राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल भगाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
रोम रोम में राम है तेरे,
वो तो तुझसे दूर नही,
देख सके न आंखे उनको,
उन आंखों में नूर नही,
देखेगा तू मन मंदिर में,
ज्ञान की ज्योत जलाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल भगाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
यह शरीर अभिमान है जिसका,
प्रभु कृपा से पाया है,
झूठे जग के बंधन में तूने,
इसको क्यो बिसराया है,
राम नाम का महामंत्र ये,
साथ तुम्हारे जाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल भगाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
झूठ कपट निंदा को त्यागो,
हर इक से तुम प्यार करो,
घर आये मेहमान की सेवा से,
ना तुम इनकार करो,
पता नहीं किस रूप मे आकर,
नारायण मिल जाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल भगाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
राधा कृपा कटाक्ष स्त्रोत्र (Radha Kriya Kataksh Stotram)
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 26 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 26)
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 1 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 1)
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निष्फल सब भक्ति है तेरी,
मन में जब विश्वास नहीं,
मंजिल क्या पायेगा तू जब,
दीपक में ही प्रकाश नहीं,
राम नाम की लौ जगा,
भवसागर से तर जाएगा ॥
दौलत का अभिमान है झूठा,
ये तो आणि जानी है
राजा रंक अनेक हुए,
कितनो की सुनी कहानी है
राम नाम के महामंत्र ही,
साथ तुम्हारे जाएगा ॥
राम नाम के साबुन से जो,
मन का मेल भगाएगा,
निर्मल मन के शीशे में तू,
राम के दर्शन पाएगा ॥
** पता नहीं किस रूप मे आकर, नारायण मिल जाएगा
(पता नही प्यारे तू कब, नारायण में मिल जाएगा,)