श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की बाल लीला भाग 6

jambh bhakti logo

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की बाल लीला भाग 6

जम्भेश्वर भगवान की बाल लीला
जम्भेश्वर भगवान की बाल लीला

 नाथोजी कहने लगे- हे शिष्य! भगवान की लीला अपरम्पर है किन्तु कभी-कभी पूर्व की लीला भगवान दोहराते हैं। सतयुग में भगवान ने नृसिंह रूप धारण किया था, प्रहलाद भक्त की रक्षा की थी और उनके पिता हिरण्यकश्यपू को मार गिराया था, इस समय भी भगवान खेल ही कर रहे थे, उन बालकों को वही नृसिंह रूप दिखाया था, उन्हें यह समझाया था कि मेरे अनेक रूप हैं, मैं वही नृसिंह हूँ।

 हे बालकों! आप लोग प्रहलाद पंथी हो, तुम्हें मैं लेने के लिए आया हूँ। मैं तुम्हें ग्रहण करूंगा। अपने पास सत्यलोक में ले जाऊंगा, आ जाओ मेरे पास में खेल खेलते हैं। अन्तिम जीत तो हमारी ही होगी किन्त बालक तो बालक ही ठहरे। वे क्या जाने नृसिंह अवतार को, वे तो डर ही गये।

 भगवान ने बतलाया कि मैं जो भी कार्य करता हूँ, वह असली ही करता हूँ, नकली कार्य के लिए यहाँ अवकाश नहीं है। दुनिया के लोग तो दिखावा करते हैं। मैं इस दिखावे, पाखण्ड का खण्डन करने हेतु यहाँ पर आया हूँ। तुम लोग भ्रमित हो गये हो, तुम्हारा सत्य असत्य का विवेक नष्ट हो गया है, उसकी पुनः स्थापना हेतु मैं आया हूँ।

जब तुम लोगों ने कहा सिँह बनो तो मैं सिँह बन गया था। आपने देखा होगा कि मैंने किसी को मारा नहीं किन्तु तुम लोग भय से कम्पित हो गये मैं तुम्हारे पापों को कम्पित करके उन्हें बाहर निकाल दूंगा। तुम्हारी हृदय की धड़कन बढ़ जायेगी, तुम्हारे पाप जगह छोड़कर भाग जायेंगे। इसीलिए तो मैनें यह विकराल रूप तुम्हें दिखलाया था, किन्तु तुम लोग समझ नहीं पा रहे हो। न भी समझो तो भी मेरे समर्पण हो जाओ।

आप लोगों ने देखा होगा कि मैं तुम्हारे समर्पित हूँ, जैसा तुमने कहा, वैसा मैनें किया। जब तुमने कहा कि सिँह बन जाओ, तब मैं सिँह बन गया और जब तुम डर गये तब तुमने कहा यहाँ से चले जाओ तो मैं चला गया इसमें मेरा कोई भी दोष नहीं है। मैं पूर्णतया तुम्हारे आधीन हूँ। गुणिया म्हारा सुगणाचेला,सुगना का दासू।

धर्म की स्थापना हेतु सिँह भी बनना पड़ेगा, बिना कठोरता ग्रहण किये पापी दुष्टजन काबू में नहीं आते हैं। उन्हें सन्मार्ग में लाने के लिए साम दाम दण्ड तथा भेद की नीति अपनानी होगी। इसमें कुछ कष्ट भी होगा किन्तु उसका फल सदा ही मीठा होगा यदि पहले ही सुख चाहता है उसका परिणाम कड़वा ही होगा। तपस्या का फल सदा ही मधुर होता है।

