नौरंगी को भात भरना

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नौरंगी को भात भरना
नौरंगी को भात भरना
नौरंगी को भात भरना

  नाथोजी उवाचः- हे वील्ह। एक समय सम्भराथल पर श्रीदेवी विराजमान थे। उनको रोमांचित देखकर हम लोगों ने पूछा हे देवजी। आज किस जीव के भाग खुले हैं? सदा ही आनन्द में रहने वाले श्रीदेवी ने बतलाया- रोट्र गांव में एक भक्तिमती उमा नाम की बेटी रहती है। वह भादू गोत्र की है झोदकणा गोत्र में उसका विवाह हुआ है।

उसकी दो कन्याएं हैं वे बड़ी हुई विवाह लायक हुई तो उन्होंें उनका विवाह करने की तैयारी कर ली है इस समय वह उमा अपने पीहर गयी है वहां पर अपने पिता चाचा, ताउ, भाइयों को विवाह में आने का निमंत्रण देने गयी है। उमा बतीसी लेकर विधि विधान में निमंत्रण देने पहुंची है। किन्तु उनके कटुम्बी भादू जनों ने निमंत्रण-बतीसी लेने से इनकार कर दिया है।      

उन्होंने कहा कि-तू तो हमें क्या समझती है जाम्भोजी की भक्त बनी है। वो ही तुम्हारा भात भरेंगे,वहां जाम्भोजी के पास निमंत्रण देने क्यों नहीं गयी? यहां पर ही क्यों आ गयी। हमारे पास पहले तो कभी नहीं आयी थी, अब गरज पड़ी तो कैसे आ गयी?

जिसकी तूं चेली बनी है वही तुम्हारा भात भी भरेंगे इस प्रकार से व्यंग्य वचन कहे अपने प्रिय भ्राता, माता-पिता बन्धुओं से ऐसे अप्रिय वचन सुनकर वह बेचारी वापिस आ गयी। अब तो उसे मेरे सिवाय अन्य काई भाई बन्धु आदि दिखाई नहीं दे रहे हैं जो विवाह में सम्मिलित हो सके और भात भर सके।    

इतना ही नहीं उमा जल लेने कूवे पर गयी थी वहां पर भी अन्य महिलाए उमा से कहने लगी-हे उमा!क्या अपने भाईयों को निमंत्रण दे आयी ! वे तो अवश्य ही बहुत सारा भात भरेंगे, तुम्हारा विवाह का खर्चा सभी पूरा हो जायेगा, उसमें तो बच भी जायेगा तीसरी सखी ने कहा- हे उमा! जल्दी जल लेकर घर पंहुचो, भात लेकर तुम्हारे भाई आ गये होंगे।

उनका स्वागत कौन करेगा? चौथी सखी बोली- इसके चाचा बाबा भाई आदि तो अवश्य ही होंगे, या नहीं? इसका कोई सगा भाई होगा तो अवश्य ही भात भरेगा।    

उमा कहने लगी- हे सखियों! यदि मेरे कोई भात भरने वाला हो तो आप लोग इस प्रकार की व्यंग्य वाणे- मौसा नहीं मारती, ये टेढ़ी बातें नहीं करती। तुम्हें मालूम है कि मेरे भाईयों-कुटुम्बियों ने भात भरना स्वीकार नहीं किया है। आप लोग इस प्रकार से जले पर नमक न छिड़को। मेरे माता पिता भाई बन्धु गुरु स्वामी, सभी कुछ जाम्भोजी ही है। मैनें तो उनकी ही शरण ग्रहण कर ली है।

अब तो मेरी लज्जा उनके ही हाथ में है। इस प्रकार से विलाप करती हुई उमा जल का घड़ा लेकर लौट आयी, अपने कार्य में संलग्न हो गयी। वे अन्तर्यामी मेरी लाज रखेंगे।    

श्री जांभोजी ने साथरियों से कहा- हे भक्तों !अतिशीघ्र ही रोटू चलना है तैयारी करो। उमा की बेटियों का विवाह तो परसों ही है। कल ही हमें रोटू पंहुचना होगा।    

रणधीरजी ने पूछा- हे देव! आपके पास उमा का निमंत्रण पत्र आया है क्या? श्री देवजी ने कहा- उमा के हृदय की करूणा की पुकार मैं सुन रहा हूं, यह निमंत्रण सर्वोतम है। बाह्य चिट्ठी तो लोक व्यवहार की भाषा है। मैं प्रेम की भाषा जानता हूं, तुम लोग स्थूल भाषा का अर्थ समझते हो। हे रणधीर! यह समय शका समाधान का नहीं है।

