★ आधुनिककालीन समराथल धोरा ★ Aaj Ka Samarathal Dhora

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            ★ आधुनिककालीन समराथल धोरा ★ Aaj Ka Samarathal Dhora

            ★ आधुनिककालीन समराथल धोरा ★ Aaj Ka Samarathal Dhora
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कभी वह युग था जब सम्भराथल पर जल भी उपलब्ध नहीं होता था। यदि कोई वहां की शून्यता को भंग करता था तो वहां के वन्य हिरण पक्षी, भेड़िया या फिर वर्षा काल में ग्वाले गऊवें इत्यादि ही कभी-कभी वहां आकर अपनी ध्वनि से गुंजायमान उस स्थल को करते थे किन्तु इस समय जल के लिए कुआं खुद चुका है तथा कुण्ड सदा ही जल से भरे हुए रहते हैं। वहीं पर से आसपास के गांव पानी पीते हैं तथा उसी जंगल के सम्पूर्ण पशु पक्षी भी वहीं आकर जल तथा अन्न ग्रहण करते हैं। आगन्तुक यात्रियों के लिये ठहरने की व्यवस्था भी हो चुकी है तथा अन्न जल की भरपूर व्यवस्था महात्माओं के सहयोग से हो रही है।

 जल की व्यवस्था हो जाने से वहां के प्राचीन पेड़ों को भी समुचित जल उपलब्ध होता है जिससे अत्यधिक प्रफुल्लित दिखाई देते हुए मानव तथा पक्षियों को बसेरा देते है। अपनी शीतल छाया से सांसारिक तापत्रय की शांति करते हैं तथा नवीन पेड़-पौधों की हरियाली देखते ही मन मोह लेती है। समूचा आश्रम स्थल बाग-बगीचे की भांति दिखाई देता है।

 हवन का कार्यक्रम तो नित्यप्रति चलता ही है जो शुद्ध देशी घी से ही होता है तथा वर्ष में प्रत्येक अमावस्या को छोटे मेले तथा आश्विन और फाल्गुन की अमावस्या को दो विशाल मेले लगते हैं। इन्हीं मेलों में तो हवन इतनी विशालता से होता है जो देखते ही बनता है। इतने विशाल हवन कुण्ड में उतनी ही हवन सामग्री तथा घृत द्वारा हवन सम्पूर्ण विश्व में भी देखने को नहीं मिलेगा। यहां पर हवन सामग्री तथा घृत का क्रय नहीं किया जाता है और न ही हवन पर आये हुए घृत को बेचा ही जाता है।

वह घृत केवल हवन के ही कार्य में लिया जाता है। घृत तथा सामग्री यहां पर जितने भी दर्शनार्थी मेले में आते हैं वे सभी कुछ न कुछ अवश्य ही अपने घर से शुद्ध घृत लेकर ही आयेंगे तथा अपने ही हाथ से हवन करके जायेंगे। यहां पर किसी भी प्रकार के बिचौलिये पण्डे पुरोहितों की भी आवश्यकता नहीं है। इन विशाल हवनी की बदौलत ही अब वहां का वातावरण अति पवित्र है।

 हवन द्वारा देवताओं को हवनीय द्रव्य प्रदान किया जाता है जिसस देवता प्रसन्न होकर वातावरण प्रकृति का संतुलन बनाये रखते हैं तथा इस साथ ही साथ आगन्तुक यात्री वर्ग आते समय साथ में पक्षियों के लिये चुगा दाना भी जरूर लेकर ही आते हैं। बूंद-बूंद करके घड़ा भर जाता है उसी प्रकार से थोड़ा-थोड़ा पक्षियों के लिये अन्न इकट्ठा होते हुए वर्ष में हजारों मण अनाज आ जाता है जो केवल पक्षियों के लिये ही होता है।

