प्रश्न 101. गुरुदेव ! आपने जो अन्न बांटा वो अन्न कहां से लाए ?
उत्तर- रणधीर मुझे कोई भी वस्तु लाने में विचार करने की जरूरत नहीं पड़ती मेरी इच्छा मात्र से तो ब्रह्माण्ड की रचना हो जाती है, मेरी इच्छा मात्र से ही समराथल धोरे पर बाजरे की ढेरी लग गई। सारे लोग उस ढेरी में से बाजरी ले जाने लगे। जिसको घास की आवश्यकता होती वो घास ले जाते अर्थात् मेरे पास अखूट भण्डार है। अन्न, धन, ज्ञान, भक्ति और मोखा, मोह पे राजे पांचू थोका। इण चीजो का भरिया भण्डारा, चाहो सो आवो जम्भद्वारा ।
प्रश्न 102. गुरुदेव ! आपने लोगों को अन्न तो बांटा पर ज्ञान नहीं दिया क्या ?
उत्तर- रणधीर ! जब उन लोगों को अन्न की जरूरत थी तब उन लोगों को अन्न दिया जिससे लोगों का जीवन सुखपूर्वक बीता। जब लोग अकाल की मार से पार हो गये तब उनको ज्ञान के बारे में बताया भूखों को अन्न चाहिए ज्ञान नहीं, ज्ञान तो भूख मिटने के बाद ही समझ में आता है।
प्रश्न 103. गुरुवर ! आपने जब पंथ प्रारम्भ किया उस समय आपने लोगों को क्या उपदेश दिया ?
उत्तर – रणधीर ! उस समय मैंने बीस और नौ नियमों का उपदेश किया जो आप सब लोग मानते है। वे नियम इस प्रकार है-
(1) तीस दिन तक सुतक रखना
(2) पांच दिन ऋतुवन्ती स्त्री को गृहकार्य से पृथक रहना
(3) प्रतिदिन सुबह जल्दी स्नान करना
(4) पूर्ण रूप से शील का पालन करना (एक पति व्रत)
(5) पूर्णरूपेण संतोष रखना
(6) बाहर और भीतर की पवित्रता रखना
(7) दोनों समय सन्ध्या वंदन करना
(8) सांय के समय सब मिलकर आरती, भजन, विष्णु गुणगान, ज्ञान चर्चा आदि करना
(9) निष्ठा और प्रेमपूर्वक प्रातःकाल हवन करना
(10) पानी, ईंधन और दूध को छानकर काम लें लेना
(11) वाणी को छानकर अर्थात सोच-विचार कर बोलना
(12) क्षमा का पालन करना
(13) दया को मन में रखना
(14) चोरी भूलकर भी नहीं करना
(15) किसी की निन्दा न करना
(16) कभी भी झूठ न बोलना
(17) किसी के साथ वाद-विवाद न करना
(18) अमावस्या के दिन व्रत उपवास रखना
(19) हर समय विष्णु का जप करते रहना
(20) जीव मात्र पर दया करना अर्थात् हरे वृक्षों में भी जीव है
(21) काम, क्रोध, लोभ आदि अजरों को जरना रखवाना, बैल को बंध्या न करवाना
(22) भोजन अपने हाथ से बनाना
( 23 ) थाट अमर रखना
(24) अमल (अफीम) न खाना
(25) तबांखू को खाना पीना व सुधंना नहीं
(26) भांग नहीं पीना
(27) मद्यपान नहीं करना
(28) मांस नहीं खाना
(29) नील रंग के वस्त्र न पहनना इन नियमों का पालन करने से ही बिश+नवी अर्थात् बिश्नोई माने गए हैं, यह नामकरण भी इसी आधार पर हुआ है आगे भी लोग इसी नाम से जाने पहचाने जायेंगे।
प्रश्न 104. गुरुदेव ! इन नियमों का पालन करने से क्या मिलेगा ?
उत्तर – रणधीर इन नियमों का पालन करने से जब तक संसार में रहेंगे सुखपूर्वक जीवनयापन होगा और मरने के बाद बैकुण्ठ में जाऐगे।
प्रश्न 105. गुरुदेव ! आगे आपने क्या किया वर्णन करें ?
