जाम्भोजी तथा रणधीर के प्रश्न तथा उत्तर

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प्रश्न 51. गुरुदेव ! आपके प्रथम शब्दोपदेश का अर्थ हम छोटी बुद्धि के लोग कुछ समझे नहीं, आप कृपा करके हमें समझाइये ? 

उत्तर- रणधीर ! “गुरु चीन्हों” उपस्थित सारे लोगों को आदेश दिया कि आप सब लोग परमात्मा को पहचानो इस पाखण्डी के चक्र में क्यों पड़े हो? “गुरु चीन्ह पुरोहित” पुरोहित ! तुम भी परमात्मा रूपी गुरु को पहचान। “गुरु मुख धर्म बखाणी”

गुरु मुखी बनकर धर्म का प्रचार-प्रसार कर जिससे तेरा जीवन सफल हो सके। “जो गुरु होयबा” वे गुरु अर्थात् परमात्मा कैसे हैं ? “सहजे शीले” वे सहज रूप से ही शीलवान है। “शब्दे” परमात्मा शब्द की भांति व्यापक है। “नादे वेदे” उनकी नाद अर्थात् वाणी से वेद प्रकट होते हैं। “तिहि गुरु का आलिंकार पिछाणी” उन परमात्मा रूपी गुरु के लक्ष्णों को पहचानों। “छ” दर्शन जिहीं के रुपण थापण जिसके रूप का बखान छः दर्शनों में हुआ हैं। 

“संसार बरतण निज कर थरप्या” उन ईश्वर ने संसार रूपी बर्तन को स्वयं अपने हाथों से बनाया है। “सो गुरु प्रत्यक्ष जाणी” वह गुरु कोई और नहीं मैं ही हूं जो तेरे सामने प्रत्यक्ष हूं। “जिहिं के खरतर गोठ निरोतर वाचा” मेरे बारे में शास्त्रीय गोष्ठियां निरुतर हो जाती है क्योंकि मैं वाणी का विषय नहीं हूं। मन से मन के पार जाने पर जाना जाता हूं। “रहिया रुद्र समाणी” जैसे शरीर में  समाया हुआ है उसी प्रकार मैं संसार में सर्वत्र व्यापक हूं। 

“गुरु आप संतोषी अवरां पोषी” मैं स्वयं सन्तोषी हूं पर दूसरों का भरण पोषण करता हूं। “तत्व महारस वाणी” मेरी वाणी तत्व से पूर्ण है अर्थात् रसमयी है। सागगर्भित है। सम्पूर्ण तत्वों से युक्त है। “के के अलिया बासण होत हुताषण” जैसे मिट्टी के आले (कच्चे) बर्तन अग्नि के संग से पक जाते है। “तामै खीर दुहीजू” उसमें कोई भी प्रकार के तरल पदार्थ रखे जा सकते है। उसी प्रकार मेरा संग करने से मानव में ज्ञान ग्रहण करने की शक्ति आ जाती है। “रसूवन उसके लिए संसार में किसी तरह का रस शेष नहीं रहता।

“गोरस” छाछ की तरह रह जाता है। “घीय न लीयूं घी निकालने के बाद “तहां दूध न पाणी” वह न दूध न पानी रहता है। गुरु ध्याई रे ज्ञानी” इसलिए हर मानव को ही ज्ञानी गुरु की शरण जाना चाहिए। “तोडत मोहा” वे मोह को तोड़ देंगे। “अति खुरसाणी” जैसे खुरसाण पत्थर से “छीजत लोहा” लोहा घिसता है उसी प्रकार ज्ञान के द्वारा मोह ममता को घिसकर (रगड़कर) उतार देंगे। 

“पाणी छल तेरी खाल पखाला” अतः तान्त्रिक ! तेरा शरीर पानी की मसक की तरह है। इसलिए सावधान हो जा। “सतगुरु तोड़े मन का साला मन का भ्रम तो सतगुरु ही मिटा सकते है। “सतगुरु हां तूं सहज पिछाणी अतः मैं सतगुरु, परमात्मा, ईश्वर आदि सब कुछ हूं। तू सहज रूप से पहचान। “कृष्ण चरित बिन काचै करवै रहयो न रहसी पाणी” क्योंकि ईश्वर सत्ता के बिना कच्चे घड़े में पानी नहीं रह सकता। रणधीर! इस शब्द के भाव को समझकर जीव संसार से मुक्त हो जाते हैं। 

प्रश्न 52. प्रभु ! आप जिस समय श्री कृष्ण थे। उस समय मैं किस रूप में था ?

