कलश पूजा मंत्र हिंदी (बिश्नोई ) Kalash puja mantra in hindi
ओम् अकल रूप मनसा रानी, मां पांच तत्व होय राजी ।
आकाश वायु तेज जल धरणी, तामां सकल सृष्टि की करणी ।
ता समर्थ का सुणो विचार, सप्त दीप नव खण्ड प्रमाण ।
पांच तत्व मिल इण्ड उपायो, विगस्यों इण्डधरणी ठहरायों, इण्डे मध्ये जल उपजायो,जल मां विष्णु रूप नौ तां विष्णु को नाभ कमल विगसानो तामा ब्रमा बीज ठहरानो ता ब्रह्मा की उत्पति होई, भाने घडे संवारे सोई।
कुलाल कर्म करत है सोई, पृथिवी ले खाके तक होई ।
आदि कुम्भ जहाँ उत्पन्नों, सदा कुम्भ प्रवर्तते ।
कुम्भ की पूजा जे नर करते, तेज काया भोखण्डते ।
अलील रूप निरंजनो ,जाके न थें माता न थे पिता ।
नथे कुटुम्ब सहोदरम, जे करे ताकि सेवा, ताका पाप दोष क्ष्यों जायन्ते ।
आदि कुम्भ कमल की घडी, अनादि पुरूष ले आगे धरी ।
बैठा ब्रह्मा बैठा इन्द्र, बैठा सकल रवि अरू चन्द ।
बैठा ईश्वर दोकर जोड बैठा सुर तैतीस करोड़।
बैठी गंगा यमुना सरस्वती, थरपना थापी बाल निरंजन गोरख जति ।
सत्रह लाख अठाइस हजार, सतयुग प्रमाण ।
सतयुग के पहरे में सुवर्ण को घाट, सुवर्ण को पाट, सुवर्ण को कलश ।
सुवर्ण को को, पांच करोड़ के मुखी गुरु प्रहलाद जी ने कलश थाप्यो ।
वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुईयो ।
बारह लाख छियानवे हजार त्रेता युग प्रमाण ।
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त्रेता युग के पहरे में रूपे को घाट, रूपे को पाट, रूपे को कलश ,
सुवर्ण को टको, सात करोड़ के मुखी राजा हरिश्चन्द्र तारादे रोहितास,
कलश थाप्यो वै कलश जो धर्म हुआ सो इस कलश हुइयो ।
आठ लाख चौसठ हजार द्वापर युग प्रमाण ।
द्वापर के पहरे में तांबे को घाट, तांबे को पाट, तांबे को कलश,
रूपे को टको, नव करोड़ के मुखी राजा युधिष्ठर कुन्ती माता द्रोपदी,
पांच पांडव कलश थाप्यो, वै कलश जो धर्म हुआ, सो इस कलश हुइयो ।
चार लाख बतीस हजार कलयुग प्रमाण ।
कलयुग के पहरे में माटी को घाट, माटी के पाट, माटी को कलश,
तांबे को टको, अनन्त करोड़ के मुखी गुरु जम्भेश्वर ने कलश थाप्यो ।
वै कलश जो धर्म हुआ, सो इस कलश हुईयो ।
ओम् विष्णु तत्सत ब्रह्मणे नमः ।।
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हिंदी अर्थ
कलश क्या है? सम्पूर्ण सृष्टि ही गोल-गोल कलश रूप ही है । कलश में जल भरा है. इस सृष्टि में भी जल भरा है । यह कलश पृथ्वी से बना है, पृथ्वी ही हमें सभी कछ देती है, धरती माता है, आकाश पिता है, जल जीवन है, अग्नि ओज व तेज है, वायु हमारा धास है इस कलश यो गदि विष्णु गोरख ने ही निर्मित करके सृष्टि के आदि में ही स्थापित किया था।
उस समय वहां पर तैतीस करोड़ देवी – देवता, गंगा, यमुना व सरस्वती आदि देवता विराजमान थे। उन्हे यह शिक्षा दी थी कि संसार में रहो तो जल की तरह निर्मल रहो अन्यथा तुम्हारा जीवन नरक समान हो जायेगा। उन्ही आदि विष्णु से प्रेरणा लेकर सतयुग में सर्वप्रथम प्रहलादजी ने कलश की स्थापना की थी । जिससे पांच करोड जीवों का उद्धार हुआ था । त्रेता युग में राजा हरिश्चन्द्र मे कलश की स्थापना की थी, जिसमें सात करोड जीवों का उद्धार हुआ था ।
तथा द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी कलश की स्थापना की थी जिससे नौ करोड जीवों का उद्धार हुआ था तथा द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने इसी कलश की स्थापना की थी जिससे नौ करोड जीवों का उद्धार हुआ था ।
यहाँ पर श्री जम्भेश्वरजी कहतें हैं कि में उन्हीं परंपरा को निभाते हुए यहाँ सम्भराचल पर भगवों टोपी पहन कर आया हूँ उसी कलश की स्थापना करता हूँ, जिससे बारह करोड़ में घुमते हुए मंत्र पढ़ा था जीवों का उद्धार होगा । इस मंत्र द्वारा जल देवता में इन सभी ऋषियों का आहवान किया है जो धर्म के पालक थे । उनका धर्म ही यहाँ पर कलश में निवेश करवाया है । वै कलश धर्म हुआ यो इस कलश में हुइयो
ऐसा कहते हुए उसी मर्यादा को बार-बार दोहराया है श्री सिद्धेश्वरजी ने इसमें ग्यान-ध्यान की भावना भरी है । जल में गुण होता है कि स्पर्श कर्ता की भावना गुणों को ग्रहण कर लेता है। स्पर्श कर्ता जैसा होगा वैसा ही जल हो जायेगा । यहाँ पर स्वयं विष्णु भगवान ने ही कलश की स्थापना करके जल को अमृत बनाया है । इसमें सहयोगी थे स्वर्ग दृष्टा पूल्होजी ।
कलश पूजा के पश्चात पाहल किया था, पाहल करते समय केवल अकेले ही श्री देवजी ने माला जल