दूषित वातावरण समराथल का
दिनों दिन बढ़ती हुई जनसंख्या तथा वाहनों का साधन जो वातावरण को दूषित करने में अपनी मुख्य भूमिका निभाते हैं। यह बड़े-बड़े शहरों से धीरे-धीरे ग्रामों की तरफ भी बढ़ रहा है।
इसके घातक परिणाम से पवित्र दिव्य देव भूमि सम्भराथल भी वंचित नहीं रहा है। आवागमन के साधन बढ़ जाने से मेला भी दिनोंदिन बढ़ोतरी को ही प्राप्त होता जा रहा है। वैसे हमारे पूर्वजों ने मेला मुकाम में ही लगाया था।
सम्भराथल को शुद्ध रखने की कोशिश की थी किन्तु इस समय यह परम्परा टूट रही है। जब मुकाम यात्रियों को ठहरने की जगह नहीं मिल पाती तो अपने वाहनों सहित सम्भराथल पर आकर डेरा जमा लेते हैं। यहां पर भी मेले के ठहरने की इतनी जगह नहीं होने से एक तो भीड़ बहुत बढ़ जाती है,
दूसरी बात सबसे घातक यह होता है कि सभी आये हुए यात्री जिनमें बूढ़े-बच्चे आलसी आदि सभी तरह के होते हैं वे मलमूत्र त्याग के लिये दूर तो जा नहीं सकते, वहीं पर गन्दगी फैलाते हैं। यदि इसी प्रकार यह प्रदूषण बढ़ता गया तो सम्भराथल वह पवित्र स्थान न रहकर अन्य सामान्य जगह से भी घटिया स्तर का हो जायेगा जैसा कि अन्य मेलों में देखा जाता है।
जिस भावना से श्रद्धालुजन यहां पर पहुंचते हैं, उस भावना को ठेस पहुंचेगी तथा तीर्थ का महत्त्व घट जायेगा फिर आने वाला वहां क्यों आयेगा। इस समय तो लोग हजारों कोस से पैदल चलकर तीर्थ यात्रा करते हैं किन्तु यहां पर मुकाम से सम्भराथल कितना दूर है परन्तु बिना सवारी जाना लोग पसन्द नहीं करते। मेले के मौके पर भी सवारी से जाने की कोशिश करेंगे। उससे पर्यावरण दूषित होता है, ध्वनि प्रदूषण तथा धुएं का प्रदूषण दोनों ही हानिकारक होते हैं।
सम्भराथल सर्वोच्च शिखर स्थल है। जहां पर से दृष्टि अबाध गति से दृश्य का अवलोकन कर सकती है। उसी शिखर पर ही मन्दिर का निर्माण होने से वहां सदा ही वर्षा तथा आंधी से खतरा बना रहता हैं। इसका कोई स्थायी हल अब तक नहीं खोज पाये हैं। महासभा इस तरफ समुचित ध्यान भी नहीं दे रही है। इन्हीं वर्षा तथा हवा का क्या अनुमान लगा सकते हैं और यदि कभी इसी प्रकार का तूफान या अधिक वर्षा हुई तो फिर भगवान ही रक्षक है।
न तो संतों के पास उस मन्दिर तथा टीबे की रक्षा का उपाय है और न ही महासभा के पास। इसलिये यदि सम्भराथल की रक्षा करनी है तो इस ओर समुचित ध्यान देकर कोई स्थायी हल ढूंढ़ना होगा अन्यथा इस सर्वोच्च स्थल की रक्षा हम नहीं कर पायेंगे। इसकी पवित्रता की रक्षा नहीं कर पाये तो हमें हमारे पूर्वज तथा गुरु जम्भेश्वर जी कभी भी माफ नहीं करेंगे हम अपने ही हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। सभी लोग देखते हुए भी अचेत होकर कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं।
चली जा रही है उमर धीरे धीरे - भजन (Chali Ja Rahi Hai Umar Dheere Dheere)
आरती: ॐ जय महावीर प्रभु (Om Jai Mahavir Prabhu)
गुरु आसन समराथल भाग 3 ( Samarathal Dhora )
यहां तक जो कुछ मैनें अपनी आंखों से देखा है अनुभव किया है, वह तथा जो जाम्भाणी साहित्य में पढ़ा तथा श्रवण किया है वही कुछ अपनी भाषा में लिख दिया गया है। जो कुछ भी कहा गया है, इतना ही नहीं है इससे आगे भी बहुत कुछ है, जो कहा जा सकता है वह मैं नहीं लिख पाया। इसलिये इससे आगे का विचार मैं पाठकों पर ही छोड़ रहा हूं।
मैनें तो केवल विषय प्रवेश ही कराया है, विस्तार के लिये आपकी अपनी बुद्धि पर ही निर्भर रहकर विचार कीजिये और साहित्य का आनन्द लीजिये। सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर अद्यपर्यन्त जो कुछ भी सम्भराथल के सम्बन्ध में मेरी समझ में आया, वही मैंने लिखने का प्रयास किया है। आगे भविष्य की तो अब भगवान ही जाने कि क्या होने वाला है। उसके बारे में कहना किसी के वश की बात नहीं है।
★ कवित्त *
आदि अनादि युगादि को योगी, लोहट घर अवतार लियो है।
धनही धन भाग बड़ो, जिन हांसल को हरि मात कह्यो है।
होत उजास प्रकाश भयो, जैसे रैन घटी अरू भोर भया है।
कोटि द्वादश काज के तांही, केशवदास भणे संभराथल आय रह्यो है।
समराथल कथा आपको कैसी लगी अगर अच्छी लगी है तो आप इसे आगे शेयर जरुर करे धन्यवाद।ऐसी पोस्ट आपको ओर भी इस वेबसाइट पर मिलेगी धन्यवाद।। www.JambhBhakti.com