईलोल सागर भाग 2

jambh bhakti logo
शब्द ईलोल सागर भाग 2
शब्द ईलोल सागर भाग 2

             शब्द ईलोल सागर भाग 2

 

वहां से आगे बढ़ने पर एक देश मै, वहां पर सभी भक्तजन अल्पाहार करते हैं । वहां से आगे पंहुचे तो मैंने देखा कि सूर्य की किरणों से रसोई पकती है। उनके पास कुछ ऐसी ही युक्ति थी जिससे अपना भोजन सूर्य से पकाते थे। वहां से आगे बढ़े तब मैने देखा कि पश्चिम में अभिवादन प्रणाली दक्षिण से कुछ भिन्न हो थी। वहां के लोग आपस में मिलते हैं तो एक कहता है तत्व केते दूसरा जवाब देता है अचल एक ही सलाये। इस प्रकार से उनकी प्रणाम करने की शैली श्रवण करके हम लोग उतर की तरफ चले आये।

उतर दिशा में विश्रोई बहुत विराजमान रहते हैं हमारे जैसा ही उनका व्यवहार विवाह उत्सव आदि रीति-रिवाज मैनें देखा। बिना वृषभ के ही यहां गोर्वे ब्याय जाती है. एक बार गऊ दूध देना प्रारम्भ कर देती है तो लगातार देती रहती है। गोवंश की अभिवृद्धि लगातार चलती रहती है। वे गठवें जलपान ज्यादा

करती है। सूखा घास कम खाती है। जल से भरा हुआ हरा घास चरती है, दूध अधिक मात्रा में देती है। वहां के विश्रोई दूध दही घी आदि खाते हैं। जिससे बहुत हो ताकतवर है। शरीर भी उनका हष्ट-पुष्ट है। मन भी शुद्ध पवित्र है,जैसा खावे अन्न वैसो होवे मन। जैसो पौवे पाणी वैसी बोले बाणी। ऐसा ही नियम है।

वहां अन्य कोई राजा नहीं है। घर-घर में ही राजा है। स्वयं ही अपने आप पर संयम रखते हैं। दूसरे शासक को आवश्यकता ही नहीं पड़ती। दूसरों को कर नहीं देते, वहां पर गायें जल में स्नान करती है. बाहर घास चरती है। प्रातःकाल स्नान करके बाहर निकलती है तो वे लोग गायें दूहने के लिए अपने मटके लेकर पंहुच जाते हैं और दूध भरके ले आते हैं। अपनी इच्छानुसार खोर बनाते हैं और खाते हैं।

वहाँ उतर दिशा में बड़े-बड़े कोठे चावलों से भरे रहते हैं। मानों वह देश तो चावलों की खान ही है । जितना चाहे उतना उस देश में उपजता है। वे चावल खाने-पकाने में बड़े ही सुविधाजनक है। थोड़ा सा | भिगोया को गल जाते हैं तब गर्म गर्म खा लेते हैं। यदि ठंडा हो जाये तो सूखकर पत्थर जैसे हो जाते हैं।

वहां से लौटकर वापिस आते समय मुझे श्रीदेवी ने दूसरा लोक दिखाया जिसमें मैनें कद में बहुत हो लम्बे आदमी देखे। वह देश ही लम्बे आदमियों का लम्बक लम्बा था। वे लोग भी विष्णु का भजन कर रहे थे। इन्हों उन्नतीस नियमों का पालन करते थे।

वहां से आगे श्रीदेवी बढ़े तब मैनें जमल देश में गुरुभाई देखे। उस देश में चारों तरफ पर्वत दिखा दे रहे थे। वहां पर चंदन के-को केसर की खेती होती है। वहां के चन्दन की सुगन्ध बहुत दूर तक जाती है। उस सुगन्ध के प्रभाव से अन्य वृक्ष भी सुगन्धित चन्दन को तरह हो जाते हैं।

