दिया थाली बिच जलता है,
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के माथे पे टीका है,
माँ की बिंदिया ऐसे चमके,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के गले में हरवा है,
माँ के झुमके ऐसे चमकें,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
माँ के हाथों में चूड़ियां है,
माँ के कंगन, मेंहदी ऐसे चमके
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
मां के पैरों में पायल हैं,
मां के बिछुए ऐसे चमके,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥
कार्तिक मास माहात्म्य कथा: अध्याय 4 (Kartik Mas Mahatmya Katha: Adhyaya 4)
जय शनि देवा - श्री शनिदेव आरती (Aarti Shri Shani Jai Jai Shani Dev)
माँ के अंग पे साड़ी है,
माँ की चुनरी ऐसे चमके,
जैसे चाँद चमकता है ॥
दिया थाली बिच जलता है ।
ऊपर माँ का भवन बना,
नीचे गंगा जल बहता है ॥