उदोजी नैण का जाम्भोजी के शरण में आना भाग 2
इस प्रकार से श्री देवजी की स्तुति में ऊदे इस साखी का गायन किया, पास में बैठे हुए सज्जनों को आचर्य चकित कर दिया। कवि हृदय तो ऊदा था ही देवजी ने सिर पर हाथ रखा तो कविता सरिता की भांति बह पड़ी। ऊधी ने श्री देवजी की स्तुति करते हुए कहा- मैं आपकी शरण में तो आ गया हूं किन्तु |
मेरा भय अब तक नहीं मिटा है जिस प्रेत की मैं माता मान करके पूजा करता था उसने मुझे बहुत कष्ट दिया आज मुझे पता चला है कि वह तो मेरे साथ धोखा ही था मैंने अपनी जिंदगी वैसे ही बरबाद कर डाली है। है देव। मेरा भय दूर कीजिये, श्री देवजी ने ऊदे का भय मिटाने हेतु यह विष्णु विष्णु भण शब्द सुनाया। जिसका भाव इस प्रकार से है
हे ऊधा! तथा अन्य सभी लोगों ! यदि आपको भय लगता है तो विष्णु विष्णु इस नाम का जप करो, रे भाई । यदि तुम्हें श्रद्धा विश्वास है, तुम्हारा मन नाम जप करने को राजी है तो अवश्य ही तुम्हारे भय को मिटा देगा। दिन का भूला भटका रात्रि को घर लौट आये तो वह भूला हुआ नहीं माना जाता, यदि रात्रि में भी घर नहीं आये तो चिंता होती है,
इसी प्रकार से बाल एवं जवानी अवस्था में यदि ईश्वर को भूल गया तो कोई बात नहीं अब बुढापे में भी सचेत हो जाये तो वह संभल सकता है, बुढापे ने यहां से जाने की सूचना दे दी है, अब भी यदि सोया रहा सचेत नहीं हो सका तो किस आसा पर जी रहा है, तुम्हें कौन सहारा देगा, तेरी मृत्यु बिगड़ जायेगी तो दुर्गति होगी।
इस संसार में तो सच्चा झूठा संबंध गहरा है किन्तु कच्चे धागे की तरह इस लगाव को भी तोड़ा जा सकता है। इतनी गहरी मोह माया में फंसा होने से कुशलता कैसे हो सकती है। हृदय में विष्णु का जप करते हुए हाथों से शुभ कार्य करो। हे ऊदा हरि की मर्यादा तो छोड़ दी, भूला हुआ तुमने महमाई को पूजा
सेवा की है महमाई तो केवल पत्थर की मूर्ति ही तो है इस प्रकार से पत्थरों की प्रीति छोड़ो।
गुरु की शरण हुए विना तो मुक्ति को प्राप्त नहीं हो सकते। गुरु की शरण ग्रहण करके और हरि की मर्यादा में रह कर के पांच करोड़ का उद्धार प्रहलाद ने सतयुग में किया था स्वयं प्रहलाद ने शुद्ध कमाई की थी तथा अपने अनुयायियों को भी प्रेरित किया था। त्रेता युग में हरिश्चन्द्र एवं उनकी धर्म पत्नी तारादे एवं | कंवर रोहिताश ने सात करोड़ का उद्धार किया था, स्वयं धर्म की रक्षार्थ हाट में जाकर बिक गये थे, किन्तु धर्म को नहीं छोड़ा था।
नौ करोड का उद्धार द्वापर युग में धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था, उस माता कुन्ती को भी धन्य है जिन्होंनें ऐसे पुत्र पैदा किये, उन्हें ऐसे दिव्य संस्कार प्रदान किये। श्री जाम्भोजी कहते है कि बारह करोड़ों | का उद्धार करने हेतु मैं स्वयं आया हूं क्योंकि मैंने ही नृसिंह रूप में अवतार लिया था, उस समय प्रहलाद को वचन दिया था कि तुम्हारे तेतीस करोड़ों का उद्धार होगा अब तक पांच व सात व नौ करोडों का तो उदधार हो चुका है, बारह करोड़ अवशेष है उनका उद्धार करने हेतु मैं आया हूं।
कौन किसका है? कोई भी किसी का नहीं है, जिन्हें कहते है कि यह मेरी नारी है में इसका नर हूं. यह मेरी प्यारी वस्तु है, मेरी बहन, मेरा भाई, यह मेरा कुछ भी नहीं है। किन्तु दुनियां इसी भूल में रही है। अनेकानेक जन्म मरण को प्राप्त हो रही है, मोह माया ग्रसित प्राणी उस विष्णु परमात्मा को अपना
नहीं बनाते जो कि वास्तव में अपना ही है। जो अपना नहीं है उसे तो अपना मान रखा है।
हे ऊदा ! तूं जिस पत्थर की मूर्ति को सेवा पूजा करता है उससे तो लोहा ही मजबूत है, लोहे को पूजा क्यों नहीं करता? सदा ही शक्तिशालो को ही पूजा करनी चाहिए. जिसका जैसा संग करोंगे तो उसको संगति का फल भी अवश्य ही मिलेगा।
