आरती कीजै नरसिंह कुंवर की ।
वेद विमल यश गाउँ मेरे प्रभुजी ॥
पहली आरती प्रह्लाद उबारे ।
हिरणाकुश नख उदर विदारे ॥
दुसरी आरती वामन सेवा ।
बल के द्वारे पधारे हरि देवा ॥
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे ।
सहसबाहु के भुजा उखारे ॥
चौथी आरती असुर संहारे ।
भक्त विभीषण लंक पधारे ॥
पाँचवीं आरती कंस पछारे ।
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले ॥
धर्मराज आरती - ॐ जय धर्म धुरन्धर (Dharmraj Ki Aarti - Om Jai Dharm Dhurandar)
आरती युगलकिशोर की कीजै (Aarti Shri Yugal Kishoreki Keejai)
हवन-यज्ञ प्रार्थना: पूजनीय प्रभो हमारे (Hawan Prarthana: Pujniya Prabhu Hamare)
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा ।
हरषि-निरखि गावे दास कबीरा ॥