उत्तर- रणधीर ! जिस समय मैं कृष्ण रूप में था। उस समय तू अर्जुन था। संसार में जब भी आना होता है। हम दोनों साथ में ही आते है। महाभारत युद्ध के समय तुम्हारे पूछने पर मैंने तुम्हें गीता का उपदेश किया था। 

प्रश्न 53. भगवन् ! गीता उपदेश से मुक्ति हाथ लग जाती है फिर मेरी मुक्ति क्यों नहीं हुई ?

उत्तर- रणधीर ! मेरी लीला के सहयोगी होते है कारक पुरुष, उनकी मुक्ति नहीं होती। वे समय-समय पर मेरा कार्य करने के लिए संसार में आते रहते हैं इसलिए तेरी मुक्ति नहीं हुई क्योंकि तू कारक पुरुष है। 

प्रश्न 54. सर्वात्मन ! क्या संसार में मेरा हमेशा के लिए आना जानाहोता ही रहेगा ? मैं मुक्त नहीं होऊंगा ?

उत्तर – रणधीर ! नर और नारायण दोनों हमेशा साथ ही रहते है। मैं नारायण और तू नर है। अतः अब विचार कर की मुक्त होना है या कार्य करते रहना है।

प्रश्न 55. प्रभु ! यह बताइये कि आपका नामकरण किसने किया ? 

उत्तर – रणधीर ! एक बार मेरे पिताजी एक विद्वान ब्राह्मण को बुला कर लाये। ब्राह्मण से कहा- ब्राह्मण देव ! आप मेरे पुत्र का नामकरण करो। ब्राह्मण मुझे देखकर कहने लगा। ठाकुर साहब आपके बालक में तो साक्षात् विष्णु भगवान के से लक्ष्ण दिख रहे हैं। यह अनामि (बिना नाम वाला) है। या ऐसे मानो कि सारे नाम ही इसके है। आपका यह बालक जगत् में प्रकाश करने वाला होगा। इसलिए संसार में लोग इन्हें जम्भ नाम से पुकारेंगे। बोलने की सुविधा अनुसार जाम्भोजी भी कहेंगे।

 प्रश्न 56. गुरुदेव ! आपके नामकरण के बाद कौन सा संस्कार करवाया ?

उत्तर – रणधीर ! नामकरण संस्कार के बाद कर्णवेध संस्कार करने के लिए एक सुनार आया और मेरे कानों में (मुरकी) कुण्डल डाले। परन्तु कुण्डल (मुरकी) नीचे गिर गया। यह देख लोगों ने सोचा कान टूट गया। पर देखा तो कान में छेद भी नहीं हुआ। कितनी ही बार सुनार ने प्रयत्न किये परन्तु सफलता नहीं मिली। आखिर हार मान कर सुनार खाली हाथ लौट गया।

प्रश्न 57. गुरुदेव ! आपने गऊंओं को चराने की लीला कब प्रारम्भ की ?

उत्तर रणधीर ! जिस दिन मैंने पुरोहित को उपदेश किया उसके बाद मेरे लिए किसी तरह का उपचार नहीं करवाया गया और मैंने गायों को चराने का कार्य शुरु कर दिया। मैं सर्वप्रथम भ्रमण करता हुआ सभी जीवों की खोज करने लगा क्योंकि मैं खोजी हूं और उत्तम जीवों की खोज करने के लिए ही मेरा इस संसार में आना हुआ है।

प्रश्न 58. गुरुदेव ! आपने बरसात किस उद्देश्य से करवाई सो कहिये ? 

उत्तर- रणधीर ! एक दिन की बात है पिताजी ने मुझे पानी लाने को भेजा। मैं सर्वत्र घूम-फिर वापस खाली घड़ा लेकर आ गया। पिताजी ने पूछा- घड़ा खाली लेकर क्यों आया ? मैंने कहा- पिताजी! मुझे कहीं भी शुद्ध पानी नहीं मिला। इसलिए मैं खाली घड़ा लेकर आ गया। पिताजी व्यंग्य से भरे वचन कहने लगे – घर में पानी नहीं और तालाब का पानी शुद्ध नहीं है। तब तू मेह बरसा दे पिताजी के कहने की देरी थी। बस पिताजी के कहते ही मैंने आकाश की ओर इशारा (संकेत) किया और झमाझम बरसात होने लगी। देखते ही देखते बिना बादलों के पानी ही पानी हो गया।

प्रश्न 59. प्रभु ! किस शक्ति के कारण आपने बिना बादल के बरसात की ?

