आरती युगलकिशोर की कीजै ।
तन मन धन न्योछावर कीजै ॥
गौरश्याम मुख निरखन लीजै ।
हरि का रूप नयन भरि पीजै ॥
रवि शशि कोटि बदन की शोभा ।
ताहि निरखि मेरो मन लोभा ॥
ओढ़े नील पीत पट सारी ।
कुंजबिहारी गिरिवरधारी ॥
फूलन सेज फूल की माला ।
रत्न सिंहासन बैठे नंदलाला ॥
कंचन थार कपूर की बाती ।
हरि आए निर्मल भई छाती ॥
ऊँचे पर्वत चढ़कर जो, तेरे मंदिर आते हैं: भजन (Unche Parvat Chadhkar Jo Tere Mandir Aate Hain)
पुरुषोत्तम मास माहात्म्य कथा: अध्याय 4 (Purushottam Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 4)
भजन :- मै तो जोऊ रे सांवरिया थारी बाट,म्हारो बेडो लगा दीजो पार,मनवा राम सुमर ले
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी ।
आरती करें सकल नर नारी ॥
नंदनंदन बृजभान किशोरी ।
परमानंद स्वामी अविचल जोरी ॥
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