आरती जय जम्भेश्वर की

आरती 1: आरती श्री महाविष्णु देवा
आरती श्री महाविष्णु देवा,
सुरनर मुनि जनकरे सब सेवा ।।
पहली आरती शेष पर लौटे,
श्री महा लिछमी चरण पलोटे ।।1।।
दूसरी आरती खीर समंदर ध्यायै,
नाभि कमल शर्मा उप जायै ।।2।।
तीसरी आरती विराट अखंडा
जाके रौम कोटि बिरमंडा ।।3।।
चोथी आरती वैकुंठ विलाशी,
काल अंगुठ सदा अविनाशी ।।4।।
पांचवी आरती घट घट वासा,
हरि गुण गावे उधो दासा ।।5।।
आरती 2: आरती कीजे नरसिंह कंवर की
आरती कीजै नरसिंह कंवर की,
वेद विमल यशगावै मेरे स्वामी जी की।
पहली आरती प्रहलाद उबारे,
हिरणाकुश नख से उदर विदारे ।
दूसरी आरती बावन सेवा,
बलि के द्वारे पधारे हरि देवा ।
तीसरी आरती बैकुण्ठ पधारे,
सहस्त्रबाहुजी के कारज सारे ।
चौथी आरती असुर संहारे,
भक्त विभीषण लंक बैठाये ।
पांचवी आरती कंश पछाड़े,
गोपियां के ग्वाल सदा प्रतिपाले ।
तुलसी के पात घट घट हीरा,
हरि के चरण जस गावे रणधीरा ।
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आरती 3: आरती जय जम्भेश्वर की
आरती जय जम्भेश्वर की,
परम सत् गुरू परमेश्वर की
गुरुजी जब पीपासर आये,
सकल संतो के मन भाये ।
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आरती: श्री रामायण जी (Shri Ramayan Ji)
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देवता सिद्ध मुनि दिगपाल,
गगन में खूब बजावे ताल ।
हुआ उछाह, लोहट नरनाह, मगन मन माह ।
देख छवि निज सुत सुन्दर की, आरती जय….
परम सुख हंसा मन माहीं,
प्रभु को गोदी बेठाई।
नगर की मिली सभी नारी,
गीत गावे दे दे ताली ।
अलापे राग, बड़े हैं भाग, पुण्य गये जाग ।
धन्य है लीला नटवर की। आरती जय …
चराने गऊओ को जावे,
चरित्र ग्वालों को दिखलावे ।
करे सेनी से सब काजा,
रहे योगेश, भक्त के ईस, गुरू जगदीश ।
पार नहीं महिमा प्रभूवर की ।आरती जय ….
गुरूजी फिर समराथल आये,
पंथ श्री बिश्नोई चलवाये ।
होम, जप, तप, क्रिया सारे,
देख सुर नर मुनी सब हारे ।
किया प्रचार वेद का सार जगत आधार ।
सम्मति जिसमें विधि हर की।आरती जय …..
गुरुजी अब सेवक की सुणियौं,
नहीं अवगुण चित में धरियों ।
शरण निज चरणों की रखियों,
पार नैया भव से करियो ।
यही है आस, राखियो पास, कीजियों दास।
कहूं नित जय जय गुरुवर की,
परम सतगुरू परमेश्वर की।
आरती जय जम्भेश्वर की परम सतगुरु परमेश्वर की।