खेल खेलना भी एक रोचक तथा तथ्य युक्त कर्म है। परमात्मा ने सृष्टि की रचना भी खेल खेलने के लिए की है। सभी शरीरधारी अवतारों ने अपने-अपने तरीके से खेल खेला है। आदि सूत्रों से ऐसा ज्ञात होता है कि एकाकी न रमते अकेले से खेल नहीं खेला जाता। उसे भी एक से अनेक होना होता है। तभी खेलरूपी कार्य सम्पन्न होता है। यह सम्पूर्ण सृष्टि तथा उतार चढ़ाव सुख-दु:ख सभी कुछ खेल ही है।

 विशेष रूप से बाल्यावस्था तो ब्रह्म के अति निकट है। क्योंकि बाल्यावस्था में खेल-खेलने की प्रवृत्ति स्वाभाविक है। ब्रह्म स्वयं क्रीड़ा रूप आनन्द ही है। वहीं बालक भी आनन्दस्वरूप ही होता है, इसलिए बालक स्वतः ही सभी के लिए प्रिय होता है, ब्रह्म भी सभी के लिए आनन्द स्वरूप है।

 सभी पींपासरवासी जाम्भोजी के आनन्द से आनन्दित होते थे एक बात की कमी उन्हें कष्ट भी देती थी कि राह बालक अन्य बालकों की भांति बोलता नहीं है, पांच समय भोजन, दुग्धाहार नहीं लेता। यदि हमारी तरह यह व्यवहार करे तो कितना अच्छा होता, हम लोग कृत्य-कृत्य हो जाते, अपना जीवन सफल कर लेते।

 कुछ पता नहीं लोहटजी समझदार होते हुए भी अपने इस प्रकार के मौनी बेटे के लिए कोई उपाय क्यों नहीं करवाते। इस समय नागौर में एक पूरबिया पुरोहित आया हुआ है सुना है कि देवी की आराधना करता है। हम क्षत्रिय भी देवी के उपासक है, लोहटजी ने देवी की उपासना नहीं करवाई थी, इसलिए हो सकता है कि देवी माता कुपित हो गयी हो। बालक के लिए स्वयं अड़चन के रूप में खड़ी हो गयी होगी।

 भाईयों! लोहट कंजूस है, कहीं रूपये खर्च न हो जाये इसलिए कोई उपाय तंत्र-मंत्र आदि पुरोहित को बुलाकर नहीं करवाते। पुरोहित ने तो इस लोहट के लाला का नाम भी जय अम्बेश्वर रखा था, जो यह नाम, यथा नाम तथा गुण से युक्त है। पुरोहितजी को तो यह बालक अम्बा का ईश्वर ही दिखाई दिया था फिर भी अम्बा कभी कभी अपने स्वामी स्वयंभू से रूठ भी जाती है।

 इस बार भी हो सकता है रूठ गयी हो और बालक रूप जय अम्बेश्वर से कुछ अपना स्वार्थ सिद्ध करवाना चाहती हो। यदि पुरोहित अम्बा देवी को प्रसन्न करे और दोनों में समझौता हो जाये तो कुछ समय के लिए यह अम्बा का ईश्वर, यहां मृत्युलोक मे अम्बा से बिछुड़ कर रह सके, हमें कल्याण के मार्ग पर अग्रसर कर सके।

Must Read: गौचारण अवस्था जम्भेश्वर भगवान की ………समराथल धोरा कथा 4

 ग्रामीणजन कहने लगे- भाईयों सुनो! लोहट तथा हांसा तो मोह तथा प्रेमवश जय अम्बेश्वर को लाड -प्यार में जाम्बा कह करके पुकारते हैं उनके देखा देखी हम भी ऐसा ही कहते हैं। असल में तो वह क्या है यह तो वही जाने।

लोहटजी ने कर्ण परम्परा से ग्रामीणजनों की यह वार्ता सुनी और हांसा से कहने लगे-हे देवी! गाँव के लोगों की बातें तो बड़ी विचित्र है कोई कुछ कहता है और कोई कुछ और ही कथन करता है जितने मुख उतनी ही बातें, हम लोग क्या करें, और क्या न करें।

 वैसे तो अपना लाडला बिल्कुल ठीक है, बहुत ही अच्छा है, किन्तु लोगों के कथन तथा मैं स्वयं ही अनुभव करता हूँ कि यह बालक सामान्य नहीं है, हमें कोई उपाय तो अवश्य करवाना चाहिये। हमारे कुल देवता हमारे पर प्रसन्न नहीं है, पता नहीं क्यों हमारे से विरोध बाँध रखा है?

