रूपा मांझू को जल छानने का आदेश भाग 1

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रूपा मांझू को जल छानने
रूपा मांझू को जल छानने

           रूपा मांझू को जल छानने का आदेश भाग 1

नाथोजी उवाच- हे शिष्य श्री देवजी ने एक समय रूपा मांझू को शिष्या बनायी थी। उसे जल छान कर पीने का आदेश दिया था किन्तु उस बालिका ने वह महत्वपूर्ण नियम तोड़ दिया था फिर श्री देवजी ने उसे क्षमा कर दिया था। वह किस प्रकार से हुआ यह मैं तुम्हें विस्तार से बतलाता हूं वोल्हो उवाच हे गुरु देव । यदि रूपा ने नियम भंग कर दिया था तो उसे दंडित करना चाहिये था, श्री देवजो ने उसे क्षमा कैसे कर दिया?

 नाथोजी उवाच- जाम्भोजी तो दयालु पालु है यदि कोई भूल से नियम तोड़ता है फिर क्षमा याचना करता है तो उसे क्षमा कर देना यह नियम विरुद्ध नहीं है क्योंकि उनतीस नियमों में क्षमा कर देना भी ती एक | नियम है इस नियम का निर्वाह श्री देवजी ने किया था तथा अन्य लोगों को भी सचेत किया था। किस प्रकार से नियमों का पालन करना है मैं आगे तुम्हें कथा विस्तार से बताता हूं।

 एक रूपा नाम को बालिका गांव हिमटसर में रहने वाली थी। उसका गोत्र मांझू था। इस बालिका के पूर्व जन्म के संस्कार अच्छे थे। दया, धर्म, ज्ञान, बीज रूप से विद्यमान थे, किन्तु पूर्व जन्म के संस्कार सोये हुए थे।

 एक समय एक साधु गांव हिमटसर में भिक्षा लेने के लिए आया और वह रूपा के पर जाकर बोला- भिक्षा देही “सत्य विष्णु की बाड़ी” कहते हुए भिक्षा मांगी रूपा पात्र में भिक्षा लेकर दौड़ आयी और उस साधु को भिक्षा देने लगी तब साधु ने कहा- हे बालिके तूं भिषा देने आयी है क्या तुमने गुरु धारण किया है?

गुरु मंत्र लेकर सुगरी हुई या नहीं? तथ रूपा ने सिर हिलाते हुए नहीं कहा- तब साधु कहने लगा मैं तुम्हारे हाथ की भिक्षा नहीं लागे। मैं नुगरे को हाथ को भिक्षा नहीं लेता, यह मेरा नियम है क्योंकि तुम्हारा | तो अपना जाएगा, मेरी भूख जायेगी, किन्तु पुणे कुछ भी नहीं होगा, ऐसा पाहते हुए साधु तो खाली हाथ ही कहीं अन्यत्र चला गया।

 रूपा रोती हुई अपनी मां नाथी के पास आयी। नाथी ने पूछा- येटो रोती क्यों हो, तुझे किसने सताई।

रूपाने साधु द्वारा बताई हुई बात अपनी मां को बतलाते हुए कहा- हे मां! मैं गुरु मंत्र लूंगी, सुगरी बन कर नाथी ने कहा- बेटी रो मत! कोई साधु संन्यासी पुरोहित आ जायेगा तो तेरे कान में फूंक दिलवा करोड़ों जन्मों के पाप मिटाउंगी।

नाथी ने कहा- बेटी रो मत! कोई साधु संन्यासी पुरोहित आ जायेगा तो तेरे कान में फूंक दिलवा दूंगी।

। रूपा कहने लगी- समराथल पर विराजमान जाम्भोजी के पास मैं जाऊं और उनसे गुरु मंत्र ले लं, यदि आपकी आज्ञा हो तो। नाथी कहने लगी- जाम्भोजी तो नियम बहुत बताते है, उन कठोर नियमों का पालन तेरे से होगा नहीं। रूपा बोली- मैं उन नियमों का पालन कर लूंगी, मुझ सम्भराथल जाने की आज्ञा दे दो।

