नदी को भारत मे माँ का सम्मान दिया गया है, तथा नर्मदा नदी को माँ रेवा के रूप में भी जाना जाता है। यह मध्य-भारत की जीवनरेखा की तरह है। नर्मदा का निर्मल पानी एवं उसके कल-कल करते बहते पानी को शब्दों मे पिरोह कर एक बहुत ही सुंदर गीत निर्मित किया गया है।
इस गीत को नर्मदा घाटी के किनारे की संस्कृति में रचे-बसे लोग प्रायः गाते ही हैं, तथा यह नदियों पर लिखे गए गीतों में बहुत अधिक गाया जाने वाला गीत भी है।
माँ रेवा थारो पानी निर्मल,
खलखल बहतो जायो रे..
माँ रेवा !
अमरकंठ से निकली है रेवा,
जन-जन कर गयो भाड़ी सेवा..
सेवा से सब पावे मेवा,
ये वेद पुराण बतायो रे !
माँ रेवा थारो पानी निर्मल,
खलखल बहतो जायो रे..
माँ रेवा !
श्री झूलेलाल चालीसा (Shri Jhulelal Chalisa)
बााबा नेने चलियौ हमरो अपन नगरी - भजन (Baba Nene Chaliyo Hamaro Apan Nagari)
आयो आयो रे शिवरात्रि त्योहार - भजन (Aayo Aayo Re Shivratri Tyohaar)
Maa Rewa | Indian Ocean | Kandisa