खींचियासर गांव में मीठे जल का कूवा बतलाना
पीपासर एवं सम्भराथल के बीच में तीन कोश के जंगल में ग्वाल बालों के साथ गऊवें चराया करते थे। उसी समय ही गांव खींचियासर जो इसी जंगल का ही एक भाग है, उस गाँव में गर्मी के मौसम में कूवे का जल सूख गया था। गाँव के लोग पीपासर से जल लाया करते थे। जैसा जिसके पास जल लाने का साधन होता वैसा ही कोई ऊँट कोई बैलगाड़ी, या कोई सिर पर घड़ा लेकर जल लाते थे। जल की समस्या गाँव वालों के लिए एक विपत्ति ही थी।
एक दिन गाँव के ठाकुर ने अपने सेवक-सेविकाओं को आदेश दिया कि पीपासर के कूवे से जल लाया जावें। उनके साथ में गाँव के अन्य गरीब परिवार के लोग भी पीपासर कूवै पर पानी लेने गये थे। वहाँ पर बहुत सारे लोग जल लेने के लिए एकत्रित हो गये पीपासर के लोगों ने सभी के घड़े भरने की असमर्थता जताई क्योंकि बड़ा ही कठिन कार्य था कुवे से जल सिंचाई करके अपने गाँवों को पानी पिलाना तथा पड़ोसी के गांव को भी।
फिर भी अपने गाँव में मेहमान आये हैं, इन्हें अपने प्यासे रहकर भी पानी पिलायेंगे। इनके घड़े जल से परिपूर्ण करेंगे। कुछ लोग तो अपने प्रभाव से जल भरने में समर्थ हो गये। कुछ बेचारे गरीब महिला पुरुष वैसे ही खाली रह गये। गाँव वालों ने उनको मना कर दिया, अपनी असमर्थता जता दी। वे बेचारे क्या करते, पीछे अवशिष्ट मिट्टी-गारा मिला हुआ गंदा जल अपने घड़ों में भर लिया और चल पड़े।
पीपासर से चलकर अपने गांव खींचियासर पंहुचे, ठाकुर ने पूछा- शुद्ध जल लाये हो, वे कहने लगे ठाकुर साहब! हमें कौन शुद्ध जल भरने देगा? पीछे अवशिष्ट कीचड़ था वही भरकर ले आये हैं। ऐसा
कहते हुए घड़े को नीचे उतारकर ठाकुर को दिखलाया ठाकुर ने देखा और कहने लगे- यह तो शुद्ध पवित्र जल है। तुम लोग कैसे कह सकते हो कि इन घड़ों में कीचड़ है।
वे कहने लगे- हम तो कीचड़ ही लाये थे किन्तु न जाने यह शुद्ध जल कैसे हो गया? हे ठाकुर साहब! जब हम लोग पीपासर से जल लेकर आ रहे थे तो हमारे सामने लोहटजी का पुत्र जय अम्बेश्वर मिल गया था। हमने तो सुना था कि वह गूंगा है किन्तु हम से उन्होनें पूछा था कि शुद्ध जल लाये हो? हमने कहा राजकुमार! नहीं, आपके गाँव वालों ने हमें शुद्ध जल नहीं दिया।
हमारी इस बात को सुनकर उन्होंनें एक सरकण्डे का तार हमारे घड़ों से छुवाया अवश्य था और कहा कि हमारे गांव की अपकीर्ति न करो। जाओ तुम्हारा यह जल शुद्ध हो जायेगा। हम लोगों ने सहसा उनकी बात पर विश्वास नहीं किया किन्तु अब हमें पूर्ण विश्वास हो गया है कि उनकी वाणी में अवश्य ही कुछ जादू है, या उनके सरकंडे के तीर में होगा।
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जम्भेश्वर भगवान की बाल लीला। 🙂
ठाकुर ने पूछा- क्या यह लोहे का पुत्र या अपने ही जंगल में गऊवें चराता है? एक पुरुष ने कहा मैं अभी देखकर आया हूँ, आज तो हमारे गाँव के ही इधर पहिम की तरफ टीले पर जहाँ नींब के वृक्ष उगे हुए हैं, वहीं पर बैठे हुए हैं।
ठाकुर अपने गाँव से चला- नींबड़ी टीबे पर जाकर जाम्भेश्वरजी के दर्शन करते हुए चरणों में गिर पड़ा। जाम्बोजी ने आशीर्वाद देते हुए कहा उठ जाओ ठाकुर साहब। आज इधर आना कैसे हुआ?
ठाकुर बोला- हे राजकुमार! प्यास मर रहे हैं। जल बिना जीवन धारण करना कठिन है। लो अभी जल पिला देता हूँ। नहीं महाराज! अभी अभी तो घर से जल पीकर आया हूँ किन्तु गाँव के लोग प्यासे हैं। हमारे गाँव में जल नहीं है। हम सभी को जल पिलाओ। कहाँ जल मिलेगा, हमारी प्यास मिटेगी स्थायी समाधान चाहते हैं।
जाम्भोजी ने वही सरकंडे का तीर दिखाते हुए फेंका और कहा यह तीर जहाँ पर भी गिरेगा वहीं पर ही कुआं खोद लेना, अथाह जल मिलेगा। ठाकुर ने जाकर तीर वाले स्थान को कुवे के लिए चुन लिया और सभी ग्रामीणों ने मिलकर कूवा खोदा उसमें अपार जल संचय की प्राप्ति हुई।
भगवान तो अन्तर्यामी है उन्हें तो सभी वस्तुओं का ज्ञान है। उनसे तो कुछ भी छुपा हुआ नही है। अपनी सर्वव्यापकता प्रगट करते हुए उन लोगों के लिए जीवन का आधार जल है, उस जल के स्रोत को पता लगवाया एवं उन्हें सदमार्ग का अनुयायी बनाया।