साखी – आओ मिलो साधो ओमलो
साखी सावण संत जल, सतगुरू सरवर तीर ।
मन धोबी तन पाटडो, पावन होत शरीर ।
तरवर सरवर संत जन, चौथा बरसे मेह ।
परमारथरे कारणे चारू धारी देह ।।
तरवर कबहूं फल न भखे नदी ना सचे नीर ।
परमारथ रे कारणे संते धारयो शरीर ।।
आवो मिलो साधो ओमणौं, रलि मिलि जुमले होय ।।1 ।।
आसा तिसना पापणी, तजिये कारण जोय ।।2।।
ओंगण गारों आदमी, गुण के लिये नहीं कोय ।।3।।
अजर जरै भव सागर तिरै, पापी परले होय ।।4।।
इमरत बाणी बोलणौ, दोष न लागै कोय ।।5।।
काम क्रोध को मेल है, ज्ञान नीर सूं धोय ।।6।।
चंचल चित को थिरकरो,सुरग बास हुवे तोय ।I7।।
टूटे सासां पलक में, फिर गति कैसे होये ।।8।।
तपे तो रिषिया सरण जा, तेरी भरम गांठ देखो ।।9।। परनिंदा माखौ करै, जिण गुरू न चीनो कोय ।।10 ।।
भव सागर तारण कठिन है, मेर तजै नहीं काये ।।11 ।। सांसो सांस सिंवरण करो, साध केशों कहे तोय ।।12।।
साखी – परम भक्त प्रहलाद
परम भक्त प्रहलाद, हिरणाकुस दुःख ही दियो ।
घोल हलाहल जहर, उण पायो इण पीलिया ।
उण पायो इण पीलिया ने, महा विष्णु के नाम ।
मुलतान मेलो मंडयो ने, देखे सारो गाम ।
देता कुल इचरज भयो, मारयो मरे न बाल ।
हिरणाकुश हिरदे डरे, आय गयो मुजकाल ।
पुत्र नहीं कोई देव है ।।1।।
फौजा लई बुलाय, मार मार मुख ओचरे ।
तोपां दई झुकाय, औला ज्यूं गोला पड़े।
ओला ज्यू गोला पड़े ने, तीर तुपक तलवार ।
परसी पर घर मरगला, मुगदर करे जो बहुती मार ।
कुटी कटारी गुपती चाले, लागे नहीं लिगार ।
हरि भगता रे संग रमै,जाणे नहीं गिवार ।
जाके साची देव ।।2।।
मरे नहीं प्रहलाद हिरणाकुश हिरदे डरे ।
गई भूख अरू प्यास, रात दिवस सांसो करे ।
जाम्भोजी का जैसलमेर पधारना भाग 4
ॐ | ओ३म् | ओम | ओमकार (Om Aum)
रात दिवस सांसो करे ने, कोट चिण्यो कर रीश ।
करोड़ साध किया केद में तीना ऊपर तीस ।
सो योजन ऊंचो चिण्यो अन जल कबहू न दीस ।
रवि दवादस गढ कांगरा, तपै ज्यूं विसवा वीस ।
जाणे नहीं जहां भेव है ।।3।।
हरि रा आडा हाथ बादल नित वरषा करे ।
छपन भोग तियार, रिद्धि-सिद्धि साथे फिरे ।
रिद्धि-सिद्धि साथे फिरे तो, मेवा लिया मिष्ठान ।
अन इच्छा लेवे नहीं, पण देव करे गुणगान ।
कुलफ खोल देखे दुष्ट तब बीता बारहमासी ।
संता रे सुख अनन्त है देख अरू भयो उदास।
सिधि करे सब सेव है ।।4।।
खडग लियो उण हाथ, पांच करोड़ परलय करया ।
पकड़ लियो प्रहलाद, संत सकल मन में डरया ।
संत सकल मन में डरया ने, भागा आठ अरू बीस ।
कंठ पकड़यों प्रहलाद को, कहां तेरो जगदीश ।
मों मे तों में खड़ग खम्भ में, तब निकल्यो भभकार |
पकड़ पिछाड़यो चौक में, जाणे सब संसार ।
साहब सतगुरू है सही ।।5।।
साखी – जीव के काजे जुमले जाईये
जीव के काजे जुमलै जाइये, कीजे गुरू फरमाये ।
सुणिये ज्ञान कटै तन कषमल ज्ञान सरोवर न्हाइये ।
श्री सिंवरो सदा सुखदाता, जहां लीजे सरणाइये ।
ऊदो भगत हुयो अपरंपर, जो जपतो महमाइये।
रावण सांसे ओले आण्या, गोबिंद सा गुरू भाइये ।
लोहा पांगल सुणकर सीधो, सतगुरू हुवो सहाई।
सिकंदर यूं कीवि करणी, दुनिया फिरि दुहाइये ।
अहमदखां नागौरी रच्यो, चल्यो गुरु फरमाइये ।
शेख साधू परचे पर आण्या, मरती गऊ छुड़ाइये ।
सिद्ध साधु पकंवर सीधा, गिणियो ज्ञान न जाइये।
रहो एकांत अंतर खोजो, भरम चुकावो भाइये ।
सुमति आवै साधा संग बैठा, कुमति न आवै काइये ।
गहकर ज्ञान सुणों संग साधो, केसो साख सुनाइये।