रणधीर के प्रश्न तथा जाम्भोजी के उत्तर

जाम्भोजी के प्रश्न
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जाम्भोजी के प्रश्न

 प्रश्न 24. गुरुदेव ! परमात्मा व जीवात्मा में क्या अन्तर है ?

उत्तर – रणधीर ! परमात्मा व जीवात्मा में सत्ता रूप में कोई भेद नहीं है। परन्तु शासक-शासित का अन्तर है और स्वामी सेवक का सम्बन्ध है। जैसे स्वामी और सेवक में आत्मा की सत्ता तो एक ही है पर अधिकार के कारण अलग दिखाई देते हैं। परमार्थ दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। दोनों की आत्मा एक ही है।

प्रश्न 25. प्रभु ! आप श्री लोहट जी के घर कब प्रकट हुए सो विस्तारपूर्वक कहिए ?

उत्तर- रणधीर मेरे द्वारा नव महीने से अवतार लेने का वचन सम्वत् १५०८ भाद्रपद वदी अष्टमी को पूरा हुआ और उसी दिन अर्द्ध-रात्रि को मैं माता हंसा के सामने प्रकट हुआ।

प्रश्न 26. गुरुदेव ! आप प्रकट हुए या पैदा, इसके बारे में स्पष्ट कहिये ?

 उत्तर – रणधीर प्रकट व पैदा होने में कोई भेद नहीं है। वैसे मैं हुआ तो था प्रकट। पर माता-पिता के संतोष के लिए उन्हें पैदा होने का भाव दिखाया मैं गर्भ के बिना भी आ सकता हूं और गर्भ से भी पैदा हो सकता हूं। मेरे लिए कोई निर्धारित नियम नहीं है जिससे बँध कर मैं कार्य करूं। मैं परम सत्ता हूं। मुझे कोई नियमों में बांध नहीं सकता।

प्रश्न 27. प्रभु ! आपने प्रकट होकर कौन-कौन सी लीलाऐं की ? 

उत्तर – रणधीर ! जिस समय में प्रकट हुआ करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश फैल गया। स्त्रियों ने जब बाल घुंटी देनी चाही तब उन्हें मुख का पता भी नहीं लगा। थोड़ी देर के बाद हजारों मुख देखने लगी कि घुटी किस मुख में दी जाय। ऐसा चमत्कार दिखाकर फिर मैं अन्तर्धान हो गया। मुझे न देखकर सबके सब घबरा गये। सबको घबराया हुआ देखकर मैं पुनः प्रकट हो गया और मुझे देखकर सब प्रसन्न हुए।

प्रश्न 28. प्रभु ! आपके अन्तर्धान होने में कोई विशेष कारण ?

 उत्तर – हां रणधीर ! जब में संसार में अवतार लेता हूं। तब ब्रह्मा आदि सारे देवता मेरी स्तुति करते हैं। स्तुति करवाने के लिए मैं समराथल पर चला गया। इसलिए मुझे पीपासर से अन्तर्धान होना पड़ा।

प्रश्न 29. भगवन् ! आप स्तुति करवाने समराथल पर क्यों गये स्तुति तो पीपासर भी हो सकती थी ?

उत्तर- हां रणधीर ! स्तुति तो पीपासर पर भी हो सकती थी पर समराथल कई युगों से मेरा निवास स्थान रहा है। इसलिए मैंने समराथल पर ही देवताओं द्वारा स्तुति करवाना उचित समझा।

प्रश्न 30. गुरुदेव आपका जन्म-घुंटी न लेने का क्या कारण था ?

 उत्तर- जन्म घुटी न लेने का कारण पिछले कृष्ण अवतार में मैंने माता यशोदा को वरदान दिया था कि अबकी बार मैं तेरी कोख से अवतार तो लूंगा परन्तु इस कृष्ण अवतार की तरह खाना पीना नहीं करूंगा। कृष्ण अवतार में मुझे लीला करनी थी। इस बार मैं नर रूप में निरहारी बन कर आया हूं। मैं अपने ही आधार हूं किसी वस्तु के आधारित नहीं।

प्रश्न 31. गुरुदेव ! यशोदा माता को वचन देने का क्या कारण था ? 

