साखी विष्णु विसार मत जाई ये प्राणी
विष्णु विसार मत जाइये प्राणी, तो सिर मोटो दावो जीवने ।
दिन-दिन आवं घंटती जावे, लगन लिख्यो ज्यू सावो जीवने।
काला केश कलाहल आयो, आयो बुग बधावो जीवने ।
गढ़ पालटियो कांय नचेत्यो, धाती रोल भनावै जीवने ।
ज्यूं-ज्यूं लाज दुनी की लाजे, त्यूं त्यूं दाबे दावे जीवने । भलियो हुवे सो करे भलाई, बुरिया बुरी कमावे जीवने ।
दिन को भूल्यो रात न चेत्यो, दूर गयो पछतावो जीवने । गुरू मुख मुरखो चड़े न पोहण, मन मुख भार उठावै जीवन।
धन को गरब न कर प्राणी, मत धणिया ने भावै जीवने । हुकम को पान भी डुबै, सिलातिर ऊपर आवै जीवने । चावल ऊड़ेला तुस रहेला को बाइदों वावे जीवने ।
खिण एक मेध मंडल होय बरसे, खिण बांइदों वावौ जीवने । खिण एक जाय निरतर बरसे, खिण एक आप लखावै जीवने ।
सोवन नगरी लंक सरीखी, समंद सरीखी खाई जीवने । जिणरे पाट मंदोदरी राणी, साथे नचाली साई जीवने ।
जिणरे पवन बुहारी देतो, सूरज तपै रसोई जीवने ।
नव ग्रह रावण पाये बांध्या, कुवै मींच संजोई जीवने ।
बासंदर जारे कपड़ा धोवे, कोदू दले विहाई जीवने ।
जर पुराण संकल बांध्या, फेरी आपण राई जीवने ।
जिण तो साहिब जीरी खबर न पाई जाता वार न लाई जीवने ।
चांद भी सरणे सूर भी सरणै सरणै मेरू सवाई जीवने । धरती अरू असमान भी सरणै, पवन भी सरणै वाई जीवने। भगवी टोपी थल सिर आयो, की जो फरमावै जीवने ।
साखी – मिनखा देही है अनमोली
मिनखा देही है अण मोली भजन बिना वृथा क्यूं खोवे । भजन करो गुरु जंभेश्वर का, आवागवण का दुखड़ा खोवे ।
गर्भवास में कवल किया था, कवल पलट हरि विमुख होवे । बालपणों बालक संग रमियो, जवान भयो माया बस होवे ।
चालीसा में तृष्णा जागी, मोह माया में पड़ कर सोवे ।
बेटा पोता और पड़पोता हस्ती घोड़ा बग्धी होवे ।
धन कर अहस करूं दुनिया में मेरे बराबर कोई न होवे ।
गर्व गुमान करे मत प्राणी, गर्व कियो हिरणकुशस रोवे । गर्व कियो लंका पति रावण, सीता हड़कर लंका खोया ।
सच्चा पायक रामचन्द्र का, हनुमान बलकारी होवे ।
तन से तीर्थ न्हाय त्रिवेणी, ज्ञान बिना मुक्ति नहीं होवे ।
ज्ञान नहीं बनके मृगे में, कस्तूरी बन बन में टोवे ।
अड़सठ तीरथ एक सुभ्यागत, मात पिता गुरु से हौवे ।
दोय कर जोड़ उदो जन बोले, आवागवण का दुःखड़ाखोवे।
गौरीनन्दन गजानना: मंत्र (Gauri Nandana Gajanana)
मेरी मां को खबर हो गई: भजन (Meri Maa Ko Khabar Ho Gayi)
भभूती रमाये बाबा भोले नाथ आए - भजन (Bhabhuti Ramaye Baba Bholenath Aaye)
साखी – जग में दातार बड़ों
जग में तो दातार बड़ो रे विधि सूं।
सुणों विचार म्हारा प्राणियां रे । टेर। 1।
जल जीवण ऋषि तापियो कठियारे कर धार ।
बली राजा चकवे हुयो दान तणे उपकार ।।2।।
रांके दत रांके दियो भाव भुजा भल भीख ।
मानधाता मही ऊपरे अमर हुओ मण्डलीक ।।3।।
हाथ द्वादश लूगड़ो दीन्हो हरि के हेत ।
दुर्योधन दीठो दुनी. जनम्यो छत्र समेत ।।4।।
एक अघोड़ी दान दियो कर पुरोहित सूं प्रीत ।
संसार सुण शाको कियो, हुयो विक्रमजीत।।5।।
भूपति पोख्यो बाधने, विधि सूं विप्र विचार ।
दान दियो राजा मोरध्वज ने, आधो अंग उतार ।।6।।
सीचाण सिंवर संतोषियो, तन कांप्यो कर्णधार ।
अस्थि त्वचा दोनो दियो, देव कहवो दातार ।।7 ।।
पोहमी प्रगट बादशाह. ताश समो सेतूल ।
हेतम हेतकर सौपियां कीर्यो कोल कबूल ।।8।।
रावण शिव ने सौपियां, दश मस्तक दश बार ।
नवग्रह रावण बांधीया, दान तणे उपकार ।।9।।
पहिले परमल सीचियों, ऊपर सीधो सींच ।
साख रही संसार में, दीयो दानं दधीच ।I10।।
अनेक अनेक अरू ऊभरने, गणित न आवे पार ।
जिण केशव की बीणती हमारी, आवागवण निवार ।।11।।