नाथोजो उवाच- हे वील्हा! इस प्रकार से यह शब्द ऊदेजो के प्रति श्री देवजी ने सुनाया और उससे कहा कि तुम भक्त अधिकारी होने से पाहल लेकर विश्नोई पंथ में सम्मिलित हो जाओ, डरो मत अब तुम बिश्नोई पंथ के पथिक हो गये इसीलिए अब तुम्हें किसी प्रकार के भूत प्रेत महमाई आदि से भय। नहीं होगा।
यदि तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है तो तूं वापस अपने महमाई के मंदिर में जाओ और जाते समय यह पाहल का लोटा ले जाओ, जब तुम्हें भूत-प्रेत भय उत्पन्न करायेंगे तो तुम जल की कार दिला कर के बोच में खड़े हो जाना, फिर तुम स्वयं आश्चर्य देखना।
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ऊदो भक्त जाम्भोजी की आज्ञा शिरोधार्य करके सम्भराधल से रवाना हुआ, ज्योंहि अपने गांव को सीमा में प्रवेश किया त्योंहि वह महमाई जो एक प्रेत के रूप में थी ऊदो के सामने बवंडर बन कर के आयी और डराने लगी, ऊदो जाम्भोजी के वचनानुसार जल की कार देकर बीच में खड़ा होकर विष्णु विष्णु जप करने लगा, वह बवंडर भैंतूलिया दूर दूर हो भयंकर ध्वनि करता हुआ वेग से दूसरो तरफचला गया,
जाम्भोजी एवं जाम्भोजी की पाहल का चमत्कार एवं प्रताप ऊदे ने देखा तथा आक्षर्य चकित हुआ। वह महमाई हतास अवस्था में ऊदे को भयभीत करने के लिए कभी बैतूरा बनती, तथा कभी अग्नि के रूप में दिखाई देतो, कभी सिंह बन कर गर्जना करतो, किन्तु ऊदे ने ता श्री देव परमात्मा विष्णु को शरण ले रखी थी, भय निवृत हो चुका था। आखिर महमाई ही घबराकर ऊदे से कहने लगी
हे ऊदा! तुमने तो सतगुरु को प्राप्त कर लिया है किन्तु मैं तो एक अवगति प्राप्त जीव हूं मेरा इस प्रेत योनी में प्राप्त जीव का उद्धार कब होगा तुम्ही कोई उपाय करो, मेरे दुख का कोई पार नहीं है, मेरा वायु प्रधान यह अधम शरीर है, एक क्षण भी स्थिर नहीं हो पाता, मैं स्वयं इस शरीर से भोजन प्राप्त करने में असमर्थ हू तुम्हारे जैसे पुजारियों के शरीर में प्रवेश करके ही मैं भोजन प्राप्त करता हू, अपनी स्वतंत्र सता नहीं है, मैं स्वपं पराधीन हूं कभी कभी मेरे को मारा पीटा भी जाता है वह भी मैं किसी शरीर में रह कर हो सहन करता हू यह सभी कुछ मेरे कर्मों का ही फल है।
अब तूं ऊदा वही जा और मेरा भी किस प्रकार से उद्धार होगा यह विनतो जाम्भोजी से करणा। मेरी पूजा तो कोई दूसरा हो करेगा, मैं अपनी पूजा तो स्वयं किसी दूसरे से करवाऊंगा, अब तुम हमारे लायक नहीं हो क्योंकि तुमने पाहल ग्रहण करके देवताओं के नियम धारण कर लिया है. तुम्हारे पर हमारा वश नहीं चलता।
इस प्रकार से ऊदो अपने घर गया, लोगों ने बड़ा हो आक्चर्य किया कि महमाई का पुजारी भोपाजो लौट आये है, न जाने एकाएक कहाँ छुप गये, अब हमारो विपदा दूर करेंगे। दो ने कहा- अब आप लोग ऐसो आसा न करें, मैं अब भूत प्रेतों की पूजा नहीं करता, मुझे तो सतगुरु मिल गये हैं।
यदि आप लोग भी युक्ति मुक्ति चाहते है तो मेरे साथ चलो। अपने बुटुम्ब को लेकर उदो समराथल आया और अपने परिवार को विश्नोई पंथ में सम्मिलित किया जाम्बोजी ने ऊदे को ऋद्धि सिद्धि प्रदान की और नैण गोत्र का बिश्नोई बनाया।
जब संत महापुरूषों की संगति हो जाती है तो दुराचारी भी साधु बन जाता है जिस प्रकार से पारसमणि की संगति करने से लोहा पलट कर सोना बन जाता है और दही भी पलट कर घृत बन जाता है।
ऊदो मूलत कवि हृदय मानव थे, जाम्भोजी की स्तुति में ऊदे ने आरती, साखी, छन्द, कवित आदि की रचना की थी ऊदो जी द्वारा रचित काव्य अति उच्च कोटि का है, उन्होंने जैसा प्रत्यक्ष देखा था। वही यथार्थ कहा था। यथार्थ वक्ता एवं हजूरी कवियों में ऊदोजी का नाम अग्रगण्य है।
उदोजी नैण का जाम्भोजी के शरण में आना भाग1