कल कल कल जहाँ निर्मल बहती,
माँ गंगा की धार,
है पावन शिव का धाम हरिद्वार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
विष्णु नख से निकली गंगा,
ब्रम्ह-कमण्डल आई गंगा,
शिव की जटा समाई गंगा,
शिव की जटा समाई गंगा,
सबका किया उद्धार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
गौमुख से चलती इठलाती,
ऋषिकेश में ये बलखाती,
हर की पौड़ी में फिर आती,
हर की पौड़ी में फिर आती,
बनके जग की करतार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
गंगा शीश में धर त्रिपुरारी,
कहलाए फिर गंगा धारी,
भक्त जनो की नैया तारी,
भक्त जनो की नैया तारी,
ना छोड़ी मजधार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
कलियुग में जो पार हो जाना,
एक बार हरिद्वार तो आना,
माँ गंगा में गोते लगाना,
‘चन्दन’ हो भव पार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥
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संत साहित्य ..(:- समराथल कथा भाग 15 🙂
कल कल कल जहाँ निर्मल बहती,
माँ गंगा की धार,
है पावन शिव का धाम हरिद्वार,
हैं पावन शिव का धाम हरिद्वार ॥