प्रात:काल ही अपने साथरियों को लेकर चलो, सांयकाल में रोटू पंहुचना है वहा पर राजा लोग भी उपस्थित होंगे मैनें उनको निमंत्रण भेज दिया है। जिस बेटी ने मुझे ही सर्वस्व मान लिए शरणागत प्राप्त हो गयी है तो उसकी लज्जा अपने ही हाथो में है। उमा को ऐसा दिव्य भात भरना है जो अब तक किसी ने भी नहीं भरा है।  

हे विल्ह। नौरगी की बेटियों का विवाह अक्षय तृतीया-आखातीज को था। दूज की शाम को रोटू गांव की सीमा में अनेकों तम्बू तन गये और राजा लोग अपने अपने सैनिक उमराओं के साथ रोट गांव में पंहुच चके थे। गांव के लोगों ने अपने ही खेतों में तम्बू तने हुए देखे तो आश्चर्यचकित हुए और कहने लगे-  यह क्या हो रहा है? क्या कोई राजा की सेना दूसरे राज्य पर चढ़ाई करने जा रही है।

इतने में ही एक व्यक्ति आया कहने लगा- साथरी पर गुरु जांभोजी आ चुके है। उमा ने सुना कि स्वयं त्रिलोकीनाथ मेरी प्रार्थना सुनकर आये हैं। मैं धन्य हो गयो, मेरा जीवन सफल हो गया, अब मुझे किसी बात की चिंता नहीं है। अक्षय तृतीया के अवसर पर श्री जाम्भोजी उमा का भात भरने के लिए अनेक भक्तों के साथ रोटू गांव के बीच में पंहुचे।

रथ से नीचे उतरने लगे तभी उनके एक पैर की एडी पत्थर पर टिकी थी वही पत्थर पर चरण चिन्ह अंकित हो गया था।  

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चौकी बिछाकर भात भरने के लिए श्रीदेवजी उच्च आसन पर विराजमान हुए अन्य लोग भी यथास्थान विराजमान हुए। उमादेवी थाल में तिलक आदि का सामान सजाकर उपस्थित हुई। सर्वप्रथम श्रीदेवजी की आरती उतारी। श्रीदेवी ने उमा को उपहार में नौरंगी चीर ओढ़ाया. तभी से ही उमा का नाम नौरंगी पड़ गया। यह विचित्र नौ रंगों से रंगा हुआ द्वारा निर्मित था।    

देवजी के साथ अन्य लोग भी उमा के लिए भाई बन्धु बनकर आये थे उनको भी तिलक देकर विजयी होने की कामना उमा बहन ने की। सभी ने अपनी अपनी योग्यतानुसार भेंट प्रदान की। उमा का थाल भर गया था एवं सभी भण्डार भी भर गये थे।    

श्रीदेवजी भात भरने को आये हैं, आज तो जो कुछ भी किसी को चाहिये वही मिलेगा सम्पूर्ण गांव के लोगों को यथा योग्यतानुसार रूपये हीरे, वस्त्रादिक से भण्डार भर दिये। श्रीदेवजी ने कहा- यहां हमारे दरबार में आया हुआ कोई खाली नहीं जायेगा। जो कुछ जितना जिसको चाहिये उतना दिया जायेगा। श्रीदेवी के हाथों से प्रसाद लेकर रोटू गांव के छोटे बड़े, वृद्ध, स्त्री-पुरूप सभी आनन्दित हुए।    

साथ में आए हुए जोधपुर नरेश राव मालदेव ने कहा हे देव! आप सम्पूर्ण सम्पति इस गांव के लोगों को लुटा रहे हैं। हम भी तो आपके साथ हैं, इन गांव वासियों ने सेवा चाकरी अच्छी की है। यह सभी आपकी ही कृपा का फल है। हमारे पास तम्बू ज्यादा नहीं है। हमारे सैनिक हाथी घोड़े आदि धूप में हैं उनके लिए यहां छाया कुछ भी नहीं है यहां इस गांव की सीमा में एक भी वृक्ष नहीं है।

छाया के अभाव में सभी बेहाल है। कुछ उपाय बतलाइये।    श्रीदेवी ने जिस प्रकार से वस्त्र आकाश मार्ग से उतारे थे, उसी प्रकार से सभी के देखते देखते खेजड़ी के तीन हजार सात सौ पेड़ गौलोक से मंगवाये जहां जहां पर वृक्षों का अभाव था वहीं वहीं पर रोप दी सामान्य खेजड़ी को तो बड़ी होने में समय लगता है किन्तु वे बढ़ी हुई तैयार, गहरी छाया वाली, गो लोक की तुलसी ही थी।

