सेंसेजी का अभिमान खंडन भाग 3

सेंसेजी का अभिमान खंडन भाग 3
सेंसेजी का अभिमान खंडन भाग 3

              सेंसेजी का अभिमान खंडन भाग 3

सैंसे भक्त के साथ उपस्थित जमाती के लोगों ने पूछा- हे गुरुदेव! इन चार युगों में कोई संसार सागर से पार पहुंचा या नहीं। जाम्भोजी ने उतर देते हुए कहा- जोधपुर नरेश राव मालदेव तथा चितौड़ नरेश की मां झालीराणी ये दोनों ही सजीव है, पार पंहुच जायेंगे। इन दोनों की कथा विस्तार से आगे बतलायेंगे।

इस समय श्रीदेवजी ने लोगों को सम्बोधित करते हुए शब्द कहा- अहंकारी व्यक्ति कभी मुक्ति को प्राप्त नहीं कर सकता। यह तो पका निश्चय ही है। जितना अहंकार निवृत्त होता जायेगा, उतना ही मुक्त होता जायेगा। बंधन दीला पड़ता जायेगा। जैसा अहंकार दुर्योधन ने किया उतना अहंकार तो अब तक किसी ने भी नहीं किया। राजा मालदेव एवं झाली राणी सर्वथा निरहंकारी है।

 फूलते फलते तो बहुत हैं किन्तु कृष्णी माया जितनी फूलती फलती है उतना कोई नहीं। युद्ध के मैदान में जाकर युद्ध तो शूरवीर संसार में बहुत करते हैं किन्तु जितना सहस्प्रबाहू ने किया उतना कोई नहीं कर सका। जिसने परशुरामजी का सामना किया।

बाण चलाने में भी बहुत लोग कुशल है किन्तु जितने बाण सीता को लंका से लाने के लिए लक्ष्मण ने चलाए उतने बाण अब तक कोई नहीं चला सका। इस संसार में जप करने वाले जपी, तप, करने वाले तपी कई तत्वों के पीर, मठाधीश, ऋषि शिरोमणि इत्यादि अपने अपने बल को तोल रहे हैं। ये लोग केवल अपनी शैतानी को ही तोल रहे हैं, इनके पास ज्ञान नहीं है।

शिम्भू के धनुष को उठाने के लिए सभी ने प्रयत्न किये किन्तु अहंकार से मूर्छित लोग धनुष को हिला भी नहीं सके। परमात्मा की असीम शक्ति का कौन पार पा सकता है। जो निरहंकारी है वे भले ही पार पा जाये। वे भी पार नहीं पंहुच सके जिनकी धोती आसमान में सूखा करती थी।

 गुरुदेव कहते हैं कि प्रहलाद के बिछड़े हुए इकीस करोड़ तो पार पहुच गये हैं। अब बारह करोड़ इसी भूमि पर विद्यमान है। उन्हें ले जाने के लिए मेरा आगमन हुआ है। ये सभी बारह करोड़ पार पंहचेगे। मैने इस मृत्युलोक में आसन जमाया है क्योंकि यह मृत्युलोक पाताल लोक एवं स्वर्ग के बीच में विद्यमान है। मानव जीवन भी देव तथा दानव के मध्य अवस्थित है।

सतयुग में जब नृसिंह अवतार हुआ था, वह नर रूप में नरों में भी शिरोमणि, देवताओं में भी देव शिरोमणि, नरों के भी राजा एवं देवताओं के देवराजा ज्ञान से युक्त बहु गुणों से सम्पन्न थे। सर्वप्रथम तो उन्होंने हिरण्यकश्यप को मारा था। दूसरा उन्होंनें भक्त |प्रहलाद को विश्वास में लिया था प्रहलाद को दिलासा दिलाई थी।