उत्तर- कृष्ण अवतार मैंने देवकी-वसुदेव के घर पर लिया और मेरा लालन पालन माता यशोदा जी ने किया। कंस के बुलाने पर जब मैं मथुरा जाने लगा तब सारी बातें अक्रूर जी ने माता यशोदा से कह दी की यह कृष्ण देवकी का पुत्र है। यह सब बाते जानकर यशोदा जी ने सोचा कि यदि यह कृष्ण मेरी कोख से जन्म लेता तो आज मुझे छोड़कर दूर नहीं जाता। तब माता यशोदा बोली – कृष्ण ! तुमने मेरी कोख से जन्म नहीं लिया। यह मेरे मन की इच्छा अधूरी रह गई। तब मैंने कहा- मां अबकी बार तू होगी हंसा और नन्द जी होंगे लोहट जी मैं तुम्हारे घर पर जाम्भोजी के रूप में अवतार लूंगा।

प्रश्न 32. प्रभु आपने जन्म देवकी के घर पर लिया और सेवा माता यशोदा ने की ऐसा क्यों हुआ ?

उत्तर- रणधीर जब मैंने जन्म लिया उसी समय मेरी आज्ञा से वसुदेवजी ने मुझे मथुरा से गोकुल पहुंचा दिया। वसुदेवजी को भय था कि कहीं कंस मेरे लाला को *** न दें। क्योंकि आकाशवाणी ने कहा था देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक कंस की ****  का कारण होगा। इसलिए मैं ग्यारह वर्षों तक गोकुल में रहा और माता यशोदा ने मेरी सेवा की।

प्रश्न 33. भगवन् ! इस अवतार में आपने जो-जो लिलाएं की वे सब आप मुझे कहिए ?

उत्तर- रणधीर ! मैंने जो लिलाएं की वो सुनो- जन्म घुंटी न लेना, अन्तर्धान होना, पीठ के बल पर न सोना, शरीर पर दिव्य तेज होना, अनेकों रूपों को एक साथ दिखाना, मेरे सामने देखने पर आंखों का चौंधियाना, माता का स्तनपान न करना, अन्धेरे में जाने पर भी प्रकाश का होना, शरीर में अधिक वजन होना आदि अनेकों लीलाएं मैंने की जो मैं आगे तुमको सुनाऊंगा। मैं यौगिक (ऐश्वर्य) चमत्कार दिखाते हुए अनेकों लीलाएं करता था।

प्रश्न 34. गुरुदेव ! आप यौगिक ऐश्वर्य चमत्कार दिखाते हो तो ठीक है पर गुरुदेव ! योग का अर्थ क्या है सो बताइये ?

उत्तर – योग का अर्थ है जुड़ना अर्थात् जीव और ईश्वर इन दोनों का जुड़कर एक होना या तत्वरूप से एक समझना योग है।

 प्रश्न 35. योग के कितने अंग है उनके नाम बताइये ?

उत्तर -योग के आठ अंग है यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार,धारणा, ध्यान और समाधि।

प्रश्न 37. भगवन् ! नियम क्या है ?

उत्तर -रणधीर ! शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान को नियम कहते है।

 प्रश्न 38. आसन किसे कहते है और वे कितने प्रकार के है ?

उत्तर- एक जगह अलग-अलग आकृति बनाकर स्थिर बैठने को आसन कहते है। ये चौरासी प्रकार के हैं।

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प्रश्न 39. प्रभु ! प्राणायाम किसको कहते है और वे कितने प्रकार के है ?

उत्तर – स्थिर आसन से बैठकर श्वास-प्रश्वास की स्वाभाविक गति को रोकना प्राणायाम कहलाता है। यह रेचक, पूरक, कुम्भक करते हुए क्रिया की जाती है। ये मुख्य रूप से आठ प्रकार के है।

प्रश्न 40. भगवन् ! प्रत्याहार किसको कहते हैं ?

उत्तर – रणधीर ! इन्द्रियों को चित्त के अधीन कर मन को रोकना प्रत्याहार है।

प्रश्न 41. प्रभु ! धारणा किसको कहते है ?

उत्तर- •राणधीर ! चित्त को एक स्थान पर एक विषय में बांध देने का नाम धारणा है।

प्रश्न 42. गुरुदेव ! ध्यान का क्या अर्थ है ?

 उत्तर – ध्येय में चित्त को समाहित करना अर्थात् एकाग्रता को ध्यान कहते हैं।

 प्रश्न 43. प्रभु ! समाधि किसको कहते है ?

उत्तर– ध्याता ध्यान और ध्येय इन तीनों को एक करके अंतरमुखी बनना संसार का कोई भान ही न होना समाधि कहलाता है।

 प्रश्न 44. समाधि से क्या मिलता है ? 

उत्तर – समाधि से शान्ति मिलती है।

प्रश्न 45. प्रभु ! आपने किस-किस को ओर क्या-क्या चमत्कार दिखाये ?

