विष्णु अवतार जाम्भोजी ( Vishnu Avatar Jambhoji )
योगी अवधूत के वचनों पर विश्वास से हांसी देवी को सदा आसा लगी थी कि स्वयं भगवान मेरे घर पर आयेंगे। मैं उनका मेरे लाल के रूप में दर्शन करूंगी। वह सुखद अनुभूति का समय शीघ्र ही आ गया है। इस समय तो भगवान ने कृष्ण रूप में अवतार लिया था, तथा इसी को ही नवीन समय कहा था। कुछ नया होने जा रहा है।
वही विष्णु ही अनेकों अवतारों के रूप में स्वयं लीला करते हैं। इस बार भी कुछ अनोखी लीला होने जा रही है। हे देवाधिदेव! आप अवश्य ही प्रगट होइये! आप तो स्वयं समर्थ हैं। आपको किसी गर्भ में आने की आवश्यकता नहीं है।
अपनी प्रकृति को अपने वश में करके स्वयं जैसा चाहे वैसा रूप प्रगट कर लेते हैं। आप कोई सामान्य जीव तो हैं नहीं जो नौ मास माँ के गर्भ में रहे। आप स्वयं अजन्मा होते हुए भी जन्म लेते हैं। सभी मृत प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी जन्म स्वीकार करके सांसारिक सम्बन्ध पिता-पुत्रादिक बना लेते हैं। ऐसा पूर्व में कई बार हुआ है।
वही सम्बन्ध इस बार पुनः स्वेच्छा से स्वीकार करेंगे मुझे ऐसा हो आभास हो रहा है। हे प्रभु! अब समय तो आ चुका है। अपने वचनों को याद कीजिये। मैं आपकी दासी आपके आने की प्रतीक्षा कर रही हूं।
लोहटजी नित्यप्रति की भांति नित्यकर्म से निवृत्त होने के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठे। भगवान का स्मरण करते हुए कुएं पर जाकर स्नान किया। आज रात्रि में तो भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव था। अर्द्धरात्रि तक तो भगवान के जागरण में लोहटजी सम्मिलित थे। पीपासर गांव में भगवान के जन्म की खुशियां मनाई जा रही थी। द्वापर में भगवान विष्णु स्वयं कृष्ण रूप में आये थे।
उनकी सुगन्धी अब तक फैल रही थी। अब कलयुग चल रहा है लोग अचेत हो रहे हैं, उन्हें सचेत करने के लिए भगवान के मंदिर में उत्सव-जागरण का कार्यक्रम लोहटजी ने किया था। गांव के लोगों ने आज रात्रि में तल्लीन होकर संकीर्तन किया है। हमारे ठाकुर साहब के भी तो संतान होगी वे ही कृष्ण पुनः आयेंगे, हमारा सपना साकार करेंगे।
लोहटजी ने सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करके मंदिर के कपाट खोले थे कि संध्या वंदन करूंगा। उसी समय ही दिव्य ज्योति का भव्य दर्शन हुआ लोहटजी की आंखे चकाचौन्ध हो गयी, स्पष्ट कुछ भी दिखाई नहीं दिया। हृदय में पुत्र की आशा थी इसीलिए लोहट ने उस ज्योति में भी पुत्र का ही दर्शन किया। जांकी रही भावना जैसी, प्रभू मूरत देखी तिन तैसी।।
लोहट हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे धन्य है मेरा भाग्य जो आज प्रभु ने स्वयं मुझे ज्योतिस्वरूप में दर्शन दिये। अब तक तो केवल आपकी महिमा ही सुनता था किन्तु आज मैं अपनी आँखो से आपके स्वरूप का दर्शन कर रहा हूँ, इस शुभ वेला में आपका दर्शन निष्फल नहीं जायेगा। मेरी जो इच्छा है वह आज भलीभांति पूर्ण हो जायेगी।
हे देवाधिदेव! हांसा की गोद खाली है, मैं नि:संतान हूँ, निपूते का मेरा कलंक धो डालिये। आप स्वयं ही पुत्ररूप में हो जाइये। हम दोनो दम्पति आपको पुत्र रूप में देखना चाहते हैं। हमें आप बालक बनकर सुख प्रदान करो। बालक तो प्रत्यक्ष रूपेण भगवान का स्वरूप ही होता है। हम आपको गोदी में उठा सके। आपकी बाललीला देखकर कृतार्थ हो सकें।
ऐसी कृपा कीजिये प्रभु!जिससे सभी प्रकार से हमारा हित होवे।
