मंत्र: अलसस्य कुतः विद्या (Alasasya Kutah Vidya)
अलसस्य कुतः विद्या, अविद्यस्य कुतः धनम्। अधनस्य कुतः मित्रम्अ, मित्रस्य कुतः सुखम् ॥ हिन्दी भावार्थ: आलसी इन्सान को विद्या कहाँ। विद्याविहीन/अनपढ़/मूर्ख को धन कहाँ। धनविहीन/निर्धन
अलसस्य कुतः विद्या, अविद्यस्य कुतः धनम्। अधनस्य कुतः मित्रम्अ, मित्रस्य कुतः सुखम् ॥ हिन्दी भावार्थ: आलसी इन्सान को विद्या कहाँ। विद्याविहीन/अनपढ़/मूर्ख को धन कहाँ। धनविहीन/निर्धन
सम्पूर्ण प्रातः स्मरण, जो कि दैनिक उपासना से उदधृत है, आप सभी इसे अपने जीवन में उतारें एवं अपने अनुजो को भी इससे अवगत कराएं।
ब्रह्म लोके च ये सर्पाः शेषनागाः पुरोगमाः । नमोऽस्तु तेभ्यः सुप्रीताः प्रसन्नाः सन्तु मे सदा ॥१॥ विष्णु लोके च ये सर्पाः वासुकि प्रमुखाश्चये । नमोऽस्तु
अयमात्मा ब्रह्म भारत के पुरातन हिंदू शास्त्रों व उपनिषदों में वर्णित महावाक्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है यह आत्मा ब्रह्म है। उस स्वप्रकाशित प्रत्यक्ष शरीर
संसार – दावानल – लीढ – लोक – त्राणाय कारुण्य – घनाघनत्वम् । प्राप्तस्य कल्याण – गुणार्णवस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ॥ 1 महाप्रभोः कीर्तन –
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च । नमः स्वाहायै स्वाधायै नित्यमेव नमो नमः ॥ ॐ पितृभ्यो नमः ॥
अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य का शाब्दिक अर्थ है मैं ब्रह्म हूँ, यहाँ ‘अस्मि’ शब्द से ब्रह्म और जीव की एकता का बोध होता है। जब जीव
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