भजन करो मित्र मिला,
आश्रम नरतन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
भजन करो मित्र मिला,
आश्रम नरतन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
पंच महले बंगले का तू है निवासी
पंच महले बंगले का तू है निवासी
पंच ज्ञान पंच कर्म इंद्रियां हैं दासी ॥
काया है कीमती मगर है बिनशी
करले राम बंदगी है जिंदगी जरा सी ॥
बार बार मिलता नहीं,
अवसर भजन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
भजन करो मित्र मिला,
आश्रम नरतन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
रामरूप जगत जान करले आराधना
रामरूप जगत जान करले आराधना
प्रभू दीखें सब में तो होवे अपराध ना
वासना से मुक्ति मिले ऐसी कर साधना
दुःख रहे दूर यदि सुख की हो साधना ॥
सार है यही यार सद्गुरु वचन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
भजन करो मित्र मिला,
आश्रम नरतन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
खुद को देह मानकर, खुद का होश खोया
कर्ता बन तूने ही कर्म बीज बोया
सपने को सच समझा मोह नींद सोया
सुख में प्रसन्न हुआ दुःख देख रोया ॥
यही एक कारण है जीवन मरण का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 23 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 23)
श्री सूर्य देव - ऊँ जय सूर्य भगवान (Shri Surya Dev Om Jai Surya Bhagwan)
भजन करो मित्र मिला,
आश्रम नरतन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
राजेश्वर गुरु ज्ञान गंगा नहा ले
राजेश्वर गुरु ज्ञान गंगा नहा ले
आत्मबोध पाकर के फल जीवन का पा ले ॥
रामजी से प्रीत कर राम गीत गा ले
राम नाम सुमिरन कर जिंदगी बना ले ॥
होगा अनुग्रह प्रभु असरन शरन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
भजन करो मित्र मिला,
आश्रम नरतन का ।
श्वास की सुमिरिनी है,
मन को बना मनका ॥
– स्वामी श्री राजेश्वरानंद जी महाराज