उदोजी नैण का जाम्भोजी के शरण में आना भाग 1
मांगलोद गंगा पार का जमाती आई भरया, ऊदो नैण देवी को भोपा कहै- जमातियां इह महमाई नै पूजी र पाछा जावौ देव करै थी देवी करसी। बिश्नोई कै देवी सुरग देसी। देवी उदै के घट आय बोली सुरगा मां क्यों नहीं सुरग मटा मटि थै पणि मेरे सारै सुरग कोई नहीं। उदो जमातियां के साथ देवजी के हजूरी आयो। बिश्नोई हुवी। ऊदो कहै देवजी कहो तो महमाई का गीत गाऊ। जाम्भोजी श्री वायक कहै-
शब्द – 97
ओ३म् विष्णु विष्णु तू भण रे प्राणी, जो मन मानै रे भाई।
दिन का भूला रात न चेता, कांय पड़ा सूता आस किसी मन थाई।
तेरी कुड़ काची लगवाड़ घणो छै, कुशल किसी मन भाई। हिरदै नाम विष्णु को जंपो, हाथे करो टवाई।
हर पर हरि की आंण न मानी, भूला भूल जपी महमाई।
पाहन प्रीत फिटाकर प्राणी, गुरु बिन मुक्त न जाई।
पंच क्रोड़ी ले प्रहलाद उतरियो, जिन खरतर करी कमाई।
सात क्रोड़ी ले राजा हरिचंद उतरियों, तारादे रोहिताश हरिचंद हाटो हाट बिकाय।
नव क्रोड़ी राव युद्धिष्ठिर ले उतरियो, धन धन कुन्ती माई।
बारा क्रोड़ समाहन आयो, प्रहलादा सूं वाचा कवल जु थाई।
किसकी नारी बस्त पियारी, किसका बहिन रु भाई।
भूली दुनियां मर मर जावै, ना चीन्हों सुर राई।
पाहण नाऊ लोहा सकता,नुगरा चीन्हत कांई।
नाथो जी महाराज अपने शिष्य विल्हो के प्रति आगे की कथा सुनाते हुए कहने लगे एक समय गंगा पार से विश्नोईयों की जमात समराथल पर आ रही थी इससे पूर्व भी कई बार आ चुकी थी उनका पैदल आना कई लोगों को सचेत करना था पूर्व की जमात ने तो हास्म कास्म को सचेत किया था और दिणी के बादशाह सिकंदर लोदी को सचेत किया था दूसरी बार भीयों पंडित को अपने साथ लेकर आये थे और उन्हें विश्नोई बनाया था।
इस बार विश्नोइयों की जमात गंगा पार से चल कर गंगा यमुना को पार कर के नागौर से पूर्व दिशा में गोठ मांगलोद में आकर तालाब के किनारे आसन लगाया था। तालाब के निकट ही गांव के बाहर महमाई का मंदिर था तालाब में स्वच्छ जल प्राप्त था। विश्नोई लोग देवी के मंदिर में तो नहीं गये किन्तु तालाब के किनारे ही बैठे थे।
उस समय स्नान, संध्या, हवन कर रहे थे ज्योति का दर्शन एवं शब्दों की ध्वनि, घृत सामग्री की सुगंध, चारों तरफ फैल रही थी। मंदिर के पुजारी उदोजी नैण थे। ऊदोजी मंदिर में आरती नित्य प्रति करते थे किन्तु दीपक तेल का ही करते थे, वह भी छोटी चिराग तेल की उसमें वह दिव्य सुगंध कहां थी? ऊदो आरती गाता था किन्तु महमाई की ही गाता था आज पहली बार शब्दों की ध्वनि सुन रहा था? घृत आदि दिव्य पदार्थों की सुगंध ले रहा था।
ऊदा जल लाने के बहाने से तालाब पर गया था। ऊदै ने देखा कि यहां तो दिव्य देव सदृश शुभ्र वेश में भक्त विराजमान है। ये ही लोग हवन कर रहे है। हो सकता है कि हमारी देवी दर्शनार्थ आये होंगे, ये तो धनवान भी है, यदि आ जायेंगे चढावा करेंगे तो बहुत धन प्राप्त होगा मैं अभी शीघ्र चलता हूं, इनके आने की प्रतीक्षा एवं पूर्व तैयारी करता हूं, अपनी देवी को भोग लगाता हं, खुश करता हूं, तो इन्हें अवश्य ही वरदान देगी, मेरी उंगली अवश्य ही आज मिट जाएगी।
