प्रज्ञानं ब्रह्म जिसका शाब्दिक अर्थ है ज्ञान ही ब्रह्म है। यह भारत के पुरातन हिंदू शास्त्र ‘ऋग्वेद’ का ‘महावाक्य’ है चार वेदों में एक-एक महावाक्य का उल्लेख किया गया है।
वह ज्ञान-स्वरूप ब्रह्म जानने योग्य है और ज्ञान गम्यता से परे भी है। वह विशुद्ध-रूप, बुद्धि-रूप, मुक्त-रूप और अविनाशी रूप है। वही सत्य, ज्ञान और सच्चिदानन्द-स्वरूप ध्यान करने योग्य है। उस महातेजस्वी देव का ध्यान करके ही हम ‘मोक्ष’ को प्राप्त कर सकते हैं। वह परमात्मा सभी प्राणियों में जीव-रूप में विद्यमान है। वह सर्वत्र अखण्ड विग्रह-रूप है। वह हमारे चित और अहंकार पर सदैव नियन्त्रण करने वाला है। जिसके द्वारा प्राणी देखता, सुनता, सूंघता, बोलता और स्वाद-अस्वाद का अनुभव करता है, वह प्रज्ञान है। वह सभी में समाया हुआ है। वही ‘ब्रह्म’ है।
यह मंत्र जगन्नाथ धाम या गोवर्धन मठ का भी महावाक्य है, जो कि पूर्व दिशा में स्थित भारत के चार धामों में से एक है।
महावाक्य का अर्थ होता है?
अगर इस एक वाक्य को ही अनुसरण करते हुए अपनी जीवन की परम स्थिति का अनुसंधान कर लें, तो आपका यह जीवन सफलता पूर्वक निर्वाह हो जाएगा। इसलिए इसको महावाक्य कहते हैं।
श्यामा आन बसों वृन्दावन में - भजन (Shyama Aan Baso Vrindavan Me)
श्री गायत्री माता की आरती (Gayatri Mata Ki Aarti)
चौकी तेरी माता रानिये, तेरे बच्चो ने कराई है: भजन (Choki Teri Mata Raniye Tere Baccho Ne Karai Hai)








