दे प्रभो वरदान ऐसा,
दे विभो वरदान ऐसा ।
भूल जाऊं भेद सब,
अपना पराया मान तैसा ॥
मुक्त होऊं बन्धनों से,
मोह माया पाश टूटे ।
स्वार्थ, ईर्षा, द्वेष, आदिक,
दुर्गुणों का संग छूटे ॥
प्रेम मानस में भरा हो,
हो हृदय में शान्ति छायी ।
देखता होऊं जिधर मैं,
दे उधर तू ही दिखायी ॥
नष्ट हो सब भिन्नता, फिर,
बैर और विरोध कैसा ।
भूल जाऊं भेद सब,
अपना पराया मान तैसा ॥
दे प्रभो वरदान ऐसा,
दे विभो ! वरदान ऐसा ॥
ज्ञान के आलोक से,
उज्ज्वल बने यह चित्त मेरा ।
लुप्त हो अज्ञान का,
अविचार का छाया अंधेरा ॥
हे प्रभो परमार्थ के शुभ-
कार्य में रुचि नित्य मेरी ।
दीन दुखियों की कुटी में,
ही मिले अनुभूति तेरी ॥
दूसरों के दुःख को,
समझूं सदा मैं आप जैसा ।
भूल जाऊं भेद सब,
अपना पराया मान तैसा ॥
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दे प्रभो वरदान ऐसा,
दे विभो ! वरदान ऐसा ॥
हे अभय अविवेक तज शुचि,
सत्य पथ गामी बनूं मैं ।
आपदाओं से भला क्या,
काल से भी न डरूं मैं ॥
सत्य को ही धर्म मानूं,
सत्य को ही साधना मैं ।
सत्य के ही रूप में,
तेरी करूं आराधना मैं ॥
भूल जाऊं भेद सब,
अपना पराया मान तैसा ॥
दे प्रभो वरदान ऐसा,
दे विभो ! वरदान ऐसा ॥