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लोहट भगवान की प्रार्थना में मग्न थे उसी समय ही दासी ने आकर बधाई मांगी। आपके पुत्र हुआ ठाकुर साहब! बहुत-बहुत बधाई हो। लोहट ने आंखे खोली तो दासी हाथ जोड़ खड़ी पुत्ररत्न प्राप्ति की बधाई माँग रही है। वह ज्योति प्रकाश अग्निस्वरूप विष्णु वहाँ से लोप हो गये। लोहट ने यह आश्चर्य देखा। क्या करूं, क्या कहूँ इससे।
क्या यह सत्य है? यह मैनें जो देखा है वह सत्य है या यह जो दासी कह रही है वह सत्य है। क्या मैं यह स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ। नित्यप्रति जो मेरी भावना थी क्या वह सत्य हो गयी। लोहट ने दासी को बहुत-बहुत बधाइयां दी और उन्हें वापिस लौटाया।
पीपासर में यह बात फैल गयी कि हांसा के उदर से एक दिव्य बालक जन्मा है। असंभव का संभव हुआ है। वृद्धावस्था में जब मौसम भी नहीं था तब भी फल लगा है। वह अनहोनी तो कृष्ण चरित्र के बिना असंभव। चलो देखते हैं क्या सत्य है? बिना देखे भाईलोगों विश्वास नहीं होता है । सम्पूर्ण ग्रामवासी लोहट के द्वार एकत्रित हुए। ढोल नगाड़े आदि अनेकों यन्त्र वाद्य बाजे बजने लगे नृत्य गान होने लगा लोहट ने पुत्र प्राप्ति की खुशी में बहुत सा धन धान्य दान दिया भाट आदि गाने बजाने वाले प्रशनतापुर्वक जय जयकार करते हुए वापिस लौटने लगे।
पुरोहित ने आकर तिथि नक्षत्र देखा और निर्णय किया कि इस बालक का जन्म भगवान कृष्ण के जन्म की तिथि में हुआ है। यह बालक भी कृष्ण की तरह ही गुणवान, बुद्धिमान- सम्पूर्ण लोक में सर्वमान्य होगा। आज भादवे महिने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी है। वार सोमवार कृतिका नक्षत्र है। विक्रम सम्वत् 1508 इस समय चल रहा है। इन्हीं मुहूर्त से यह पता चलता है कि यह बालक कुल तारक होगा।
पुरोहित ने आगे कहा- हे लोहट! आप लोग शक्ति अंबा के कुल परंपरा से उपासक रहे हैं। यह बालक भी तुम्हारी शक्ति का स्वामी है इसलिए इसका नाम भी अम्बा-ईश्वर भी कहा जाये तो उचित ही होगा। सदा ही अम्बा ईश्वर की जय हो। हम तो वहीं भावना रखते हैं। इसलिए इस बालक का नाम जम्भेश्वर कहेंगे यदि उच्चारण की दृष्टि से यह नाम लंबा होता है तो इसे जाम्भेश्वर या जम्बेश्वर रख देते हैं और भी छोटा करना चाहते हैं तो जाम्बाजी नाम रहेगा।
यह बालक जम्भ दैत्य का विनाश करने वाला स्वयं विष्णु है इसलिए सर्वथा अपरिचित नाम जम्भ दैत्य-पाप विनाशक । इसे जाम्भा नाम से कहना ठीक होगा। यह बालक एक अचम्भे के रूप में प्रगट हुआ है इसलिए अचम्भा ही जाम्भा होगा। देवता लोग भी इसे मस्तिष्क झुकाते हैं इसलिए जाम्भेश्वर कहेंगे।
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देवताओं ने देखा कि हमारे स्वामी भगवान विष्णु ने अबकी बार एक साधारण से गांव पीपासर में अवतार लिया है। लोहट हांसा तथा ग्रामीण लोगों को कृतार्थ किया है। हमें भी चलकर दर्शन करना चाहिये। इस नवीन रूप को जो अब तक देखा नहीं गया है। गांव तो बहुत ही छोटा है। ग्रामीणवासियों को हमारे जाने से दुविधा होगी। कहीं डर न जाये, वे कहीं उन विष्णु को साक्षात् भगवान ही न मानले। अन्यथा उन्हें अपनापन, बालक स्नेह से वंचित न होना पड़े।
अपने लोग सम्भराथल पर ही चलते हैं। वहां शून्य एकात में दर्शन होंगे तो अच्छा रहेगा हमारे स्वामी हमें कृतार्थ करने के लिए वहीं पर आ जायेंगे। सभी देवताओं ने सम्भराथल पर आकर ज्योति का प्रकाश किया। भगवान से दर्शन देने की प्रार्थना की तथा मन्द पड़े हुए अपने तेज की वृद्धि की कामना की।
