यह भजन 15वीं सदी में गुजराती भक्तिसाहित्य के श्रेष्ठतम कवि नरसी मेहता द्वारा मूल रूप से गुजराती भाषा में लिखा गया है। यह भजन उसी गुजराती भजन का हिन्दी रूपांतरण है। कवि नरसिंह मेहता को नर्सी मेहता और नर्सी भगत के नाम से भी जाना जाता है। कालांतर में वैष्णव जन तो भजन महात्मा गांधी के दैनिक पूजा का हिस्सा होने के कारण उनका सबसे प्रिय भजन का पर्याय बन गया।
भारत में शांति और सद्भाव कायम रहे और कोई सद्भावना अभियान अथवा भाई चारे की यात्रा के कार्यक्रम मे यह भजन अत्यधिक गाया जाता है
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
सकल लोकमां सहुने वंदे,
निंदा न करे केनी रे ।
वाच काछ मन निश्चळ राखे,
धन धन जननी तेनी रे ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी,
परस्त्री जेने मात रे ।
जिह्वा थकी असत्य न बोले,
परधन नव झाले हाथ रे ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
मोह माया व्यापे नहि जेने,
दृढ़ वैराग्य जेना मनमां रे ।
रामनाम शुं ताली रे लागी,
सकल तीरथ तेना तनमां रे ॥
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दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रं (Daridraya Dahana Shiv Stotram)
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
वणलोभी ने कपटरहित छे,
काम क्रोध निवार्या रे ।
भणे नरसैयॊ तेनुं दरसन करतां,
कुल एकोतेर तार्या रे ॥
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे ।
पर दुःखे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे ॥
लेखक: नरसी मेहता / नर्सी मेहता / नर्सी भगत