 दूसरों की भलाई के लिए स्वयं भगवान विष्णु अवतार लेकर आये थे । उस समय सतयुग में नृसिंह ने प्रहलाद को वचन दिया था इस वजह से पांच करोड़ का उद्धार प्रहलाद के साथ हुआ। क्योंकि वो लोग प्रहलाद के वचनों पर चले थे । उनकी गति अति उत्तम थी वे लोग मुक्ति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच चुके है उनका निवास तो बैकुण्ठ में ही है जन्म मरण का चकर छूट गया।

 एह भौतिक शरीर तो यहीं पर छूट गया है किन्तु उनको दिव्य रतन सदृश अलौकिक काया मिली है। उन्हें सम्पूर्ण आनंद का भण्डार सौंप दिया है वे लोग भी यहीं उसी मृत्यु लोक के ही थे। आप लोगों के ही साथी थे।

 इस संसार में हो तत्व रूप से विष्णु समाया हुआ है उसमें बहुत ही प्रमाण है जो पार पहुंचने योग्य होंगे वे तो अवश्य ही पहुंचेगे इस समय भी आप पार पहुंचने की योग्यता धारण करें निरहंकारी बने समर्पण भाव करे।

सतयुग के बाद त्रेता युग में भी राम अवतार हुआ। राम ने लंका में जाकर रावण को मारा था। लंका में बड़े बड़े सूरवीर योद्धा थे जो अत्यधिक संख्या में थे काले कुरूप, काणे बड़े बड़े योद्धा युद्ध भूमि में राम की सेना लड़ रहे थे। राम की सेना भी तो कुछ कम नहीं थी। वहां पर भी बबर, झंट, हनुमान आदि अनेकानेक योद्धा थे। जब उनका युद्ध होता था तो समुन्द्र पार भी ताल की ध्वनि सुनाई देतो थी। वे सभी लंका के दरवाजे पर ही थे।

 ये सभी जीव मोक्ष के अधिकारी ही थे। राम के हाथ से मृत्यु को प्राप्त करके ये मुक्ति को प्राप्त हुए । कुछ रामजी की सेवा करके मुक्ति को प्राप्त हुए थे। वे लोग भी यहीं इसी मृत्यु लोक के ही जीव थे।

 त्रेता युग में ही परशुरामजी ने क्षत्रियों का संहार किया था उनके संपर्क में आने वाले पापी जन भी उनकी दृष्टि से ही पवित्र होकर मुक्ति को प्राप्त हुए थे। जिन्हें भी विष्णु प्यारा था वे चाहे वैर भाव से स्मरण करे या प्रेम भाव से वे सभी लोग पार पहुंचे है इस प्रकार से त्रेता युग में सात करोड़ का उद्धार हुआ। वे सभी लोग यहीं के निवासी थे। पार पहुंचने के योग्य थे वे पहुंच गए। वे सदा सदा के लिये पंथ निर्मित कर गये।

 द्वापर में कृष्ण अवतार हुआ। युधिष्ठिर सम्राट हुए. उस समय भी नव करोड़ का उद्धार हुआ वै लोग भी ज्यादा भले भी नहीं थे किन्तु कृष्ण के संपर्क में आने से पार पहुंचने के योग्य थे वो पहुंचे गये। वहां उन्हें सुख दुःख से रहित आनंद का भंडार सौंप दिया गया। वे भी यहीँ के ही लोग थे।

 गुरु देव कहते है कि इस समय कलयुग में बारह करोड़ का उद्धार करने हेतु मुझे आना पड़। प्रहलाद के वचनों को पूरा करना है। इन्हें भी मैं पार पहुंचा कर ही जाउंगा। हे लोगो। आप लोग भी उन्हों। बारह करोड़ के अंतर्गत ही हो। तुम भी पार पहुंच जाओगे किन्तु अहंकार के रहते तो असंभव ही हैं।

 सैंसो कह जमाती नै। सीख दौका। जाम्भोजी के गुरु नांय मांग जीन भीख द्यौ । विसन जंपो कीया मां सावधान चालौं सैंसे ने वले कह्यो । जाम्भोजी श्री वायक कहै