उत्तर – रणधीर संवत् १५४२ में कार्तिक वदी अष्टमी के दिन पाहल देकर बिश्नोई पंथ प्रारम्भ किया जो आज तक चल रहा है और आगे भी जो श्रद्धापूर्वक बिश्नोई बनना चाहता हो उसको भी पंथ में मिला लेना चाहिए। बिश्नोई पंथ में मिलने पर वो जीव हिंसा नहीं करेंगे।
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प्रश्न 106. गुरुदेव ! जब आपने पंथ प्रारम्भ किया तो सबसे पहले बिश्नोई कौन बना और शर्त क्या रखी ?
उत्तर – रणधीर सबसे पहले पुल्होजी बिश्नोई बने और उन्होंने स्वर्ग दिखलाने की शर्त रखी तब मैंने पुल्होजी को स्वर्ग दिखाकर पंथ प्रारम्भ किया ।
प्रश्न 107. गुरुदेव ! क्या बारह करोड़ जीव सभी मानव के रूप में है ?
उत्तर- रणधीर ! सब जीव मानव योनि में नहीं है सारे जीव अलग-अलग देशों में अलग-अलग योनियों में है और कुछ जीव अभी तक जन्में नहीं है। जब उनका जन्म होगा तब उनको पार करके संसार से वापस बैकुण्ठ चला जाऊंगा।
प्रश्न 108. गुरुदेव ! आपने प्रहलाद पंथी जीवों की खोज कब प्रारम्भ की?
उत्तर – रणधीर ! जिस समय मैंने गौ चारण लीला प्रारम्भ की उसी दिन से जीवों की खोज प्रारम्भ करदी सब से पहले मैं आंख मिचौनी खेल • खेलता हुआ सुतल लोक में राजा बलि के पास चार लाख जीवों का उद्धार किया ।
प्रश्न 109. गुरुदेव ! उन जीवों को कैसे मुक्त करते है ?
उत्तर – रणधीर ! मैं उन जीवों को दर्शन देकर पवित्र करता हूं और जो मानव रूप में है उनको ज्ञान-ध्यान के द्वारा शुभ कर्म करवाकर मुक्त करता हूं।
प्रश्न 110. गुरुदेव ! प्रहलाद पंथी जीव क्या भारत में ही है ?
उत्तर – रणधीर ! प्रहलाद पंथी जीव विश्वभर में है।
प्रश्न 111. गुरुदेव ! आपने अवतार भारत में ही क्यों लिया, प्रहलाद पंथी जीव तो पूरे विश्वभर में है ?
उत्तर – रणधीर ! अवतार तो एक स्थान पर ही लिया जाता है परन्तु कारण अनेकों होते हैं जैसे- प्रहलाद को दिया हुआ वचन, यशोदा व नन्द को दिया हुआ वचन। मैंने इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही यहां पर अवतार लिया।
प्रश्न 112. गुरुदेव ! आप अवतार कब व क्यों लेते है ?
उत्तर- रणधीर ! मेरा अवतार लेने का कारण धर्म की रक्षा व पापियों का नाश करने के लिए होता है। जब जैसी आवश्यकता होती है उसी अनुसार मैं अवतरित होता हूं।
प्रश्न 113. गुरुदेव ! अभी तक आपने कितने अवतार लिये है ?
उत्तर – रणधीर ! पृथ्वी के कणों की गिनती की जा सकती है परन्तु मेरे अवतारों की गणना नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 114. गुरुदेव ! आपके अवतारों में से मुख्य-मुख्य अवतारों को बतलाने की कृपा करें ?
उत्तर – रणधीर मेरे अवतारों को सुन- सबसे पहले मच्छ का अवतार लेकर राजा सत्यव्रत को ज्ञान का उपदेश देकर मुक्त किया। दूसरा कच्छप अवतार लेकर देवताओं की सहायता से अमृत निकाला। तीसरा वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष se पृथ्वी का उद्धार किया। चौथा नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप se प्रहलाद की रक्षा की।
पांचवे वामन अवतार में बलि राजा से तीन पग धरती मांगकर सम्पूर्ण पृथ्वी को ले लिया। छठा परशुराम अवतार लेकर इक्कीस बार पृथ्वी से भार उतारा। सांतवी बार श्रीराम अवतार लेकर रावण का किया। आंठवे श्री कृष्ण अवतार में अनेकों प्रकार की लीलाएं की। नवां बुद्ध अवतार लेकर पांखड का नाश धर्म पर चलने का उपदेश दिया। अब दसवीं बार तेरे सामने जाम्भोजी के रूप में अवतार लेकर आया और धर्म का उपदेश देकर बिश्नोई पंथ चलाया।
प्रश्न 115. गुरुदेव ! आपके अवतार की गणना शास्त्रों में तो नहीं है ?
