हे जग स्वामी, अंतर्यामी,
तेरे सन्मुख आता हूँ ।
सन्मुख आता, मैं शरमाता
भेंट नहीं कुछ लाता हूँ
॥ हे जग स्वामी…॥
पापी जन हूँ, मैं निर्गुण हूँ
द्वार तेरे पर आता हूँ
॥ हे जग स्वामी…॥
मुझ पर प्रभु कृपा कीजे
पापों से पछताता हूँ
॥ हे जग स्वामी…॥
पाप क्षमा कर दीजे मोरे,
मन से ये ही चाहता हूँ
॥ हे जग स्वामी…॥
संत साहित्य ..(:- समराथल कथा भाग 15 🙂
आरती: श्री रामायण जी (Shri Ramayan Ji)
हे जग स्वामी, अंतर्यामी,
तेरे सन्मुख आता हूँ ।
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