                        शब्द-59

ओ३म् पढ़ कागल वेद शास्त्र शब्द भूला भूले झंख्या आलू।

अह निश आव घटती जावै, तेरा सास सबी कसबारू।

 कइया चन्दा क्या करूं, क्या काल बजावत तूरू।

 उर्द्धक चन्दा निरधक सुरुं, सुन घट काल बजावत तूरू।

 ताछ बहुत भई कसवारूं।

अन्नपूर्णा स्तोत्रम् (Annapoorna Stotram)

तेरे दर पे मॉ, जिंदगी मिल गई है: भजन (Tere Dar Pe Maa Zindagi Mil Gayi Hai)

नाग पंचमी पौराणिक कथा (Nag Panchami Pauranik Katha)

रक्त बिन्दु परहस निन्दू, आप सहै तेपण बुझे नही गंवारूं।

सैसा भक्त कहने लगा- हे गुरु देव। मेरे साथ में आये हुए सत्संगी लोग वापिस घर जाने की आज्ञा मांग हे है। इन तथा मुझे भी घर जाने की आज्ञा प्रदान कीजिए।

 जाम्भोजी ने कहा- गुरु के नाम की आंगतुक सुपात्र को भोजन दीजिए। विष्णु का जप करो। क्रिया कर्म में सावधान रहो। यह बात सैंसे को कहते हुए शब्द सुनाया

 हे लोगों! वेद, शास्त्र, शब्द अवश्य ही पढे। व्यर्थ का समय व्यतीत न करे विष्णु का जप, स्मरण, स्वाध्याय करे। व्यर्थ का बकवास न करे। दिन रात करते हुए तुम्हारी आयु बीतती जा रही है तुम्हारा प्रत्येक श्वांस बड़ा ही अमूल्य है। इसका सदुपयोग करो।

 आयु तो सभी की ही निश्चित है चाहे सूर्य, चन्द्र, तारे ही क्यों न हो,इनकी भी आयु घटती जा रही | है। काल ने तुरही बजादो है, अपने आने से पूर्व ही सचेत कर दिया है। चन्द्र की आयु एवं उंचाई कम है।सूर्य की ऊंचाई,तेज एवं आयु चन्द्रमा से ज्यादा है तो भी क्या हुआ एक बनेगे।

आप लोग किस के सहारे से अभिमान कर रहे हो जब सभी कुछ छोड़कर जाना निश्चित ही है तो समय का सदुपयोग करो और स्वाध्याय करो,दान पुण्य करो। सुपात्र का स्वागत करो। यही शिक्षा है,अब आप लोग खुशी से जा सकते हो। सैंसा भक्त अपने घर पहुंचा और गृह लक्ष्मी से जो घटना घटी थी वही बताई। सैंसे की नारी ने आश्चर्य किया और पछतावा करने लगी सैसे के घर में चालीस दुधारू गायें दूध देती थी किन्तु एक अजब गजब के मेहमान का स्वागत नहीं कर सके थे। फिर भी सैंसे को मुक्ति का वरदान श्री देवजी ने दिया था।

सैंसा पचीस दुधारू गाये और भी ले आया। अब तो घर में पैंसठ गाये दूध देने वाली थी। सैंसे की नारी बिलौवना करती। मक्खन,दूध,दही,घी आदि की नदियां बहने लगी। आये हुये सुपात्र का सैंसा सम्मान करता। न जाने कब किस रूप में हरि हो आजाये। गांव के बच्चे सैंसे के घर आ जाते वेला कुवेला में उनके साथ कोई अतिथि भी आ जाता, भोजन तैयार नहीं होता तो सँसा घर में तिल और शक्कर रखता उन्हें सभी को खाने के लिये देता था।