उत्तर- रणधीर ! मैंने दूध की कढ़ावणी (कमौरी) हारे (अगीठी) से नीचे उतारकर अपने चरणों का चिन्ह घर के अन्दर अंकित किया। सब बछड़ों को इक्ट्ठा करके बाड़ी (गोष्ठ) में बंद कर दिया। मैंने दीवार पर हाथ रखा वहां हाथ का निशान बन गया। तांतु कोशिश करने पर भी मुझे उठा न सकी। श्री लोहट जी ने मेरे अन्दर परमात्मा का दर्शन किया। सभी लोगों को सर्वत्र एक साथ दर्शन देना।

प्रश्न 46. भगवन् ! आपने अपनी माता का स्तनपान क्यों नहीं किया ?

 उत्तर – रणधीर मैं स्वयं एक क्षण में पूरे ब्रह्माण्ड का भरण पोषण करने में समर्थ हूं फिर मुझे स्तनपान करने की क्या आवश्यकता है ? गुरु आप संतोषी अवरांपोषी तत्व महारस वाणी एक क्षण में तीन भवन म्हें पोखां जीवा जूण समाई। एक पलक में सर्व संतोषा जीया जूण समाई।

प्रश्न 47. प्रभु ! जब आपने कुछ भी ग्रहण (जलपान) नहीं किया ? तब भी लोहट जी ने क्या कोई उपाय किया ?

 उत्तर – रणधीर ! पिताजी ने अनेकों उपाय किये परन्तु सफलता नहीं मिली। एक बार पिताजी मुझे एक तांत्रिक के पास ले गए। उस तांत्रिक ने अनेकों जीवों को मारा और मैंने पुनः उन सब जीवों को जीवित कर दिया। तब उस तांत्रिक के समझ में आई और वह पाखण्ड छोड़कर चला गया।

प्रश्न 48. भगवन् ! आपने कितने वर्षों तक मौन रखा ?

उत्तर – रणधीर ! मैं सात वर्षों तक मौन रहा पर कभी-कभी आवश्यकता के अनुसार बोल जाया करता था। मुझे जलपान करवाने जो तांत्रिक आया और जीव *** तब मैंने उससे कहा- रे नीच, तान्त्रिक ! तुमने तेरह जीवों की ***  इससे तुम्हें क्या प्राप्त हुआ ?

प्रश्न 49. गुरुदेव ! आपने मौन रहते समय क्या-क्या चमत्कार दिखाये ? 

उत्तर- रणधीर ! मैं जो कुछ करता हूं सो सब चमत्कार ही है। मैं अन्धेरे घर में प्रकाश कर देता, कभी घर के ऊपर तो कभी नीचे दिखाई देता, कभी एक रूप में तो कभी अनेकों रूपों में दिखाई देता। ये सब देखकर लोग आपस में काना-फूंसी करते कि भाई यह बच्चा तो कोई अलौकिक जीव है। देखो न तो कुछ खाता है और न कुछ पीता ही है फिर भी कितना हृष्ट-पुष्ट है।

प्रश्न 50. गुरुदेव ! आपने मौन कब तोड़ा सो भी कहिए ?

उत्तर – एक समय ठाकुर साहब ने सुना कि नागौर में एक तांत्रिक आया हुआ हैं उसको ले आऊं। वह अवश्य कोई न कोई उपाय करेगा। ठाकुर साहब रथ पर सवार होकर नागौर गये और उस तान्त्रिक को वस्तु स्थिति बतलाकर पीपासर ले आये। तांत्रिक ने पाखण्ड करना शुरु किया। उसने दीपक जलाना चाहा परन्तु एक भी दीपक नहीं जला सका। दीपक न जलने के कारण तान्त्रिक को क्रोध आने लगा। उसी समय मैं वहां से खड़ा होकर एक कच्चे घड़े में कच्चे धागे से कुए में से पानी भरकर ले आया और सारे दीपकों में से तेल निकाल कर सब दीपकों में पानी भरा और चुटकी बजाई उसी समय सारे दीपक (१०८ दीपक) एक साथ जल उठे।

ऐसा चमत्कार देखकर तांत्रिक लज्जित होकर मेरे पावों में गिर पड़ा। तब मैंने उस तान्त्रिक व अन्य लोगों को सम्बोधित करके सर्वप्रथम शब्द का उच्चारण किया। उस दिन से मैंने मौन व्रत का त्याग कर दिया।

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Sandeep Bishnoi

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