 यह बालक तो हमें वृद्धावस्था में छापर के वन में एक योगी के आशीर्वाद से प्राप्त हुआ है। वह योगी ही हमारे घर को तथा कुल को पवित्र करने के लिए आया है। मैं ऐसा मानता हूँ। मेरे पास-धन दौलत, दूध-घी, अन्न आदि के भण्डार भरे हुए हैं, यह किसलिये? यह सभी कुछ अपनी सन्तान के लिए ही तो होता है, किन्तु यह पुत्र तो कुछ खाता-पीता भी नहीं है फिर क्या काम आयेगा? मेरा मन तो तभी प्रसन्न हो जब पाँच समय भोजन करे, अन्य साधारण बालकों की भांति जीवन यापन करे।

हो सकता है कि ये हमारे देवी-देवता ही इन्हें रोक रहे हो, इसकी भूख-प्यास स्वयं पी जाते हो, न जाने मेरे बेटे पर ये लोग क्यों कुपित हो रहे हैं। मेरी तपस्या का फल इन्हें अच्छा क्यों नहीं लगता, देवता तो स्वभाव से ही ईर्ष्यालु होते हैं, मेरी सम्पति, मेरा सुख, आँगन में बालक की किलकारी इनसे नहीं देखी जाती।

मैं नागौर जाता हूँ और खेमनराय पूरबिये को यहां से आता हूँ, उससे मंत्र पढ़वाऊंगा, देवता को प्रसन्न करवाऊंगा, देवी प्रकोप को शांत करवाऊंगा। ऐसा कहते हुए हाँसा से अनुमति लेकर प्रात:काल ही चले और सांझ होने से पूर्व ही नागौर पंहुच गये। नागौर में जाकर पूरबिये पुरोहित का पता पूछा राजपोर में स्थान बताया।

 लोहटजी ने विचार किया- राजदरबार में रूका हुआ है तो पुरोहित तो कोई बहुत उच्चकोटि का सिद्ध होगा, लोहटजी प्रात:वेला में पुरोहित के पास पहुचे और प्रणाम किया। पुरोहित ने आदर-सत्कार करते हुए आने का कारण पूछा। लोहटजी ने बतलाया कि हमारे एक ही पुत्र है वह सामान्य बालकों की तर नहीं है,

आओ गणनायक राजा, तेरी दरकार है: भजन (Aao Gananayak Raja Teri Darkar Hai)

हरी हरी भांग का मजा लीजिये: भजन (Hari Hari Bhang Ka Maja Lijiye)

कथा कहिए भोले भण्डारी जी - भजन (Katha Kahiye Bhole Bhandari Ji)

वैसे तो सामान्य बालकों से भी कहीं अधिक स्याना है, किन्तु फिर भी हम आपके पास आये हैं आप इन्हें अन्य बालकों की तरह ही कर दीजिये मेरी तथा बालक की माँ तथा सम्पूर्ण प्रजा को यही भावना है।

हमें तो यह विचित्रता अच्छी नहीं लगती। ये लोग कहते हैं यह बालक ऐसा क्यों हे? कई-कई लोग तो ऐसा कहते हैं कि इस पर देवता का प्रकोप है। कोई देवता ही इसमें प्रवेश करता है तभी कुछ अनहोनी बात करता है, किन्तु सच पूछो तो मेरा तो मत यह है कि यह स्वयं ही देवता है। कुछ ऐसी उच्चकोटि को ही ज्ञानवार्ता करता है, हमारे तो समझ के ही बाहर की बात है, कुछ खाना-पीना तो आवश्यक नहीं है। देवता तो अमृतपान करते हैं। उसके प्रताप से युगों-युगों तक जीते हैं। मैं तो बस इतना ही जानता हूँ, बाको आप जानें।