कभी कभी बच्चे रात्रि में आकर झंझट खड़ी कर देते तो भी सैंसा देने से मुख नहीं मोड़ता था। कई बच्चे सैंसे से शिकायत करते, आज हमें कुछ भी नहीं मिला था । सैंसा भक्त उन्हें प्रेम से भोजन देता. या तिल शक्कर देता।

 एक दिन सैंसा गुरु महाराज के पास सम्भराथल पर पहुंचा और कहने लगा- हे देव मैं आपको  प्रतीक्षा करता था किन्तु आप आये नहीं आप भी बड़े विचित्र है देव।

बिना बुलाए तो आ जाते हो किन्तु बुलाने पर नहीं आते। आप चाहे न भी आये किन्तु आने वाले प्रत्येक आगन्तुक में मैं आपको ही देखता था क्योंकि पूर्व मे मैं धोखा खा चुका था।

 देवजी ने पूछा-हे सैया हो तुम्हारी सेवा की बात ? सैंसा कहने लगा- क्या कहूं ! आपके कथनानुसार ही नियम निभा रहा हूं किन्तु एक आपति बिना बुलाए ही आ गयी है। हमारे घर पर अतिथि आते है, मैं उनको तन मन धन से सेवा करता हूँ। सर्दियों में मैं उनको ओडने के लिये सोड, देता हूँ किन्ता उनमे का ऐसे चोर  भी आ जाते है जो सी रावण भी ले जाते है मैं परेशान हूं क्या करूं।

श्री देवजी ने कहा- हे सैंया । तुम एक बहुत बड़ी भारी लंबी चौड़ी सोड़ बनालो जिसे कोई उठा कर न ले जा सके,रात्रि में सो जायेगे। सैंसे ने वही किया एक बहुत बड़ी सोड़ बनाई जिसे सैसा सोड के नाम से जानी जाती थी।

 सैसे ने भक्ति दान मान करके अपना जीवन व्यतीत किया। एक समय सम्भराथल पर विराजमान श्री देवजी से पूछा कि हे गुरुदेव ! सैंसे की बात कहो,हमने सुना है कि सैंसा मृत्यु को प्राप् हो गया है?श्री देवजी ने कहा-सँसा भक्त था। उसकी कभी दुर्गति नहीं हो सकती, सैंसा भी प्रहलाद बाड़ै का जीव था। निश्चित ही प्रहलाद के पास ही पहुंच गया है, मुक्त हो गया है ऐसा भक्त सदा ही सराहनीय है।

 हे विलह । जो तुमने जांगलू में जाम्भोजी की चिपी देखी है वह सैंसे के घर पर टूटी है। सैंसे के घर तो भिक्षा नहीं मिल पाई थी किन्तु अब भक्त लोग श्री देवजी को भिक्षा दे रहे है। अपनी मनोकामना पूर्ण कर रहे हैं। प्रेम से भक्ति भाव से दी हुई भिक्षा को श्री देवजी सहर्ष स्वीकार करते है त्री देवजी को क्या चाहिये ? उन्हें देवस्वरूप को भोजन हेतु घो चाहिये । वही भिक्षा दे रहे है तथा गुरुदेव सहर्ष स्वीकार कर रहे है तथा भक्तो का भला कर रहे है

सैसा तो शिरोमणी भक्त हुआ उनका तो स्वर्ग में वास हुआ। सतगुरु ने झौझाले को धाम बना दिया। नाथुसर तथा आस पास के लोगो को निहाल कर दिया। यही कथा है सैंसे की तथा और महिमा है सतगुरु जाम्भोजी को जो मैने तुझे सुनायी है अब आगे क्या जिज्ञासा है। अवश्य हो पूर्ण करूंगा क्योंकि मुझे ज्ञान कथा कहने में आनन्द आता है कथा कहना और सुनना तो साक्षात परमात्मा से ही वार्ता करनी है। हे शिष्य इस कथा कहने में मेरा स्वार्थ एवं परमार्थ दोनो ही नीहित है।

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