उत्तर- रणधीर ! मनुष्य ईश्वरीय शक्ति का ही एक अंश है। वह ईश्वरीय शक्ति सर्वत्र स्वतन्त्ररूप से कार्य करती है। उन्हें दूसरों के सहयोग की आवश्यकता नहीं है। मैं ईश्वर होने के कारण कोई असम्भव कार्य को संभव कर सकता हूं। मुझे किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं है।

 प्रश्न 60. गुरुदेव ! ईश्वरीय शक्ति हर किसी को मिल सकती है क्या ?

 उत्तर- हे रणधीर ! अभिन्न रूप से ईश्वर चिन्तन करने से आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है। और आन्तरिक शक्ति ईश्वर रूप में परिवर्तित होकर आलौकिक कार्य करने की शक्ति आ जाती है|

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 प्रश्न 61. गुरुदेव ! ईश्वरीय शक्ति क्या है ?

उत्तर – रणधीर ! परमात्म शक्ति ही ईश्वरीय शक्ति है जो परमात्मा का अभिन्न रूप से चिन्तन करता है। उसमें यह शक्ति पाने की योग्यता आ जाती है और वह भी अलौकिक कार्य करने लगता है पर ईश्वर नहीं हो सकता। कुछ अंश में ईश्वरीय काम कर लेता है। जिससे लोग उसको भी भगवान मानने लग जाते है। भगवान तो वह सत्ता है जो एक क्षण में ब्रह्माण्ड की रचना कर सकते है परन्तु जीव ऐसा नहीं कर सकता।

 प्रश्न 62. भगवन् ! आपमें शक्ति अर्जित की हुई है या स्वाभाविक ही है ?

उत्तर- हे रणधीर ! मैं स्वयं ही ईश्वर हूं। मेरी आराधना करने से जीव में शक्ति संग्रहित होती है। जिससे वह जीव कुछ ऐसा कार्य कर देता है। जो सामान्य मानव नहीं कर सकता।

प्रश्न 63. गुरुदेव ! क्या जीव भगवान हो सकता है ?

 उत्तर – रणधीर ! जीव भगवान नहीं बन सकता है परन्तु भगवान में मिल कर जीव भाव मिटा सकता है। जीव व ईश्वर सत्ता दोनों एक हो जाती है। जैसे एक बूंद का कोई अस्तित्व नहीं रहता। ऐसे ही जीव भगवान में मिलकर भगवानमय हो जाता है अर्थात् बूंद सागर हो जाती है ऐसे ही जीव ईश्वर हो जाता है।

प्रश्न 64. गुरुदेव ! बूंद और सागर दोनों में जल तो एक ही है फिर अन्तर क्या है ?

उत्तर हे रणधीर ! बूंद में सागर की तरह लहर नहीं उठती। बूंद सागर में मिल सकती है पर सागर बूंद में नहीं मिल सकता अर्थात् सागर बूंद नहीं हो सकता। परमात्मा सागर की तरह है वह जैसे चमत्कार दिखा सकते है वैसा जीव नहीं कर सकता। एक बार मैंने भी राव दूदा को चमत्कार दिखाया और वरदान दिया।

प्रश्न 65. गुरुदेव ! आपने राव दूदा को क्या वरदान दिया और क्यों दिया ?

उत्तर- रणधीर ! एक बार राव दूदा को उसके भाई ने देश निकाला दे दिया और जिससे वह एक दिन घूमता हुआ वह पीपासर पहुंचा। उस समय मैं कुवे पर गायों को संकेत करके पानी पिला रहा था। मेरी आज्ञा के अनुसार गायों को पानी पीते देखकर राव दूदा के मन में आया कि इनके पास जाकर कुछ मांग लूं। जब मैं गायों को लेकर रवाना हुआ। उस समय राव दूदा भी घोड़े को दौड़ाता हुआ मेरे पीछे-पीछे चला। परन्तु मेरी और राव दूदा की दूरी उतनी ही बनी रही जितनी पहले थी। 

