प्रश्न 123. गुरुदेव ! आपके मंत्र कहां-कहां काम आयेंगे ? रणधीर ! मेरे मंत्र सब प्रकार के दुःख मिटाने के काम आयेंगे।
उत्तर – जैसे- भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी, रोग, शोक, व्याधि, घाटा आदि कोई भी समस्या क्यों न हो मेरे मंत्र सारी समस्याओं को ठीक करते हैं। अतः विश्वासपूर्वक शब्दवाणी का कोई भी शब्द सिद्ध करके प्रयोग में लाने से सहज रूप से कार्य सिद्ध होता है।
प्रश्न 124. गुरुदेव ! आपके मंत्र के बारे में सुनकर लोगों ने क्या जानना चाहा ?
उत्तर – रणधीर ! लोगों ने कलश पूजा व पाहल के बारे में विस्तारपूर्वक जानना चाहा तब मैंने उनको समझाते हुए इस प्रकार कहा – धार्मिक विचार रखने वाले दो आदमी मिलकर कलश स्थापना करे। एक आदमी कलश पर हाथ रखे व दूसरा कलश पूजा मंत्र पढ़े। इन दोनों में से कोई भी व्यक्ति व्यसन करने वाला न हो तथा दोनों ही बिश्नोई जाति के हो।
जो व्यक्ति बिश्नोई नहीं है वे तीनों संस्कार नहीं कर सकते क्योंकि बिश्नोइयों का संस्कार गैर बिश्नोई नहीं कर सकते। यदि कोई करता है तो बिल्कुल गलत व संस्कार का खिलवाड़ माना जायेगा।
प्रश्न 125. गुरुदेव ! विशेषकर संस्कार करने का अधिकार किसको है ?
उत्तर- रणधीर ! संस्कार करने का कार्य मैंने बिश्नोइयों को ही सौंपा है। जो बिश्नोई तीनों संस्कार करता है वह कलश की स्थापना करने से वे थापन कहलाते हैं। जबकि थापन नाम का कोई अलग वर्ण नहीं है। थरपना करने से इनका नाम थापन पड़ गया है पर थापन बिश्नाई ही है।
प्रश्न 126. गुरुदेव ! यदि आगे चलकर थापन संस्कार करना छोड़ दे तो उस समय लोगों का क्या कर्तव्य है ?
उत्तर – रणधीर ! यदि थापन संस्कार करना छोड़ दे तो शुद्ध कोई भी बिश्नोई व्यक्ति सहर्ष पाहल बनाकर के संस्कार कर सकते हैं। विचारवान इस विषय में सबको पूरा अधिकार है पर ध्यान रखने की बात है कि अपने घर में अपने आप संस्कार न करे। बिश्नोई के घर तीनों संस्कार जन्म, विवाह और अन्य बिश्नोई ही करे ओर से न करवाये क्योंकि बिश्नोई को संस्कार करने का पूरा अधिकार है कहने की आवश्यकता ही नहीं है।
जिसके घर में सूतक पातक न हो उससे संस्कार करवाना चाहिए। एक-दूसरे का संस्कार करते हुए संस्कार की परम्परा को कायम रखना जरूरी है क्योंकि संस्कार के बिना व्यक्ति शुद्ध नहीं होता। बिश्नोई विश्व शांति का दूत है। विश्व में शांति स्थापित करने के लिए एकमात्र बिश्नोई ही है जो पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए जीवों की रक्षा करते है।
प्रश्न 127. गुरुदेव ! तीनों संस्कारों के साथ क्या चौथा सुगरा संस्कार भी बिश्नोई कर सकता है ?
