साहू को स्नान का महत्व बतलाना(स्नान क्यों करना चाहिए)
बिजनौर को चौधरी गांव साहू गंगा पार सु आयो,तागड़ी सोनो चाड़यौ । जाम्भोजी ! कीया भजन हुव नहीं,सोनो साटै मुकति द्यौ। जाम्भोजी कह छः ताकड़ी तेरो,छ:ताकड़ी म्हे देस्या, आंखे में काचौ रतन थ, आ रतन काया की सहनाणी थ,तेरी काया रतन थ। दूजौ मोल साटलो आव,साहु कह,जम्बू दीप कीमता साह दीन ताउ मोल साट मील नहीं,तो रतन काया क्यों करि मिल्या,जाम्भोजी श्री वायक कहै-
शब्द-104
ओ३म् कंचन दानो कछु न मानूं, कापड़ दानूं कछु न मानू।
चौपड़ दानों कछु न मानूं, पाट पटंबर दानूं कछु न मानूं।
पंच लाख तुरंगम दानू, कछु न मानू, हस्ती दानू कछु न मानूं।
तिरिया दानू कछु न मानूं, मानूं एक सुचील सिनानूं।
गंगा पार पूर्व से बिजनौर निवासी एक चौधरी जाम्भोजी के पास सम्भराथल पर अपनी जमात सहित आया। उसका नाम साहू था,तथा कर्म भी साहू का था,स्वर्ण व्यापार करता था उसने छ-ताकड़ी घड़ी तौस सेर सोना जाम्भोजी के भेंट किया और हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगा- हे देवजी! मेरे से भजन भाव साधना तो होती नहीं है और नहीं मान संध्यादिक क्रियाए हो हो पाती है मैं स्वर्ण का कार्य करने वाला इस कार्य में शोले धर्म भी मेरे से पालन होता नहीं है।
यह सोना आप लोजिये और मुझे मुक्ति को प्राप्ति करवा दीजिए। जये मेरे सभी अवगुण माफ कीजिये और यह सोना लीजिये।
जाम्भोजी ने कहा -हे साहू । यह तीस सेर तो तेरा और इतना ही मैं तुझे दूंगा,इसके बदले में तू एक यह रतन काया तुम्हारे जैसी और भी खरीद के ले आ.क्योंकि इस रतन काया में भगवान ने आंखे दो है आंखो के अन्दर भी देखने वाला छोटा सा रतन यह भी तूं इस सोने के बराबर मोल देकर खरीद कर ले आ सकता है क्या?
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साहू कहने लगा है देव जो! यह सोना तो बहुत ही थोड़ा है सम्पूर्ण जम्बूदीप को बेच कर भी उस धन से रतन काया तो खरीदी नहीं जा सकती। आप बताइये को यह रतन काया कैसे मिलेगी।
जाम्भोजी ने शब्द सुनाया- रतन काया की प्राप्ति का उपाय बतलाया- शब्द में बतलाते हुए कहा- हे साहू! तुम्हारा ये कंचन दान, इसका मेरे यहां कोई महत्व नहीं है तथा कपड़े का दान भी यदि तूं करे तो कुछ भी महत्व नहीं देता। घी तेल आदि का दान भी यदि तूं समझे कि महत्व का होगा यह भी कुछ भी नहीं है।
सवारी हेतु हे साहू । तूं हाथी का दान करे तो भी मैं इस दान को कुछ भी नहीं मानता। पाट पटम्बर बहुमूल्य वस्त्रों का दान भी मेरे सामने नगण्य है। यहां तक कि पांच लाख उच्च कोटि के घोड़ों का दान करले तो भी उसको महत्वपूर्ण नहीं समझता। कन्या दान सर्वश्रेष्ठ दान है वह दोनों कुलों को तारने वालो है उसके विवाह तथा दहेज आदि में दे देना उसको भी मैं कुछ भी नहीं मानता।
हे साहू ! मैं तो सुशील एवं स्नान को हो मानता हूँ। जिसकी तुम क्षमायाचना कर रहे हो वही तो तुम्हें युक्ति मुक्ति दिलाने वाली क्रिया धर्म है। इस प्रकार से बिजनौर के साहू के द्वारा दान दिया हुआ सोना भी श्रीदेवजी ने अस्वीकार कर दिया तथा शील धर्म एवं स्नान संध्यादिक क्रियाओं को महत्वपूर्ण बतलाया।