धनवानों का मान है जग में,
निर्धन का कोई मान नहीं ।
ए मेरे भगवन बता दे,
निर्धन क्या इन्सान नहीं ॥
पास किसी के हीरे मोती,
पास किसी के लंगोटी है ।
दूध मलाई खाए कोई,
कोई सूखी रोटी है ।
मुझे पता क्या तेरे राज्य में,
निर्धन का सम्मान नहीं ॥
धनवानों का मान है जग में,
निर्धन का कोई मान नहीं ।
ए मेरे भगवन बता दे,
निर्धन क्या इन्सान नहीं ॥
एक को सुख साधन,
फिर क्यों एक को दुःख देते हो ।
नंगे पाँव दौड़ लगाकर,
खबर किसी की लेते हो ।
लोग कहे भगवन तुझे,
पर में कहता भगवन नहीं ॥
धनवानों का मान है जग में,
निर्धन का कोई मान नहीं ।
ए मेरे भगवन बता दे,
निर्धन क्या इन्सान नहीं ॥
भक्ति करे जो तेरी वो,
बैतरनी को तर जाये ।
जो न सुमरे तुम्हे,
भंवर के जाल में वो फस जाये ।
पहले रिश्वत लिए तो तारे,
क्या इसमें अपमान नहीं ॥
सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र भाग 2
रमा एकादशी व्रत कथा (Rama Ekadashi Vrat Katha)
श्री मल्लिकार्जुन मंगलाशासनम् (Shri Mallikarjuna Mangalashasanam)
धनवानों का मान है जग में,
निर्धन का कोई मान नहीं ।
ए मेरे भगवन बता दे,
निर्धन क्या इन्सान नहीं ॥
तेरी जगत की रित में है क्या,
हो जग के रखवाले ।
दे ना सको अगर सुख का साधन,
तो मुजको तू बुलवाले ।
अर्जी तेरे है बच्चो की,
तू भी तो अनजान नहीं ॥
धनवानों का मान है जग में,
निर्धन का कोई मान नहीं ।
ए मेरे भगवन बता दे,
निर्धन क्या इन्सान नहीं ॥