उत्तर – रणधीर ! तीन संस्कार तो बिश्नोई कर सकते है पर सुगरा संस्कार तो एकमात्र बिश्नोई संत ही कर सकते है। दूसरों का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि संत मेरा ही रूप है। मेरे और सन्तों में जो चेतन सत्ता है वो एक ही है क्योंकि संत मेरा चिन्तन करने वाले हैं।
जो कोई मेरा चिंतन करता है उनको विशेष अधिकार है। मेरे बाद में इस बिश्नोई समाज के स्वामी केवल संत ही होंगे। दूसरे संतों के सेवक माने जायेंगे। संतों की आज्ञा से समाज की सेवा करेंगे। संतों में स्वार्थ की भावना नहीं होती है इसलिए समाज की नीति का निर्माण संत ही करेंगे। जो नियम संत बना दे उस नियम को समाज अवश्य मानेंगी यह मेरा आदेश है। मेरे बाद एक ऐसा सन्त आयेगा जो नियमों का विस्तार करेगा।
प्रश्न 128. गुरुदेव ! वे सन्त कब आयेंगे ?
उत्तर- रणधीर ! उसका जन्म अब हुआ है पर मेरे परमधाम जाने के कुछ वर्षों बाद समाज की कुरीतियों को मिटाकर मार्ग पर लायेंगे। जो उनकी आज्ञा नहीं मानेंगे उसको मारपीट कर धर्म मार्ग पर लायेंगे। संत जो कुछ करते हैं वह समाज के हित के लिए करते हैं। उनका कोई भी निजी स्वार्थ नहीं होता। समाज का हित ही सन्तों का हित है क्योंकि संत समाज के रखवाले हैं।
प्रश्न 129. गुरुदेव ! कौनसा संस्कार किस समय करवाना चाहिए ?
उत्तर – रणधीर ! जन्म संस्कार बालक के जन्म के तीसवें दिन नशे पते से रहित पवित्र बिश्नोई के द्वारा करवाना चाहिए। सुगरा संस्कार जब बच्चे १०- २० वर्ष के लगभग हो जाये तब योग्य बिश्नोई संत द्वारा करवाना चाहिए। विवाह संस्कार पवित्र बिश्नोई गृहस्थ से ही करवाना चाहिए। अन्य संस्कार भी गृहस्थ बिश्नोई के द्वारा करवाना चाहिए।
प्रश्न 130. गुरुदेव! आपने पुरोहित व काजी को किस उद्देश्य से उपदेश दिया ?
उत्तर- रणधीर । एक दिन बीकानेर का राजा लूणकरण नागौर गया। वहां मोहम्मद खां से बातचीत चली तब लूणकरण ने कहा जाम्भोजी हिन्दुओं के देव है परन्तु मोहम्मद खां ने कहा कि नहीं वो मुसलमानों के पीर है। दोनों ने अपनी-अपनी बात सिद्ध करने के लिए अपने-अपने पुरोहित व काजी को मेरे पास भेजा तब मैंने पुरोहित को पास बिठाकर यह शब्द सुनाया (हिन्दु होय कर हरि क्यूं न जप्यों) अरे भाई हिन्दु होकर विष्णु का जप क्यों नहीं किया।
चलो मन वृन्दावन की ओर - भजन (Chalo Mann Vrindavan Ki Aur)
प्रभु मेरे मन को बना दे शिवाला - भजन (Prabhu Mere Mann Ko Banado Shivalay)