 हे पुरोहित ! इस बारे में तो आप ही मेरे से अधिक जानते हैं, हमें क्या करना चाहिये जिससे मेरा बालक ठीक हो जाये। खेमनराय पुरोहित ने अनुमान लगाया कि यह ग्रामपति ठाकुर है अच्छी दक्षिणा मिलेगी, क्यों छोड़ी जाये?

पुरोहित कहने लगा- आप ठाकुर साहब चिन्ता न करें, मैं आपके बालक को बिल्कुल ठीक कर दूंगा। किन्तु दक्षिणा के रूप में दो गाय तथा सौ रूपया नगद लूंगा। तंत्र-मंत्र द्वारा देवी की आराधना करूंगा, यदि आपको स्वीकार हो तो चलूं।

लोहट जी ने कहा- शीघ्र चलिये! आपके पास पुस्तक कपड़े आदि हैं तो मेरी गाड़ी में रख लीजिये तथा आप स्वयं बैठिये। जो आप कहेंगे वही मैं करूंगा। आप हमारे पुरोहित हैं हम आपके यजमान हैं ऐसा कहते हुए पुरोहित को गाड़ी में बैठाकर प्रात:काल चले शाम को पींपासर पंहुच गये।

 पींपासर में गौ के गोबर से घर लिपवाया, आँगन के बीच में एक चौक पुरवाया कुम्हार के घर से चौषठ छेदवाला कलश बनवाकर मंगवाया, एक कलश जल को भरकर रखवाया, एक सौ आठ चौमुख दीपक मंगवाया इत्यादि । सभी सामान एकत्रित करवाकर रविवार प्रातःकाल ही स्वयं पुरोहित चौकी पर रेशमी गद्दी बिछाकर के बैठा तथा बालक जम्भेश्वर को धरती पर बैठाया।

सभी दीपक तेल से भरवाये तथा उनमें रूई की बती बनाकर चौमुखी ज्योति का प्रयत्न किया। प्रातः ही तंत्र-मंत्र-स्तोत्र पढ़ना प्रारम्भ किया, दोपहर तक पढ़ते रहे, चुन-चुनकर उड़द फेंकते रहे। फूं-फूं का ध्वनि पुरोहित बार-बार करता रहा। सूर्य देव तपने लगा, गर्मी में पुरोहित बेहाल हो गया। कुछ अन्य कार्य करता रहा, जिससे लोहट को विश्वास हो जाये कि कुछ कार्य हो रहा है।

जाम्बोजी कुछ नहीं बोल रहे हैं केवल पुरोहित की पाखण्ड लीला देखते हुए मंद-मंद मुस्करा रहे हैं। ज्यों-ज्यों पुरोहित निस्तेज होता जाता है। त्यों-त्यों जाम्भोजी अधिक तेजस्वी होते जाते हैं। अपनी मंत्र विद्या असफल देखकर पुरोहित उदासीन होता जा रहा है, किन्तु अब तक मंत्र विद्या द्वारा दीपक जलाकर अंतिम कार्य करना बाकी ही था।

पुरोहित ने कहा- अभी मैं दीपक जला लेता हूँ, फिर मैं कार्य सफल करूंगा। बिना दीपक ज्योति के देवी-देवता प्रसन्न नहीं हो रहे है क्योंकि इस पर कोई देवता जबरदस्त रूठा हुआ है, ऐसा कहते हुए एकसौ आठ चौमुख दीपक उपस्थित थे, उनमें रूई तेल भरकर जलाने का प्रयत्न करने लगा परंतु ज्यों ज्यों जलावे त्यों-त्यों बुझ जावे। यदि रूई, तेल, वाट, दीपक तथा वायु रहित स्थान सभी कुछ ठीक-ठाक है, किन्तु दीपक नहीं जलते यह भी कोई आश्चर्य ही है पुरोहित ने ऐसा आश्चर्य जीवन में प्रथम बार ही देखा था।