लोगों ने देखा कि एक ही रात्रि में रोटू की सीमा में बाग लग गया, हर्ष की लहर फैल गयी।   रोटू गांव के कुछ लोग श्री जाम्भोजी के पास आये और कहने लगे हे महाराज! आपने खेजड़ियों का ता बाग लगा दिया किन्तु हमारे लिए एक भारी समस्या पैदा कर दी है। प्रथम तो इन खेजड़ियों के नीचे बाजारा, मोठ तिल आदि अनाज ही नहीं जम पावेगा क्योंकि बड़े पेड़ के नीचे छोटा पेड़ ही नहीं पनप सकेगा और यदि अनाज भी हो गया तो चिड़िया इन पेड़ों पर बैठेगी।

हमारा अनाज तो ये खा ही जारी हमारा परिश्रम तो व्यर्थ ही चला जायेगा। हमें भूखा मरना पड़ेगा, यह तो अपने हमारी समझ में अच्छा नहीं किया।   जाम्भोजी ने समझाते हए कहा- आप लोग चिंता न करो, इन खेजड़ियों के नीचे अन्य जगह से कहीं अधिक ही पैदा होगा। ये खेजडियां तम्हारे अन्न के लिए खाद पैदा करेगी।

इनके पते झड़ेंगे पशु पक्षी इनके नीचे उपर विश्राम करेंगे उनके गोबर की खाद बनेगी। ये वृक्ष भूमि में नमी बनाये रखेंगे। स्वयं तो उपरका जल ग्रहण नहीं करेंगे तुम्हारी फसलें जो ग्रहण करती है नीचे पाताल का जल इनकी जड़ें खीचेंगी और भनि को जलयुक्त बनाये रखेगी। ये वृक्ष तुम्हारे लिये वर्षा लायेंगे यह हराभरा बाग बादलों को खींच कर ले आयेगा। वर्षा करवा देगा। जिससे तुम्हारे अकाल कभी नहीं पड़ेगा, सदा खुशियाली हरियाली बने रहेगी। इसलिए इन परोपकारी स्वर्ग से आये हुए वृक्षों को काटना नहीं।    

आप लोग यह कहते हैं कि चिड़िया खेत चुग जायेगी, यह भी आपका कहना ठीक नहीं है। श्रीदेवजी ने कहा- मैं चिड़िया को कह देता हूं ये तुम्हारे खेत का अनाज नहीं खायेगी। रात्रि विश्राम तुम्हारे इन पेड़ों पर करेगी किन्तु दाना चुगने अन्यत्र तुम्हारी सीमा से बाहर जायेगी। जब तक तुम लोग अपने नियमों का पालन करते रहोगे तब तक ये चिड़िया भी अपने नियम पर अडिग रहेगी।    

नाथोजी उवाच:- हे वील्ह! इस प्रकार से चिड़िया को श्रीदेवी ने आदेश दिया, उन अज्ञानी चिड़ियों ने उनके आदेश को माना है वे तो श्रीदेवजी की मर्यादा का उल्लंघन नहीं कर रही है किन्तु मानव को देखो, वह शास्त्र मर्यादा का उल्लंघन करने जा रहा है। मैं तुझे कहाँ तक कहूं, जाम्भोजी के शिष्य विश्नोई भी नियमों में ढील दे रहे हैं।    

हे वील्ह! हम तुम पढ़ लिखकर विद्वान हो गये हैं, जाम्भोजी की कृपा तुम्हारे पर असीम है। मैं तुम्हारे अन्दर वह अपार शक्ति को देख रहा हूं। जिसके द्वारा तुम इस पंथ के रक्षक के रूप में उभर सकते हो।    

मैने तुझे अबाध गति से जाम्भोजी की लीला सुनाई है। अग आगे कुछ विशेष लीला मैं तुम्हें सुनाउंगा। रोटू गांव के लोगों एवं नौरंगी को प्रसन्न करके श्री देवजी वापिस अपने शिष्यों के साथ सम्भराथल लौट आये। राजा प्रजा लोग वापिस पुण्य कार्य करके चले गये नौरंगी ने भगवान का स्मरण अनन्य भाव से किया था जिसका फल श्रीदेवी ने योगक्षेम के रूप में दिया था। अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति योग कहा जाता है और प्राप्त की रक्षा करना क्षेम कहा जाता है।  

Sandeep Bishnoi

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