(काय दहदिश दिल पसरायो) क्यों मन को दसों दिशाओं में भटकाया। मन को स्थिर करना था सो तो किया नहीं (सोम अमावस आदितवारी काय काटी बन रायो) और सूर्य-चन्द्रमा के रहते तथा इन दोनों के अभाव में अमावस्या के दिन हरे वृक्ष क्यों काटे (गहण गहतै वहण बहतै निर्जल ग्यारस मूल बहते, काय रे मूखति पालंग सेज निहाल बिछाई) ग्रहण के समय रास्ते में चलते समय, एकादशी के दिन, मूल नक्षत्रों के समय तुमने गृहस्थ व्यवहार क्यों किया (जां दिन तेरे होम न जप न तप न क्रिया) इन दिनों में तो तुम्हें यज्ञ, जप, तप आदि उत्तम क्रिया करनी चाहिये थी।
(जाण के भागी कपिलागाई) शुभ कर्म रूपी कामधेनू गाय को जान-बुझकर घर से निकाल दिया। (कुड़ तणो जे करतब कियो नाते लाव न सायो) झूठ कपट करके उल्टा कर्तव्य किया उसमें लाव साव को नहीं देखा (भूला प्राणी आलबखाणी) भूल में पड़कर व्यर्थ की बातें करता. रहा (न जप्यो सुर राय) देवताओं का स्वामी जो परम पिता परमात्मा है उसका जप नहीं किया (छन्दे कहां तो बहुता भावे) आत्म प्रशंसा हमेशा मीठी लगती है (खरतर को पतियायो) खरी बात को सुनना न चाहा (हिव की बेला हिव न जाग्यो शंक रहयो कदरायो) जगने के समय जगा नहीं मन में शंका को स्थान देकर शंकाकुल होता रहा।
(ठाडी बेला ठार न जाण्यो ताती बेला तायो) बालपन में भगवान की और लगा नहीं और जवानी में सत्य को समझा नहीं। (बिम्बे बेला विष्णु न जप्यो ताछे का चिन्हो कछु कमायो) वृद्धावस्था में भी हरि जप नहीं किया तो समझो कुछ भी जीवनोपयोगी कार्य नहीं किया। (अति आलस भोला वे भूला न चीन्हो सुररायो) आलस्य के कारण भूल कर भी विष्णु का भजन नहीं किया। (पारब्रह्म की शुद्ध न जाणी) परमतत्व को नहीं जाना और न परमात्मा की शुद्ध बुद्ध ली।
(तो नागे जोग न पायो) तो समझो तुम्हारा योग केवल रहने से सिद्ध नहीं होगा। (परशुराम के अर्थ न मुवा) यदि भगवान के अधीन अपना आपा नहीं तो (ताकि निश्चै सरी न कायो) निश्चय ही कार्य सिद्ध नहीं होगा। अतः केवल हिंदू के घर जन्म लेने से क्या होगा कार्य तो सत्य पर चलने से होगा। जसने सत्य को आत्मसात कर लिया वह ही हिन्दू है और मैं उसका देवता हूं।
प्रश्न 135. गुरुदेव ! पुरोहित को उपदेश देने के बाद आपने क्या किया?
उत्तर – रणधीर ! पुरोहित को समझाकर काजी को उपदेश दिया (सुणरे काजी सुण रे मुल्ला) हे काजी कर्तव्य की बात सुन अरे ! मुल्ला बात को ध्यान देकर सुन (सुणरे बकर कसाई) बकरों को मारने वाले मेरी बात सुन (किरणी थरपी छाली रोसो) किसकी उत्पन्न की हुई बकरी को रोसते हो (किणरी गाडर गाई) इन सभी भेड़, बकरी, गायों को उत्पन्न करने वाला कौन है (सुल चुभीजे करके दुहैली) अरे कांटा चुभने पर भी बड़ा भारी दर्द होता है।
प्रश्न 136. प्रभु ! जाट ने आकर क्या कहा ?