हाथ जोड़कर विनती करने लगा- अब तो मैं हार गया मेरे से यह बालक ठीक नहीं होगा, देवता लोग इससे रुष्ट है। उन्हें मनाने के लिए कुछ और उपाय करना पड़ेगा। ऐसा कहते हुए पुरोहित उठ खड़ा हुआ। जाम्भोजी ने सुना कि यह पुरोहित तो कुछ अन्य उपाय की बात कर रहा है। यह सात्विक पूजा छोड़कर अवश्य ही कुछ तामसी पूजा यहाँ पर ही तुम्हारे सामने ही करेगा। पूर्व पुरोहित की भाँति यह श्मशान सेवी बकरों की बलि भी चढ़ा सकता है। यह कार्य प्रारम्भ करे इससे पूर्व ही इसे कुछ अलौकिक चमत्कार दिखाकर के उस कार्य से निवृत्त करना चाहिये।

वहाँ से उठे, एक बालिका सूत कात रही थी, उसके पास से कच्चा धागा लिया, कुम्हार के घर से कच्चा मिट्टी का घड़ा लिया, कुएँ पर पंहुचकर धागा घड़े के बाँधकर कुएँ में लटकाया और जल | निकालकर वहां से जल से भरा हुआ घड़ा लेकर वापिस अपने घर पंहुचे और दीपकों में जल डाला, अग्नि देवता को आज्ञा प्रदान की चुटकी बजाई सभी दीपक एक साथ जल उठे।

 उस पुरोहित तथा एकत्रित सभी ग्रामवासियों ने देखा। सभी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया, जयजयकार करते हुए कहा- हे जय जम्भेश्वर, आप तो वास्तव में अम्बा लक्ष्मी के पति परमेश्वर स्वयं विष्णु शिव रूप हो, जय जंभेश्वर, जय जंभेश्वर कहते हुए सभी ग्रामीणजनों ने हर्षध्वनि की।

 जांबा जी बोले- हे पुरोहित ! अभी आप ठहरो! तुमने कहा था यदि दीपक जल जाये तो मैं बुलवा सकता हूँ, ठीक कर सकता हूँ, अब तो यह देख दीपक बिना तेल घी के ही जल गये हैं ठीक कर दे, देवताओं को राजी कर दे, मेरे माता-पिता को प्रसन्न कर दे, ये सभी ग्रामवासी बाल,वृद्ध, स्त्री-पुरूष तुम्हारे मुख की तरफ देख रहे हैं, चुप क्यों बैठे हो कुछ तो उपाय करो।

पुरोहित लज्जित होकर कहने लगा हे देव! अब तो आप स्वयं ही बोलिये। हम तो संसार के अज्ञानी जीव है, उदरपूर्ति के लिए पाखण्ड करते हैं यह मैं जो देख रहा हूँ यह कोई साधारण बालक का कार्य नहीं है। आप कौन है? क्या आप स्वयं शिव,ब्रह्मा या विष्णु इन तीनों में से कोई एक है? या गोरख, दत्तात्रेय, शुकदेव मुनि में से कोई एक है जो भी आप है स्वयं ही हमें बतलाइये, जिससे हमारा संशय  निवृत्त हो जाये। आपने तो हमारे देखते ही देखते

बामण न परचो दीखाल्यो काच करव नीर राख्यो।। काची माटी का दीवटीया कराय। जामा | जल पुरायो हुकम सू दीया जगाया। तैसे में श्री वायक कह्यौ। जम्बेश्वरजी ने प्रथम शब्द उस समय सुनाया।

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान की बाल लीला भाग 1

Sandeep Bishnoi

Sandeep Bishnoi

Leave a Comment