जाम्भोजी का भ्रमण करना (काबूल में जीव हत्या बंद करवाना) भाग 2
नाथोजी कहते है- हे वह! इस प्रकार से एक सौ पचपन गांव सुखनखां के नाम से थे वे सभी जीव हत्या छोड़ कर विश्नोई पंथ के पथिक बने। इस प्रकार से जहां तहां भी बिछुडे हुए जोव थे उनको वापस पथ के पथिक बनाया।
श्री जाम्भोजी भ्रमण करते हुए काबुल से मुलतान चले आये वहां सूचका पहाड़ पर आसन लगा कर बैठे थे। तेरह खान और बारह काजी दर्शनार्थ आये। जो आये थे उनका पाप ताप मिट गया था उन्होंनें देखा था कि कोई फकीर पहाड़ पर बैठा ध्यान लगा रहा है। एक काजी कपड़े में हड्डी को लपेट कर के श्री देवजी के पास ले आया था।
वह शक्ति- सिद्धि देखना चाहता था। काजी ने वह कपड़े में लपेटी हुई हड़ी दिखाते हुए कहा कि हे पीर जी ! इस कपड़े में लपेटा हुआ क्या है आप सत्य बतलाइए?
जांबे श्रीजी ने हंस करके कहा- इसमें तो सोना है, काजी ने तुरंत कपड़ा हटाया और देखा कि उसमें तो सचमुच सोना ही हो गया। लपेटी तो हड्डी थी किन्तु यह तो सोना बन गई। काजी आश्चर्य चकित होकर सोने की लकड़ी देख रहा था। श्री देवजी ने उन पच्चीस जनों की पहिचान की और उन्हें उपदेश देते
हुए कहा-
हे प्रहलाद पंथ के बिछुड़े हुए जीवो! आगे से कभी जीव हत्या नहीं करना। यह तुम्हारा कार्य नहीं है। यह सोना अपने घर ले जाओ। और हक की कमाई करो। उन्नतीस नियमों का पालन करते हुए सतपंथ के अनुयायी बनकर वापिस अपने गुरु प्रहलाद से जा मिलोगे।
हे विल्ह! इस प्रकार से यह बिश्नोई पंथ चला था और आगे अनेक प्रकार से विस्तार को प्राप्त हुआ था। उन सभी ने पृथक पृथक प्रणाम किया और सदा सदा के लिए अहिंसक होकर अपने जीवन को व्यतीत किया।
वहां पर मुलतान में श्री देवजी सूचना पहाड़ पर विराजमान थे, उस समय उनके पास में सरफ अली और हसन अली दोनों आये और कहने लगे- यदि आप स्वयं खुदाताला ईश्वर है तो कुछ ईश्वरीय चरित्र दिखाना होगा। हम लोग तभी मानेंगे अन्यथा हम पाखण्ड को नहीं मानते है। आप हमें चार बात का प्रचा दीजिए कि जमीन में गड़ा हुआ धन कहां है, यह बतलाइए?
दूसरा प्रचा यह दीजिए कि मृतक पशु को पुनः जीवित कर दीजिए। तीसरा प्रचा यह दीजिए कि हम आपके शरीर पर चोट मारेंगे तो भी आपके शरीर में घाव न हो पाये। चौथा प्रचा यह होना चाहिए कि आप खाना पीना न करें यदि ये चार प्रचे पूर्ण हो जाये तो आप ईश्वरीय अवतार है अन्यथा आप कोई साधारण फकीर ही है।
जम्बेश्वरजी कहने लगे- आप लोग इस पहाड़ी के उत्तर की तरफ उस पीपल को देख रहे हो, उसके नीचे चार टोकणा जमीन में दबे हुए। ये चारो बरतन अनहरद ने रखे थे सरफ अली पूर्व जन्म में अनहारद ही था उन टोकणों पर नाम लिखा हुआ है। हे सरफ अली! पूर्व जन्म का तुम्हारा ही गाढा हुआ
धन वह तेरा ही है उसे ले ले। तुम्हें इस धन की वजह से पूर्व जन्म की याद हो आयेगी। अनेको जन्मों में भटका हुआ मनुष्य वापिस अपने स्थान में धर्म में कभी न कभी तो आही जायेगा।
हे हसन अली! तुम्हारी कोख में यह हींग का थैला है, इसे तुम धरती पर रखो और फिर ईश्वरीय करामात देखो। हसन अली ने श्री देवजी के कथनानुसार ज्योंहि थैला नीचे रखा त्योंहि उस थैले में से एक मृग निकल कर वन में छलांग लगाता हुआ भाग गया। हे हसन! तुम्हारे हाथ में तलवार है इसी से हो मेरे शरीर पर मार कर देखो। आज्ञा सुन कर हसन अली ने शरीर पर तलवार चलाई किन्तु कहीं भी शरीर में स्पर्श नही कर सकी। हवा में खाली ही निकल गयी।
मेरी भावना: जिसने राग-द्वेष कामादिक - जैन पाठ (Meri Bawana - Jisne Raag Dwesh Jain Path)
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गौ चारण लीला भाग 4
हे जग स्वामी, अंतर्यामी, तेरे सन्मुख आता हूँ! (He Jag Swami Anataryami, Tere Sanmukh Aata Hoon!)
जिसके शरीर में तीक्ष्ण तलवार का घाव नहीं लग सका सका तो वह शरीर तो दिव्य ही होगा। इन पांच महाभूतों से तो शरीर की उत्पति नहीं होगी तब खाना पीना भी किस लिये होगा। पांच तत्वों द्वारा निर्मित शरीर की रक्षा हेतु खाना पीना आवश्यक है।
इस प्रकार से चारों प्रचे पूर्ण हुऐ। अतिशीघ्र हो काजी और खान श्री देवजी के परचित हुऐ उसी समय श्री देवजी ने उनके शब्द सुनाते हुए उपदेश दिया- शब्द” ओउम्! सुणरे काजी सुणरे मुला”””…. दोहा सरफहसन प्रचाविया, गउ छुड़ाई देव।
सतगुरु शब्द सुनावियो, तिसी समय को भेव।
हज काबै का हज करां, काबुल सुखनखान।
सेफन अली हसन अली, इह प्रचे मुलतान।
इनकू प्रचा देय के, आये संभ्रस्याम।
जो बाड़े के जीव थे, तिन्हीं तिन्हीं सूं काम ।
काबूल में जीव हत्या बंद करवाना