दूसरे दिन प्रातः काल में रूपा ने स्नान कर के थाली में घृत, गुड़, आखा अनाज, नारियल आदि भर कर सम्भराथल श्री देवजी के पास पहुंची और प्रार्थना करने लगी- श्री देवजी ने आम शब्द गुरु सुरतो चेला, यह सुगरा मंत्र सुनाया तथा उन्नतीस बतलाये। विशेष रूप से आज्ञा प्रदान करते हुए कहा- जल को छान कर के हो लेना। ब्रह्म मुहूर्त में उठना स्नान करके संध्या करना।

 रूपा ने गुरु धारण किया पाहल ग्रहण कर के प्रसाद बांट कर घर लौट आयो । शुभ समाचार अपने माता पिता कुटुम्बियों को सुनाया। एक दिन रूपा अपनी सहेलियों के साथ तालाब से जल लाने के लिए गयी थी। शाम का समय था बादल उमड़ घुमड़ करके आने लगे उधर सूर्य अस्त होने जा रहा था अंधकार एवं आंधी की संभावना देखकर तालाब पर पहुंची हुई उन बालाओं ने अपना घड़ा बिना छाने हुए जल से भर लिया। और एक दूसरी को उठा कर चल दी।

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रूपा कहने लगी हे सखियो! आप लोग मुझे अकेली छोड़ कर क्यों जा रही हो? साध में ही आई थी साथ में हो जाना चाहिये। दूसरी बालाएँ कहने लगी-” तूं चेली पड़पच करे, यांही पड़ज्यै रात”तूं जाम्भोजी की चेली बनी है यह जल छानना- भरने का पड़पच कर रही है। हमारे तो यही पर ही रात्रि हो जायेगी इस लिए हम तो जा रही है।

रूपा ने कहा रूको! अभी मेरा घड्य भरा नहीं है किन्तु आधा ही हुआ है में जाम्भोजी द्वारा बताये हुए नियमों के अनुसार जल छान कर के भर रही हूं देर तो कुछ लगेगी हो, तुमने तो बिना छाने जल भर लिया है। तुम रुक जाओ मैं भी तुम्हारे साथ चलूगी, मुझे पीछे घड़ा कौन उठवायेगा।

इतना कहने पर भी उन बालाओं ने रूपा की एक भी बात नहीं मानी और वहां से चल पड़ी। रूपा | ने कहा- यदि आप लोग मेरा नियम भंग करवाना चाहे तो करे, मैं बिना छाने ही आधा घड़ा भर लेती हैं। घर पर जाकर छान लंगी। रूपा ने घड़ा उठाने का लालच किया और बिना छाना हुआ जल भर लिया। उनके साथ ही घडा सिर पर उठा कर चल पड़ी।

 रूपा के मन में ग्लानी हुई पछतावा भी किया कि आज मैंने नियम तो तोड़ ही दिया है, पडा उठाने का लालच किया और नियम लालच में टूटा, अब तो भगवान हो मालिक है। वे सभी पनिहारिने सिर पर घड़ा उठाये हुए बातें करती हुई जा रही थी।

उधर आकाश में बिजली चमकने लगी, गर्जना होने लगी, काली कजरारी मेघ मालाएं सम्पूर्ण आकाश को आच्छादित करती हुई आ गया। सभा को वापस अपने घर जाने की शीघ्रता थी। रूपा भी उनके साथ हो साथ तेजी से चल रही थी। गांव के बीच में पहुंची तो रूपा के ठोकर लगी और पड़ा धरतो पर गिर पड़ा। घड़ा फूट गया जल बिखर गया। रूपा रात हुए खाली हाथ ही घर पहुंची।

 मां ने पूछा- जल नहीं लायी? घड़ा फूट गया जल बिखर गया। रूपा को रोती देखकर मां ने कहा –

रूपा मांझू को जल छानने का आदेश भाग 2

Sandeep Bishnoi

Sandeep Bishnoi

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