ऊदा वापिस मंदिर में पहुंचा और देवी को प्रसन्न किया। स्वयं भोपा बना, अंग में तेल लगाया,लाल तिलक किया, सिर की लंबी लंबी जटायें खोल दौ, हाथ में जंजीर एवं लोहे का सरिया लेकर उछल कूद करने लगा, देवी ने भोपे के शरीर में प्रवेश किया, वह तो देवी नहीं थी कोई प्रेत हो था किन्तु लोग ऊदा ऐसी विकराल अवस्था में अपने ही शरीर पर चोट मारता हुआ विश्नोईयों की जमात के उसे देवी देवता कहते थे, पूजा होती थी।
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उदा ऐसी विकराल अवस्था में अपने ही शरीर पर चोट मारता हुआ विश्नोईयों की जमात के पास पहुंच गया। विश्नोईयों ने देखा और कहा- हे भाई। क्यों जुल्म करता है? इस अपने ही शरीर को क्यों पिटता है? यह तो अन्याय है, ऐसा मत करो जो तुम्हें लेना है तो हम तो वैसे ही दान दे देंगे, इस पाखण्ड को करने की हमारे सामने आवश्यकता नहीं है।
ऊदो कहने लगा- आप हमारो देवी के मंदिर में चलो, वहां जो आपको चाहिये वही सभी कुछ मिलेगा, एक बार मस्तक झुकादो तुम्हारो सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाऐगी। बहुत देर से मैं आपकी प्रतीक्षा कर रहा था. आप लोग आये क्यों नहीं, आप लोग कहां से आये है? और कहां को जा रहे है, किस कार्य के लिये जा रहे है।
जमात के लोगों ने कहा- हम लोग गंगा पार पूर्व देश से चल कर आये है। सम्भराथल पर विष्णु जाम्भोजी के पास जा रहे है, वहां पर हमें जीया ने युक्ति मूवा ने मुक्ति मिलेगी अर्थात् युक्ति मुक्ति लेने जा रहे है। ऊदो कहने लगा- यदि युक्ति और मुक्ति यही पर देवीजी प्रदान कर दे तो आप लोग आगे नी जाओगे। जमात ने कहा- यदि ऐसी बात है तो आप अपती देवी से पूछ ले, क्या वह स्वर्ग, युक्ति मक्ति दे सकती है? यदि सकती है तो हम लोग देवी के मंदिर पर स्वर्ण कलश चढा देंगे।
ऊदे ने देवी को अंदर प्रवेश करवाया और कहने लगा- स्वर्ग मुक्ति आदि तो मेरे पास कुछ भी नहीं है स्वर्ग मटामट है अर्थात् केवल कहने सुनने की बात है मुक्ति नाम की भी कुछ वस्तु नहीं है जो नहीं है वह मैं कैसे दे सकती हूं, यह संसार ही सभी कुछ है आगे कुछ भी नहीं है और नहीं मैं कुछ जानती हूं यदि तुम्हें कुछ संसार की वस्तु चाहिये तो मैं कुछ उल्टा सीधा कर सकती हूं जैसे- किसी को लंगड़ा, बहरा, रूग्ण आदि करने में मेरा कुछ सहयोग हो सकता है।
बिश्नोई कहने लगे हम जिनके पास जाते है वे तो पूर्ण परमेश्वर है हमें युक्ति मुक्ति प्रदान करेंगे. हे उद्धव! यदि तुम्हें भी चाहिये तो हमारे साथ चल, ऐसा कहते हुए ऊदे से देवी की पूजा छुड़वाकर साथ में ही सम्भराथल लेकर चले आये।
ऊदा भक्त मार्ग में चलते हुए विचार करने लगा न जाने क्या होगा, क्या मुझे वो सतगुरु देव अपनायेंगे ? मैं तो कुछ भी नहीं जानता, जिस देवी की पूजा करता था, उसका भय भी मुझे बना हुआ है। ये सभी लोग तो पूर्व परिचित है, सभी धनवान है, सभी ने अपनी अपनी भेंटे ली है, मेरे पास तो कुछ भी नहीं है विना भेंट मैं उनके पास सभी से अलग ही दिखने वाला पहुंचूगा तो क्या वो मुझे अपनायेंगे? मेरे पास भले ही कुछ भी नहीं है किन्तु मेरा प्रेम भाव तो है क्या मेरे प्रेम को ठुकराएंगे?
