भजन :- पापिडा रे मुख सूं राम नहीं निकले
पापीड़ा के मुख सू राम नहीं निकले केशर धूल रही गारा में ।
मिनख जमारो ऐलो मति खोवो सुकृत करलो जमारा में । माला लेय मूरख ने दीनी क्या जाणे फेरण हारा ने ।
फेर नहीं जाणे वो तो जप नहीं जाणे जाय धरी घर आला में ।I1।।
भैंस पदमणी ने हार पहरायो वा कांई जाणे नौसर हारा रे ।
पहर कोनी जाणे वा तो ओढ नहीं जाणे जाय लीटी व गारा में ।2।
काच के महल में कूतिया बैठाई रंग महल चौबारा में । एक-एक कांच में दोय-दोय दीखे भुस भुस मूई जमारा में ।।3।।
सोने के थाल में सूवर ने परूस्य वा कोई जावे जिमण हारा ने ।
जीम नहीं जाणे वांतो जूट हीं जाणे हुल्ड-हुल्ड करती जमारा में ।4।
हीरा लेय मुरख ने दीना दलबा बैठो सारां ने ।
हीरा री कदर जौहरी जाणे कांई तोले गंवारा ने ।।5।।
राम नाम की ढाल बनालो दया धर्म तलवार ने ।
अमरनाथ कहे भक्तों से जब जीतों यम द्वारा में ।।6।।
भजन :- तू गुण थे गोविंद रा गाय
तू गुण रे गोविन्द रा गाय, पंछी भाई प्राणी रे ।
तेरी दुलर्भ मिनखा देह आखिर जाणी रे ।। टेर।।
तेरो बाल पणो दिन चार, रमता खोयो रे ।
तेरी मात-पिता रो लाड मनड़ो मोयो रे ||1।।
वर्ष पच्चिसार माय भोग रचिलो रे ।
भजयो नहीं भगवान विषयां मे भूल्यो रे ।।2।।
वर्ष चालीसार माय तृष्णा जागी रे ।
किया गर्भ में कौल सब कुछ त्यागी रे ।।3।।
वर्ष पच्चासारे मांय साठी बुद्धि नाटी रे ।
तेरा बहरा हो गया कान आडि देग्या दाटी रे ।।4।।
वर्ष सतर र मायं अब झड़ लाग्यो रे ।
तू तो दे दे गोड़ारे हाथ उठवा लाग्यो रे ।।5।।
वर्ष असीर मायं देही थारी धूजे रे ।
तनु सूझे नहीं दिन रात कोई नहीं मुझे रे ।।6।।
माल खजाना फौज झूलवां हाथी रे ।
तेरो जीव अकेलो जाय कोई नहीं साथी रे ।।7।।
सुण रे मनवा वीर ऐसो नहीं करणो रे ।
जरा इतना बता दे कान्हा, कि तेरा रंग काला क्यों - भजन (Jara Etna Bata De Kanha Tera Rang Kala Kyo)
विन्ध्येश्वरी आरती: सुन मेरी देवी पर्वतवासनी (Sun Meri Devi Parvat Vasani)
लक्ष्मी स्तोत्र - इन्द्रकृत (Lakshmi Stotram By Indra)
थाने गावे दास कबीर आखिर जाणो रे ।।8।।
भजन :- तेने अजब बनायो भगवान
तैने अजब बणायो भगवान, खिलौना माटी का ।।टेर।।
सीस दियो थाने निवण करण ने, कान दिया सुण ज्ञान । खिलौना……..
आंख दीवी थाने युग निरखण ने, नाक दियो ले श्वास लियों। दांत दिया थाने मुखडे री शोभा, जीभ दीवी रट राम ।
पैर दिया थाने तीर्थ करण ने, हाथ दिया कर दान ।
जिण घर हरि कथा कभी न होवे, तो घर नरक समान । कहत कबीर सुनो भाई साधो, हरि भजन उतरों पार । जिन्दगी सुधार बन्दे यही तेरा काम है ।।
मानुष की देह पाई. हरि से न प्रीत लाई ।
विषयों के जल माहीं, फॉसिया निकाय है ।I1।।
अजली का नीर जैसे जावत शरीर तैसे ।
धरे अब धीर कैसे बीतत तमाम है ।।2।।
भाई बंधु मीत नारी कोई न सहाय कारी ।
काल जय पास डारी, सिर पे मुकुट है ।।3।।
गुरु की शरण में आवो प्रभू का स्वरूप ध्यावो ।
ब्रह्मानन्द मोक्ष पावे सब सुख धाम है ।।4।।
भजन :- हंसा सुंदर काया रो मत कर अभिमान
हंसा सुन्दर काया रो मती करजे अभिमान
एक दिन जाणो पड़सी रे मालिक रे दरबार ||1||
गर्व वास में दुःख पायो जब हरी से कीनि पुकार ।
पलभर भूलु नाही रें कवल वचन किरता ।।2।।
आकर के संसार में ते कबू न भजियो राम ।
तीर्थ व्रत नहीं कीया रे ते कियो नहीं सुकृत काम ।।3।।
कुटुम्ब कबीलो देख के ते गर्व कियो मन मांय ।
अंत समय एक लड़की गाड़ी करले भव में दान ।
वेद सुरतिया कहते है आसी तेरे काम ||4||
पापिडा रे मुख सूं राम नहीं निकले, पापिडा रे मुख सूं राम नहीं निकले पापिडा रे मुख सूं राम नहीं निकले पापिडा रे मुख सूं राम नहीं निकले,पापिडा रे मुख सूं राम नहीं निकले