
हरि कर दीपक, बजावें संख सुरपति: आरती (Hari Kar Deepak Bajave Shankh Surpati)
हरि कर दीपक, बजावें संख सुरपति, गनपति झाँझ, भैरों झालर झरत हैं । नारदके कर बीन, सारदा गावत जस, चारिमुख चारि वेद, बिधि उचरत हैं
हरि कर दीपक, बजावें संख सुरपति, गनपति झाँझ, भैरों झालर झरत हैं । नारदके कर बीन, सारदा गावत जस, चारिमुख चारि वेद, बिधि उचरत हैं
ओम अनेक बार बोल, प्रेम के प्रयोगी। है यही अनादि नाद, निर्विकल्प निर्विवाद। भूलते न पूज्यपाद, वीतराग योगी। ॥ ओम अनेक बार बोल..॥ वेद को
हरी दर्शन की प्यासी अखियाँ अखियाँ हरी दर्शन की प्यासी ॥ देखियो चाहत कमल नैन को, निसदिन रहेत उदासी, अखियाँ हरी दर्शन की प्यासी ॥
भगवान मेरी नैया, उस पार लगा देना, अब तक तो निभाया है, आगे भी निभा देना ॥ हम दीन दुखी निर्बल, नित नाम रहे प्रतिपल,
सखी री बांके बिहारी से हमारी लड़ गयी अंखियाँ । बचायी थी बहुत लेकिन निगोड़ी लड़ गयी अखियाँ ॥ ना जाने क्या किया जादू यह
ये माया तेरी, बहुत कठिन है राम रक्त माँस हङ्ङी के ढेर पर, मढा हुआ है चाम, देख उसी की सुन्दरता, हो जाती निंद हराम,
* त्राता: का अर्थ, वह जो त्राण करता हो, रक्षा करने वाला व्यक्ति। कुछ जगहों पर त्राता की जगह दाता प्रयोग में लाया गया है।