रोम रोम में बसा हुआ है,
एक उसी का नाम,
तू जपले राम राम राम,
तू भजले राम राम राम,
रोम रोम में बसा हुआ हैं ॥
लोभ और अभिमान छोड़िए,
छोड़ जगत की माया,
मन की आँखे खोल देख,
कण कण में वही समाया,
जहाँ झुकाए सर तू अपना,
वही पे उनका धाम,
तू जपले राम राम राम,
तू भजले राम राम राम,
रोम रोम में बसा हुआ हैं ॥
ये मत सोच जहाँ मंदिर है,
वही पे दीप जलेंगे,
जहाँ पुकारेगा तू उनको,
वही पे राम मिलेंगे,
दर दर भटक रहा क्यों प्राणी,
उन्ही का दामन थाम,
तू जपले राम राम राम,
तू भजले राम राम राम,
रोम रोम में बसा हुआ हैं ॥
ये संसार के नर और नारी,
देवी देवता सारे,
नहीं चला है कोई यहाँ पे,
उनके बिना इशारे,
वो चाहे सूरज निकले,
वो चाहे तो ढलती शाम,
तू जपले राम राम राम,
तू भजले राम राम राम,
रोम रोम में बसा हुआ हैं ॥
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 11 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 11)
लोरी सुनाए गौरा मैया: भजन (Lori Sunaye Gaura Maiya)
मेरा श्याम बड़ा अलबेला - भजन (Mera Shyam Bada Albela)
रोम रोम में बसा हुआ है,
एक उसी का नाम,
तू जपले राम राम राम,
तू भजले राम राम राम,
रोम रोम में बसा हुआ हैं ॥