वह अन्न तो पक्षियों के लिये ही डाला जाता है किन्तु बीच में हिरण भी आकर निर्भय से अन्न खाते हुए देखे जा सकते हैं। यहां पर जितना पक्षियों के लिये अन्न इकट्ठा होता है उतना शायद दुनिया में कहीं इकट्ठा होता होगा। यह भी एक सम्भराथल की ही विशेषता है अन्यत्र ऐसा होना दुर्लभ है। इसलिये वील्होजी ने कहा है-“धन्य परेवा बापड़ा थारो वासो थान मुकाम, चूण चुगै गुटका करै सदा चितारै श्याम”

इस समय वातावरण अति दूषित हो चुका है, लोगों का खान-पान बिगड़ चुका है जिससे अनेकानेक बीमारियों ने शरीर को ही अपना घर बना लिया है। जब किसी को किसी बीमारी से कष्ट होता है तो पहले तो डाक्टरों के पास में चक्कर लगाते है किन्तु जब डाक्टरों से बीमारी काबू में नहीं आती है तब किसी देवता को याद करते हैं। इस समय कल्पित देवताओं का तो कोई आर-पार ही नहीं है।

सभी जगह जाकर मत्था पटक आते हैं किन्तु फिर भी न तो बीमारी ही कटती और न ही बीमारी झेलने की शक्ति ही अर्जित हो पाती जब चारों ओर से थक जाते हैं तब फिर अपने ही घर की याद आती है। अपनी तरफ देखते हैं तो उन्हें सर्वोपरि तीर्थ सम्भराथल ही दिखाई देता है वहां जाकर अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं तो उन की बीमारी गुरु महाराज की कृपा से ठीक हो जाती है।

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 अभी ही कुछ वर्षों से प्रत्येक अमावस्या को सम्भराथल पर इस प्रकार के रोगी दुखियों की भीड़ लग जाती है वे स्थानीय लोग भी होते हैं तथा बहुत दूर-दूर से भी प्रत्येक अमावस्या को आते हैं। इस प्रकार से पूरी बारह अमावस्या को लगातार आते हैं तो उनकी बीमारियां भी ठीक हो जाती है। ऐसा कोई लोग बतला रहे हैं जो लोग इस प्रकार से बारह अमावस्या को लगातार आये हैं उनको पहले बीमारी थी किन्तु अब पूर्णतया स्वस्थ हैं ऐसा हमने देखा भी है इसलिये सत्यता में संदेह नहीं होता। हमने उनसे पूर्ण जानकारी भी प्राप्त की है।

वास्तव में यह कोई असम्भव बात भी नहीं है। प्रथम तो जो उस परमात्मा के नाम से इतनी श्रद्धा तथा विश्वास से आयेगा तो परमात्मा उसकी अवश्य ही रक्षा करेगा, उसे कष्टों से छुटकारा दिलायेगा ही, इनमें कोई संदेह नहीं है। कहा भी है-” गुणों हमारा सुगणा चेला म्हे सुगणा का दासू” तथा दूसरी बात यह भी है कि वैज्ञानिक लोग भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सत्तर प्रतिशत मानसिक बीमारियां ही होती हैं। वे मानसिक बीमारियां दवाई से ठीक कैसे हो सकती हैं।

उन्हीं के मानसिक धरातल में परिवर्तन लाना अति आवश्यक है। इसके लिये श्रद्धा ही सबसे अच्छा तथा अचूक साधन है वह श्रद्धा जहां पर भी गहरी होती जायेगी, तभी से ही उसकी बीमारी का इलाज प्रारम्भ हो जायेगा। इसी श्रद्धा को बढ़ाने के लिये ही प्रत्येक अमावस्या को वर्ष भर के लिये बताया जाता है जिससे उसकी श्रद्धा बढ़े, तपस्या भी बनेगी, आने-जाने में कष्ट तथा रुपये भी खर्च होंगे, उससे उसको विश्वास श्रद्धा की बढ़ोत्तरी होगी, वही इलाज का भी कारण बनेगी। इसलिये आजकल सम्भराथल पर गुरु महाराज की अति कृपा की वर्षा हो रही है। बहती गंगा में अवश्य ही स्नान कीजिये।

Sandeep Bishnoi

Sandeep Bishnoi

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