उत्तर– रणधीर ! एक दिन शोभाराम नाम का एक जाट आया और बोला- आप विष्णु जप करने के लिए कहते है परन्तु जप नहीं करने पर क्या हानि होगी। मैं भोपों को दान देता व भूतों का जप करता हूं। तब मैंने उससे यह शब्द सुनाया – ( काय रे मुर्खा ते जन्म गुमायो भूय भारी ले भारु) अरे मूर्ख तुमने तो जन्म व्यर्थ खो दिया। जीवत रहने तक पृथ्वी को अपने पाप से भार ही मारा।
(जा दिन तेरे होम नै जप नै तप नै किरिया) जिस दिन तुमने यज्ञ, जप, तप, कारण क्रिया का पालन नहीं किया और (गुरु न चीन्हो पंथ न पायो अहल गई जमवारु) गुरु को नहीं पहचाना पंथ को प्राप्त नहीं किया उस दिन तेरा जन्म व्यर्थ ही गया (ताती बेला ताव न जाग्यो) युवा अवस्था में जगकर धर्म कर्म नहीं किया।
(ठाडी बेला ठारु) प्रोढ़ अवस्था में भी धर्म कार्य नहीं किया। (बिम्बै बैला विष्णु न जप्यों) वृद्धावस्था में भी सन्तोषपूर्वक बैठ कर विष्णु का जप नहीं किया (तातै बहुत भई कसवारु) इसलिए बहुत बड़ी हानि होगी और कष्ट उठाना पड़ेगा।
(खरी न खाटी देह बिणाठी) सत्य को तो समझा नहीं शरीर नष्ट हो गया क्योंकि (थिर न पवणा पारु) पवन, पानी आदि कुछ भी स्थिर रहने वाला नहीं है। (अहनिश आव घटती जावै) दिन-रात करके आयु घट रही है। (तेरे स्वास सब ही कसवारू) तेरे सारे श्वास व्यर्थ जा रहे है। (जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों ते नगरे कीर कहारू) जिस मानव ने विष्णु मंत्र का जप नहीं किया वे नगरों में नौकर बनकर पानी भरेंगे।
(जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों कांध सहै दुःख भारू) जो जीव नर तन धारण करके विष्णु का जप नहीं करता वह दूसरे जन्म में कन्धे पर भार का दुःख सहन करेगा। (जा जन मंत्र विष्णु न जंप्यो ते घण तण करै अहारु) जिस किसी ने मानव बनकर विष्णु मंत्र का जप नहीं किया उसको अधिक आहार करने वाला जन्म मिलेगा, जिसका कभी भी पेट नहीं भर पायेगा। (जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों ताको लोही मांस बिकारु) जिसने विष्णु मंत्र का जप नहीं किया उसके शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां होगी।
(जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों गावे गाडर सहरे सुवर जन्म-जन्म अवतारू) जिसने मानव बनकर विष्णु का जप नहीं किया उस जीव को गांवों में जन्म लिया तो भेड़ का और शहरों में जन्म होगा तो सुवर का (जा जन मंत्र विष्णु न जप्यो ओडा के घर पोहण होयसी पीठ सहै दुःख भारू) जिस जीव ने विष्णु नाम का जप नहीं किया उसको ओडों (कुम्हारों) के घर में जन्म मिलेगा जो पीठ पर हमेशा भार लदा ही रहेगा।
(जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों राने बासो मौनी वैसे दूकै सूर सवारू) विष्णु नाम का जप न करने से अगले जन्म में सफेद डोढ़ की योनि मिलेगी। वो प्रातःकाल गंदगी पर चोंच मारेगा। (जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों ते अचल उठावत भारू) जिसने विष्णु का जप नहीं किया उस जीव को अचल भार वहन करना पड़ेगा।
(जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों ते न उतरिबा पारू) जो कोई भी जीव मानव जीवन में आकर विष्णु के नाम का जप नहीं करेगा तो संसार सागर से पार नहीं हो सकता। (जा जन मंत्र विष्णु न जप्यों ते नर दौरे धुप अधारु) विष्णु के जप के बिना अन्धकारमय नरकों में गिरेगा (ताते तंत न मंत न जड़ी न बूटी उंडी पड़ी पहारू) विष्णु जप के बिना तंत्र मंत्र जड़ी बूंटी कोई भी काम नहीं आऐंगे।
मानव तन से दूर पड़ जाऐंगे। (विष्णु न दोष किसो रे प्राणी तेरी करणी का उपकारू) इसमें विष्णु भगवान का क्या दोष है। अपनी करणी का ही फल मिलता है। अतः हे शोभाराम ! तेरा जप तप सेवा पूजा सब तामसी है इसलिए तामसी पूजा नरक में ही ले जाएगी। परम पद चाहता है तो मन लगाकर विष्णु मंत्र का जप कर |