भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ।
भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ॥
लौट जाए स्वार्थ, कटुता,
द्वेष, दम्भ निराश होकर ।
शून्य मेरे मन भवन में,
देव! इतना प्यार भर दो ॥
भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ॥
बात जो कह दूं, हृदय में,
वो उतर जाये सभी के ।
इस निरस मेरी गिरा में,
वह प्रभाव अपार भर दो ॥
भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ॥
कृष्ण के सदृश सुदामा,
प्रेमियों के पांव धोने ।
नयन में मेरे तरंगित,
अश्रु पारावार भर दो ॥
भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ॥
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पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 8 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 8)
पीड़ितों को दूँ सहारा,
और गिरतों को उठा लूँ ।
बाहुओं में शक्ति ऐसी,
ईश सर्वाधार भर दो ॥
भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ॥
रंग झूठे सब जगत के,
ये “प्रकाश” विचार देखा ।
क्षुद्र जीवन में सुघड़ निज,
रंग परमोदार भर दो ॥
भक्ति की झंकार उर के,
तारों में कर्त्तार भर दो ॥