उन देवताओं की स्तुति सुनकर भगवान थोड़ी देर के लिए पीपासर से सम्भराथल पर आये। देवताओं की स्तुति स्वीकार की तथा उन्हें आश्वासन दिया कि अब शीघ्र ही वापिस लौट जाओ। मैं शीघ्र ही अपना कार्य पूरा करके वापिस लौट आऊंगा।
हे देवताओं। पच्यासी वर्ष तुम्हारे लिए एक क्षण जैसा है किन्तु इन मनुष्यों के लिए तो काफी समय है। इतने समय में अपना कार्य पूरा करके शीघ्र आ जाऊंगा।
हांसा ने जाकर चुपके से लोहट से कहा-ये राग-रंग,गाजे-बाजे बंद करवा दीजिये। अब तो वह नवजात बालक नहीं है किस खुशी में ये गाने-बजाने हो रहे हैं। लोहटजी ने हांसा के कथनानुसार गाने-बजाने वालों को वापिस लौटा दिया। रंग में भंग पड़ गया।
क्या हुआ देवी? बालक कहां गया? अभी तो था, किन्तु थोड़ी सी देर ही तो हुई है। क्या इतना दर्शन देना था? अभी तो कुछ हुआ भी नहीं। मंगलाचार, लोकाचार तथा कुलाचार भी नहीं हुआ। मैं ठीक तरह से देख भी नहीं पाया। क्या केवल इतना ही कार्य था कि मैं निपूता न कहलाऊं। ऐसे कैसे हो सकता है? क्या कोई बिलाव उठाकर ले गया हो। क्या कोई डायन-राक्षसी ही कहीं बालक को ले गयी। क्या यह भी हो सकता है कि बालक कहां पलने से नीचे गिर गया हो, जाकर देखे तो सही।
लोहटजी दुःखी होकर सूतिका गृह में पंहुचे, जाकर देखा तो बालक सोया ही हुआ है। हांसा को कहने लगे- क्या तुम अंधी हो गयी हो? तुम्हें इतना बड़ा बालक भी सोया हुआ दिखता नहीं है। हांसा ने देखा तो आश्चर्यचकित हो गयी। मेरा लाल तो सोया हुआ है। माता ने प्रेमविभोर होकर गले से लगा लिया। स्तनों में दूध की धारा बह चली। फिर से गाना-बजाना, राग-रंग प्रारम्भ हो गया।
भाव और अभाव दोनों ही जोड़े हैं। एक रहेगा तो दूसरा भी रहेगा। इसी प्रकार सुख दुःख का भी साथ रहना अनिवार्य है। भाव से सुख अभाव से दुःख होगा ही एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व ही नहीं है। उतार-चढ़ाव, सर्दी-गर्मी ये जीवन के शाश्वत सत्य हैं।
इसी बात को बताने के लिए जाम्भोजी महाराज थोड़ी देर के लिए छुप गये थे तथा तत्क्षण प्रगट भी हो गये आने वाले दुःख को स्वीकार करके जीवन जीने की कला को गुरु महाराज ने अपनी प्रथम बाल लीला से दर्शाया है। यह जीवन की सर्वोपरि अवस्था है। इससे सभी को गुजरना होता है, यही शिक्षा प्रदान की है।
लोहटजी कहने लगे हे देवी! ये तो साक्षात् विष्णु ही हमारे घर पर अपने वचनों को पूरा करने के लिए आये हैं। योगी के वचनों से ही हमें आभास होता है। ये भगवान नित्य प्रति नये नये चरित्रों से अनेकों प्रकार की शिक्षा हमें प्रदान करेंगे। हमारा जन्म मरण प्रवाह अब समझो कि समाप्त हो गया।
हमें अपनी औकात बताने के लिए ही तो पधारे हैं। केवल हमे ही नहीं इस मरुभूमि में बिखरे हुए जीवों का कल्याण करेंगे। हम लोग तो इन्हें भगवान ही मानकर स्तुति करें।
बिल्हा ने पूछा- हे गुरुदेव! आपने मुझे जाम्भोजी के जन्म की कथा सुनाई तथा जन्म लेने के कारण तथा प्रकार से भली भांति अवगत करवाया। अब आगे की जीवन चरित्र कथा जानना चाहता हूँ। आप के श्रीमुख से ज्ञान श्रवण करते हुए मुझे तृप्ति नहीं हो रही है।
नाथोजी ने कहा- हे शिष्य ! जाम्भोजी महाराज के जीवन चरित्र को चार विभागों में विभक्त किया जाता है। यथा
वरस सात संसार, बाल लीला निरहारी। बरस पांच बावीस, पाल ऐता दिन चारी।।ग्यारे और चालीस, सबद कथा अविनाशी।बाल गोपाल गुरु ज्ञान,मास तीन वर्ष पिच्यासी।।