मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो ।
भोर भयो गैयन के पाछे,
मधुवन मोहिं पठायो ।
चार पहर बंसीबट भटक्यो,
साँझ परे घर आयो ॥
मैं बालक बहिंयन को छोटो,
छींको किहि बिधि पायो ।
ग्वाल बाल सब बैर परे हैं,
बरबस मुख लपटायो ॥
तू जननी मन की अति भोरी,
इनके कहे पतिआयो ।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है,
जानि परायो जायो ॥
वैशाख संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Vaishakh Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha)
जाम्भोजी के द्वारा बताये गए बिश्नोई समाज के प्रश्न तथा उत्तर
दरश एक बार दिखाना रे, शिव शंकर डमरू वाले: भजन (Darsh Ek Bar Dikhana Re Shiv Shankar Damru Wale)
यह लै अपनी लकुटि कमरिया,
बहुतहिं नाच नचायो ।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा,
लै उर कंठ लगायो ॥
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