मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ,
दोनों मैया बड़ी प्यारी है ।
एक माता मेरी जननी है,
एक जग की पालनहारी है ॥
मैं जननी को जब माँ कहता,
वो सिर पर हाथ फिराती है ।
त्रिशूल रुपणी दादी को,
वो जगमाता बतलाती है ।
मैं उसकी गोद में जाता हूँ,
वो तेरी शरण दिखलाती है ।
अब शरण में तेरी आया हूँ,
तू क्यों नहीं गले लगाती है ॥
॥ मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ…॥
मेरी जननी ओझल हुई,
पर तुम तो समाने हो मेरे ।
वो इसी भरोसे छोड़ गई,
कि तुम तो साथ में हो मेरे ।
अब दिल जो माँ को याद करे,
वो सीधे तेरे दर जाए ।
हे जग जननी तेरी छवि में ही,
मेरी मैया मुझे नजर आए ॥
॥ मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ…॥
जनंनी ने मुझको जन्म दिया,
तुम बन के यशोदा पाली हो ।
मेरी जनंनी की भी जननी तुम,
दादीजी झुंझुनुवाली हो ।
वो लोरी मुझे सुनाती है,
तुम सत्संग मुझे कराती हो ।
वो भोजन मुझे खिलाती है,
तुम छप्पन भोग जिमाती हो ॥
॥ मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ…॥
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मैं दो-दो माँ का बेटा हूँ,
दोनों मैया बड़ी प्यारी है ।
एक माता मेरी जननी है,
एक जग की पालनहारी है ॥