वे तो पूर्ण ब्रह्म अन्तर्यामी है, हृदय की भावना को जानते है, फिर भी अवश्य ही कुछ तो भेंट ले लेनी चाहिये, खाली हाथ जाऊंगा तो खाली हाथ लौट आऊंगा, ऐसा विचार करते हुए सम्भराथल मार्ग में नागौर से एकटके की खली ले ली, ज्यादा तो कुछ जेब में था भी नहीं, वापिस मंदिर में जाने का अवसर ही नहीं मिला था।
सम्भराथल सभी के साथ उदोजी भी पहुंचे वहां पर श्री देवजी की मुख शोभा देखी, ज्योति सदृश मुख मंडल चारों तरफ ही दिखाई दे रहा था। सभी ने अपनी अपनी अमूल्य भेंटे रखी, उदों संकुचाने लगे। मैं कैसे रखें, इनके पास तो बड़ी कीमती वस्तुएँ है, मेरे पास तो पशुओं को चराने वाली खली ही तो है। यह भेंट करने से तो ना करना ही ठीक है। ऐसा विचार करते हुए उदा सभी के पीछे ही बैठ गया।
जाम्भेश्वर जी ने ऊदे का नाम लेकर पुकारा हे उदा। पीछे क्यों बैठा है आगे आजा, जो कुछ भी भेंट लाया है वह तो प्रेम रस से भरी है मुझे दे दे, ऊदा संकोच वश डरता डरता सामने आया कपड़े में बंधी अमूल्य भेंट ऊदे ने सामने रखी श्री देवजी ने कहा- उद्धव! तूं तो बहुत ही अच्छी भेंट लाया सभी को दिखाते हुए श्री देवजी ने कहा देखो उधव नारियल की गिरी लाया है, यह तो अमूल्य है हवन करने के काम आयेगी, उद्धव द्वारा प्रेम से भेंट की हुई खली भी नारियल बन गई।
ऊदो हाथ जोड़े हुए पास में खड़ा हुआ था, जाम्भोजी ने कहा- हे ऊदा तूं तो कवि है कुछ गा का | के सुनाओं, ऊदो कहने लगा- हे महाराज ! यदि आप माताजी के भजनों के लिए कहो तो मैं सुना दूं, अन्य कुछ जानता ही नहीं हूं। पास में बैठे हुए लोग उपहास करने लगे कि देखो ऊदो कुछ भी नहीं जानता, यह तो निपट मूर्ख ही है न जाने यहां क्यों आ गया। श्री देवजी ने कहा- माता का तो तूं जानता है किन्तु कुछ पिताजी वाले भी तो सुनादे, ऊदा कुछ भी नहीं मिला, श्री देवजी ने ऊदे के सिर पर हाथ रखा, ऊदै के मन में हुलास-आनंद हुआ ओर आनंद में विभोर हो कर गाने लगा –
ओ गुरु आयो जाम्भराज देव, निज हक साच पिछाणियो।
जो साधा ने देवेलो पार, मुखि बोले अमृत बाणियों।
इमरत बाणी गुरु मुख बोलें, सुरग सुध लीला पति।
देवां को गुरु विसन जाम्भो, जतियां गुरु पुरो जाति।
पार गिराय जीव वासो, जे हक साच पिछाणियो।
मानुष रूपी विष्णु आयो, मुखि बोले इमरत बाणियो।
उदोजी नैण का जाम्भोजी के शरण में आना भाग 2