उत्तर– रणधीर मेरे विषय में मैं स्वयं प्रमाण हूं शास्त्रों की रचना तो आवश्यकता अनुसार में स्वयं करता हूं। मेरे शब्द ही शास्त्रों का सार के संग्रह है।
प्रश्न 116. गुरुदेव ! क्या शब्दावाणी पढ़ने मात्र से पाप मिट जाते है ?
उत्तर– रणधीर ! शब्दवाणी तो जीवन के मल को धोकर जीवों को भवसागर से पार कर देती है।
प्रश्न 117. गुरुदेव ! क्या शब्द हमेशा पढ़ने चाहिए ?
उत्तर– रणधीर शब्दों को हमेशा अवश्य पढ़ने चाहिये जिससे सभी प्रकार के रोग, शोक मिट जाते है। बन्धन कट जाते हैं और आदि-व्यादि का बन्धन भी कट जाता है।
प्रश्न 118. गुरुदेव ! बिश्नोई पंथ चलाने के बाद आपके पास कौन-कौन लोग आते थे ?
उत्तर – रणधीर पंथ चलाने के बाद मेरे पास आने वाले लोगों में शासन करने वाले राजा, राज्यमंत्री, राजसेवक, राजकर्मचारी व्यवसाय करने वाले व्यापारी, धनी–मानी, किसान, पशुपालक, ब्राह्मण, भाट चारण, ज्योतिषी आदि अनेकों लोग अपनी अपनी शंका समाधान करवाने आते थे।
प्रश्न 119. गुरुदेव ! क्या आप उन सबकी शंका दूर करते थे ?
उत्तर – रणधीर शंका की तो बात ही क्या में सभी प्रकार की कामनाएं भी पूरी करता हूं। मेरे दर्शन मात्र से ही अनेकों प्रकार की शंकाओं का समाधान हो जाता है।
प्रश्न 120. गुरुदेव ! लोग विशेषकर क्या चाहते हैं ?
उत्तर – रणधीर ! लोग विशेषकर लौकिक सुख-सुविधाएं चाहते हैं। वे परमार्थ के बारे में तो कुछ जानते ही नहीं है।
प्रश्न 121. गुरुदेव ! आगे आपने किस प्रकार से उपदेश किया सो बताईये ?
उत्तर – रणधीर आगे लोगों ने संस्कार व मन्त्रों के बारे में पूछा उसका उत्तर मैंने इस प्रकार दिया- जब किसी प्रकार के संस्कार की आवश्यकता हो तब यज्ञ करे। यज्ञ के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व के बीच की दिशा) में कलश स्थापित करें और प्रेमपूर्वक शब्दवाणी का पाठ करते हुए यज्ञ में स्वाहा के साथ आहुति दे।
जब यज्ञ की आहुति पूर्ण हो जाये तब कलश की स्थापना करे। एक व्यक्ति का हाथ रखवाकर दूसरा व्यक्ति कलश मंत्र पढ़ते हुए कलश स्थापना करे फिर माला कलश में घुमाते हुए पाहल मंत्र पढ़े। जब पाहल बनकर तैयर हो जाए तब आरती बोलकर पूर्णाहुति लगाकर विष्णुमंत्र बोलते हुए पाहल देना प्रारम्भ दे।
प्रश्न 122. गुरुदेव ! मंत्र कौन-कौन से है ?
उत्तर- रणधीर ! मंत्र निम्न प्रकार से है – कलश पूजा मंत्र, पाहल मंत्र, बालक मंत्र, सुगरा मंत्र, पाहल देने का मंत्र साधु दिक्षा मंत्र, तारक मंत्र, निवण मंत्र और मेरे द्वारा उच्चारित शब्द महामंत्र है। उनमें से किसी भी मंत्र को सिद्ध करके उनका अनुष्ठान करने पर वह अपना प्रभाव दिखाता है।