अलसस्य कुतः विद्या,
अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम्अ,
मित्रस्य कुतः सुखम् ॥
हिन्दी भावार्थ:
आलसी इन्सान को विद्या कहाँ।
विद्याविहीन/अनपढ़/मूर्ख को धन कहाँ।
धनविहीन/निर्धन को मित्र कहाँ।
और मित्रविहीन/अमित्र को सुख कहाँ।
मेरे कंठ बसो महारानी: भजन (Mere Kanth Baso Maharani)
श्री बद्रीनाथजी की आरती (Shri Badrinath Aarti)
Post Views: 127