जिस समय राव दूदा घोड़े को छोड़कर पैदल चला तब मेरे पास पहुंचा। पास आते ही मैंने उसको एक केर की लकड़ी दी। जो राव दूदा के हाथ में आते ही खांडा बन गई। तलवार के साथ वरदान भी दिया कि अब तुम अपने घर जाओ तुम्हें अपना राज्य मिल जायेगा। लकड़ी की तलवार बनने पर राव दूदा को विश्वास हो गया कि अब राज्य भी मिल जायेगा। ऐसा सोचकर राव दूदा मेड़ते चला गया। मेड़ते में पहुंचने पर दूदा का स्वागत हुआ और राज्य भी वापस कर दिया गया। राव दूदा के जाने पर एक ठाकुर आया उसको मैंने मीठे पानी का कुआ बताया।

प्रश्न 66. गुरुदेव ! आपने मीठे पानी का कुआ कहां बताया ?

 उत्तर – रणधीर ! खीचियासर के ठाकुर को उसके गांव में मैंने एक मीठे पानी का कुआ बताया। वहां आज तक लोग इस कुए का मीठा पानी पीते हैं। और साथ ही साथ मेरा गुणगान करते हैं। यदि मेरे प्रति श्रद्धा और विश्वास रखेंगे तथा मेरे द्वारा बताये हुए नियमों का पालन करेंगे तो आगे भी पानी का अभाव नहीं आयेगा। मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मैंने एक ही दिन में खेत निपजाया अर्थात् खेत की फसल को पकाया।

प्रश्न 67 प्रभु ! आपने खेती करके एक ही दिन में फसल क्यों पकाई ?

 उत्तर – रणधीर ! मैं भक्तों के वश हूं। ठाकुर साहब ने एक दिन बात चलाई कि बेटा कुछ कार्य नहीं करता। उनकी बात सुनकर मैंने दो बछड़ों को लिया और खेत चला गया। खेत जाकर मैंने बछड़ों को आज्ञा दी कि तुम अपने आप हल चलाते रहो। मेरी आज्ञा से बछड़े अपने आप चलने लगे। बीज भी अपने आप गिरने लगा। मैं दूर जाकर खड़ा हो गया। देखते ही देखते खेत की जुताई हो गई और बाजारा, मोठ, मूंग, तिल आदि अनाज उग कर बड़े हुए। पूरा खेत अनाज से भर गया। मैंने उस खेत से अनाज उठाकर घर में अलग-अलग अनाज की ढेरियां लगा दी और पिताजी से कहा  पिताजी ! यह अनाज आपके जीवन में कभी भी कम नहीं पड़ेगा।

प्रश्न 68. प्रभु! एक ही दिन में फसल कैसे पक गई ?

 उत्तर -रणधीर ! मेरी शक्ति को कौन जान सकता है? मैं क्षण मात्र मे सृष्टि की रचना करके पुनः प्रलय भी कर सकता हूं। मेरे लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।

प्रश्न 69. भगवन् ! आपके द्वारा प्राप्त अन्न कब तक चलता रहा ?

उत्तर- रणधीर ! मेरे द्वारा प्राप्त अन्न ठाकुर साहब के जीवन भर चलता रहा। मैं एक श्वास में सम्पूर्ण जीव योनी का भरण पोषण कर सकता हूं। केवल इस भूलोक के ही नहीं सूतल आदि लोकों में भी मेरा आना जाना होता रहता है।

प्रश्न 70. गुरुदेव ! आप सूतल लोक कब व किसलिए गए ?

 उत्तर- एक दिन की बात है सारे ग्वाल बाल मेरे पास आकर कहने लगे आज हम सब आंख-मिचौनी का खेल खेलेंगे। पहले सारे बच्चे छिपने गये तो क्या देखते हैं कि जहां भी वे जाते है वहीं पर में दिखाई देता हूं। 

आखिर हार कर बच्चे बोले भगवन् ! अब आप छिपो हम आपको खोजेंगे। तब में छिपकर सूतल लोक में जहां प्रहलाद का पौत्र बली रहता है उनके पास गया। जहां पर चार लाख प्रहलाद के अनुयायी भक्त थे उन भक्तों को दर्शन देकर कृतार्थ किया अर्थात् उनका कल्याण किया। उनका कल्याण करने के बाद मैं समराथल पर प्रकट हुआ। मुझे देखकर सभी बालक अति प्रसन्न हुए।

Sandeep Bishnoi

Sandeep Bishnoi

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