रूपा मांझू को जल छानने का आदेश भाग 2
बेटी ! कोई बात नहीं घड़ा फूट गया तो ओर आ जायेगा, चुप हो जाओ। रूपा कहने लगी हे मां! मुझे घड़ा फूटने की चिंता नहीं है किन्तु मैंने जाम्भोजी के बताये हुए नियम को तोड़ दिया। तालाब के जल में जीव थे मैने बिना छाने जल भर लिया था नियम तोड़ दिया था वे जल के जीव जल बिना तड़प रहे थे मेरे सामने ही बेहाल थे मैं कुछ भी नहीं कर सकी। अब क्या होगा? कल ही तो नियम लिया था आज मैंने तोड़ दिया अब मेरी क्या गति होगी?
इधर सम्भराथल पर विराजमान देवजी ने रूपा पर कृपा करी और वे जलीय जीव तड़प रहे थे उन्हें मरने नहीं दिया। उनके पंख लगा कर आकाश में उड़ा दिया। हे वील्हा उस समय पास में बैठे हुए सभी लोगों ने देखा था कि आकाश में विचित्र प्रकृति के जीव उड़ रहे है। वे तो उधर से सम्भराथल पर हो आ गये थे। हम तो उनके बारे में कुछ भी निर्णय नहीं कर पाये थे कि ये जीव क्या है? इनका भाग्य अवश्य ही खुल गया है।
श्री देवजी से हमने पूछा था कि हे देव! ये जीव कौन है? तब श्री देवजी ने बतलाया था कि मैं क्या बतलाऊं, कल ही तो एक रूपा नाम की छोकरी नियम लेकर गयी थी कि जल छान कर के लुंगी, आज ही उसने नियम तोड़ कर बिना छाने जल भर लिया है, उसका बड़ा फूट गया है उसमें जीव थे, वे हो जीव ये है, मैंने उन्हें पंख लगा कर उड़ा दिया है।
दूसरे दिन प्रात: काल हो रूपा क्षमा प्रार्थना करने के लिए सम्भराथल पर श्री देवजी के पास आयो जाम्भोजी ने कहा- तुमने नियम तोड़ा था, कितने जीव मरते किन्तु मैंने बचा लिया है, तुम्हें पाप के पंक से बचाया है। पुनः ऐसी गल्ती नहीं करना, बार बार क्षमा नहीं होगी, इस भूल के बदले में तुम्हें अन्य नियम भी पालन करने होंगे।
तुम्हें पराई निंदा नहीं करनी चाहिये,झूठ नहीं बोलना, चोरी नहीं करना, नील वस्त्र धारण नहीं करना, विष्णु मंत्र का जाप करना, अमावस्या का व्रत रखना, इत्यादि। उसी समय ही हमारे लोगों के साथ रणधीर बाबल उपस्थित थे। उन्होंने पूछा कि हे देव! जल में जीव कितने दिन पश्चात पड़ जाते है? श्री देवजी ने कहा- चार प्रहर पक्षात जल में जीव उत्पन्न हो जाते है आठ प्रहर चौबीस घंटा याद दिखाई देने लग जाते है इस लिये चार प्रहर पश्चात जल छान कर के ही पीना चाहिये।
मोटे कपड़े से छान कर जीव वापिस जल में ही डालना चाहिये। जीवों को मारना नहीं चाहिये, उन्हें वापिस जल में ही डालना चाहिये। रूपा एक पैर पर हाथ जोड़े हुए खड़ी थी उसी समय ही रूपा के पीछे पीछे एक जाट भी आ गया था, उसने भी जाम्भोजी की वार्ता सुनी थी और कहने लगा
हे महाराज! आप इस छोकरी को क्यों डरा रहे है? इसने तो कोई भी जीव नहीं मारा। यह छोकरी जहां तालाब से पानी भर रही थी वहां तो इसने कोई जीव नहीं मारा। दो भैंसे- झोटा वहां जल में पड़े थे किन्तु इसने तो नहीं मारे। वे तो मैंने जंगल में जाते हुए देखा था यदि आप इसी प्रकार से ही झूठी बात
करेंगे तो पार कैसे उतरेंगे।
श्री जंभेश्वर जी ने कहा- हे जाट| जल में छोटे छोटे असंख्य जीव होते है। उनकी तो भी हत्या होती है जल के इन छोटे छोटे जीवों को मारोगे तो वे भी तुम्हें मारने के लिए रूप बदल कर आयेंगे। तुम्हें भी तो जल के जीव होना पड़ेगा। बड़े जीव छोटे जीवों को खा जाता है”जोयो जीवस्य भोजनम” जीव जीव का भोजन होता है। इसी प्रकार से तो तुम्हें चौरासी लाख जीव योनि मं भटकना होगा।
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वह जाट पुन: कहने लगा- हे महाराज! आप कहते है कि जल छाने बिना मुक्ति नहीं होगी तो मानलो कोई आदमी वन में प्यासा है उन्हें किसी तालाब बावड़ी में जल तो मिल गया किन्तु पास में छानने के लिए कपड़ा न हो तो क्या करे? क्या वह जल सेवन न करे प्यासा मर जाये? श्री देवजी ने कहा- मानलो कहीं विपति के समय में जल छानने का कपड़ा पास में न हो तो सिर पर पगड़ी तो होगी उससे हो छान कर जल पीये।
तब वह जाट फिर से कहने लगा- यदि मान लो पगड़ी भी न हो तो क्या करे? क्या वह बिना छाने हुए जल न पीये? श्री देवजी ने कहा- यदि पास में पगड़ी न हो तो कुर्ता धोती कुछ तो होगा ही उससे ही छान कर जल पीये।
वैसे कोई यह नियम नहीं है किन्तु विपति के समय में यह भी किया जा सकता है। नियम तो शुद्ध कपड़े से हो जल छान कर लेना चाहिये। “विपति काले मर्यादा नास्ति” हे जाट यदि तुम्हे नियम का पालन नहीं करना है तो विवाद का कोई अंत नहीं है। कि तुम्हें नियम का पालन करना ही नहीं है। उस जाट के
बात समझ में आयी और व्यर्थ का विवाद छोड़ कर सुमार्ग का अनुयायी बना।
उस जाट के अन्य कूटुम्बी भी जो तेरह पर पैंसठ स्त्री पुरूष थे ये सभी विश्नोई पंथ के पथिक बने।हे विल्हा! इस प्रकार से प्रहलाद की प्रतीत से पूर्व पंथ का विस्तार यहां कलयुग में सम्भराथल पर हुआ।पूल्हजी ने स्वर्ग अपनी आंखो से देख कर लोगों से स्वर्ग सुख वर्णन किया था, उसी के प्रभाव से अनेकानेक लोग पंथ में सम्मिलित हुए, इस प्रकार से इस पंथ का विस्तार हुआ।