वहां का धर्म भी भिन्न नहीं था। सभी बाल वृद्ध युवा प्रातः सांय संध्या हवन करते हैं। बिना सात संध्या हवन किये वे लोग भोजन भी नहीं करते हैं। इसी धर्म से ये लोग बैंकष्ठ को पहच जाते हैं। वहाँ के लोग आपस में मिलते हैं तो अभिवादन करते हुए कहते हैं डबाक डरू जवाब मिलता है डबक डरू अब हरूं।

वहां से आगे प्रभुजी मेरे को पूरब ले गये वहां पर मैने एक आश्चर्य देखा- वहां से आगे समुन्द्र से पार ले जाकर श्रीदेव ने मुझे अपनी सृष्टि का खेल दिखाया वहां पर बारहों महीना वृक्षों पर फल फूल रहते हैं। उन मधुर फलों का उपयोग सभी विश्रोई करते हैं। उन वृक्षों में भी कोई कोई वृक्ष ऐसा भी मैने देखा कि वह वृक्ष उगते ही तुरंत फल देना आरम्भ कर देता है। ऐसे वृक्षों में अमृत की धारा प्रवाहित होती है। जो उसे प्राप्त करले वह अजर अमर हो जाता है। ऐसे फल बहां विश्रोई प्राप्त करते हैं।

तेरी अंखिया हैं जादू भरी: भजन (Teri Akhiya Hai Jadu Bhari)

तेरी अंखिया हैं जादू भरी: भजन (Teri Akhiya Hai Jadu Bhari)

एक तमन्ना माँ है मेरी - भजन (Ek Tamanna Ma Hai Meri)

उससे आगे समुन्द्र को लांघकर के पार पहुच गये। वहां पर भी मैने देखा कि लोगों में आपसी प्रेमभाव समता है। दोनों आंखों में कोई भेदभाव नहीं देखता है। सभी अपनी संतान को एक ही भाव से देखते हैं उसी प्रकार से सभी लोगों में एकता दृढ़ता प्रेमभाव मैने देखा। त्रिकटि में ज्योति का दर्शन करते हैं और

आनन्द-मंगल होकर शून्य में विचरण करते हैं ऐसे विश्रोई वहां रहते हैं हे लोगों अधिक क्या कहूँ वहां के लोग बहुत ही अच्छे एवं प्रिय थे। सभी लोग गुरुदेव के बताए हुए नियमों का पालन करते हुए विष्णु महामंत्र का जाप कर रहे थे। उन लोगों में आपस में वाद विवाद, विरोध, काम, क्रोध, लोभ, ईष्या आदि विकार नहीं थे। ये लोग ज्ञानवान, वैराग्यवान, शक्तिमान थे ।

पूर्व में नमन करने का तरीका भी भिन्न था एक कहता जन जदा दूसरा कहता यह नमन उस कायम दायम पैदा करदा उस हाजिर हजूर उत्पति स्थिति संघार करता को इस प्रकार से नमन करते हैं।

जम्भगुरुजी ने उन्हें उपदेश दिया था वही वे लोग पालन करते थे इन चारों दिशाओं में मैनें जो देखा व सुना वह मैनें आप लोगों को बतलाया। अन्य देश भी मैनें अनेक देखा किन्तु मुझे जो स्मरण हुआ था वही मैने आप लोगों को बतलाया है। जहां पर भी हम गये हैं वहीं पर जमाती के लोगों से भेंटवार्ता हुई थी।

इस प्रकार से रणधीर जी ने जमात को अद्भुत ज्ञान सुनाया। जैसा रणधीरजी ने देखा वैसा वर्णन किया।हे वील्हा! मैने भी ये बातें उनसे सुनकर तुम्हें सुनायी है। परम पिता परमात्मा अपनी इच्छा से अनेक रूप रूपाय विष्णवे प्रभ विष्णवे।

श्रीदेवजी ने रणधीर को पुरोहित की उपाधि से विभूषित किया और इस पन्थ को आगे बढ़ाने का कार्यभार सौंपा। रणधीर श्रीदेवी की आज्ञा शिरोधार्य करके अपने कर्तव्य कर्म में संलग्र हुए।

शब्द ईलोल सागर भाग 1

Picture of Sandeep Bishnoi

Sandeep Bishnoi

Leave a Comment