श्री तुलसी स्तुति (Shri Tulsi Stuti)
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे । नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥ १॥ मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि । आधिव्याधिहरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम् ॥ २॥ यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्मध्ये
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे । नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥ १॥ मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि । आधिव्याधिहरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम् ॥ २॥ यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्मध्ये
॥ श्रीतुलसीषोडशकनामस्तोत्रं नामावलिश्च ॥ तुलसी श्रीमहालक्ष्मीः विद्याऽविद्या यशस्विनी । धर्म्या धर्मावनासक्ता पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥ लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला । षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयेन्नरः । लभते
वृंदा, वृन्दावनी, विश्वपुजिता, विश्वपावनी । पुष्पसारा, नंदिनी च तुलसी, कृष्णजीवनी ॥ एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम । य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत
प्रज्ञानं ब्रह्म जिसका शाब्दिक अर्थ है ज्ञान ही ब्रह्म है। यह भारत के पुरातन हिंदू शास्त्र ‘ऋग्वेद’ का ‘महावाक्य’ है चार वेदों में एक-एक महावाक्य
ॐ प्रकृत्यै नमः ॥ ॐ विकृत्यै नमः ॥ ॐ विद्यायै नमः ॥ ॐ सर्वभूतहितप्रदायै नमः ॥ ॐ श्रद्धायै नमः ॥ ॐ विभूत्यै नमः ॥ ॐ
॥ अथ श्रीलक्ष्मीसहस्रनामावलिः ॥ ॐ नित्यागतायै नमः । ॐ अनन्तनित्यायै नमः । ॐ नन्दिन्यै नमः । ॐ जनरञ्जिन्यै नमः । ॐ नित्यप्रकाशिन्यै नमः । ॐ
ॐ भैरवाय नमः ॐ भूतनाथाय नमः ॐ भूतात्मने नमः ॐ भूतभावनाय नमः ॐ क्षेत्रज्ञाय नमः ॐ क्षेत्रपालाय नमः ॐ क्षेत्रदाय नमः ॐ क्षत्रियाय नमः ॐ
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