साखी – तारण हार थला शिर आयो
तारण हार थलां शिर आयो, जे कोई तिरै सो तिरियो जीवन।
जेजीवड़ा को भल पण चाहो सेवा विष्णु की करियो जीवन।
मिनखा देही पड़े पुराणी भले न लाभै पुरीयो जीवन । अड़सठ तीरथ एक सुभ्यागत घर आए आदरियो जीवन ।
देवजी री आस विष्णु जी री संपत कूड़ी मेर न करियो जीवन ।
रावां सू रंक करे राजिंदर हस्ती करे गाडरियो जीवन । ऊजड़वासा वसे उजाड़ा शहर करे दोय धरियो जीवन ।
रीता छाले छला रीतावै समन्द करे छीलरियो जीवन ।
पाणी सुं घृत कुड़ीसु कुरड़ा सो घी ता बाजरियो जीवन ।
कंचन पालट करे कथीरो खल नारेल गिरियो जीवन ।
पांचा कोड़या गुरू प्रहलादों करणी सीधो तरियो जीवन ।
हरिचंद राव तारा दे रानी सत दूं कारज सरीयो जीवने ।काशी नगरी मां करण कमायो साह घर पाणी भरियो जीवने।
पांच पांडु कुंता दे माता अजर घणे रो जरियो जीवन ।
सत के कारण छोड़ी हस्तिनापुर जाय हिमालय गलियो जीवन।
कलियुग दोय बड़ा राजिंदर गोपीचंद भरथरियो जीवन ।
गुरू बचने जो गूंटो लीयो चूको जामण मरयो जीवन ।
भगवी टोपी भगवी कथा घर घर भिक्षा ने फिरयो जीवन । खांडी खपरी ले नीसरियो धोल उजीणी नगरियो जीवन ।
भगवी टोपी थल सिर आयो जो गुरू कह सोकरियो जीवन । तारण हार थलां सिर आयो, जे कोई तीरे सो तिरियो जीवन।
साखी – बाबो जंभू दीपे प्रगट्यो
बाबो जंबू दीप प्रगट्यो चोचक हुवो उजास,
आप दीठो केवल कथै जिहिं गुरू की हम आस ।।1।।
बलि जाऊं जांभेजीरे नाम ने साधा मोमणा रो प्राण आधार।
थे जारे हिरदे वसो ते जन पहुंता पार ।।2।।
समराथल रलि आवणा, जित देव तणो दीवाण ।
परगटियो पगड़ो हुओ, निस अंधियारी भांण ।।3।।
एक लवाई थली खड़यो, करत सभी मुख जाप ।
स्वयम्भू का सिवंरण करै, जो जपै सोई आप ।।4।।
भूख नहीं तिसना नहीं, गुरू मेहली नींद निवार ।
काम क्रोध वियापै नहीं, जिहिं गुरु की बलिहारी ।I5।।
भगवी टोपी पहरंतो, गहि कथा दस नाम ।
झीणी बाणी बालंतो, गुरू वरज्यो वाद विराम ।।6।। सिकंदर पर मोधियो, परच्यो मोहम्मद खान ।
राव राणा निवं चालियां, सांभल केवल ज्ञान ।।7।।
मध्यम से उतम किया खरी घड़ी टकसाल ।
कहर क्रोध चुकाय के गुरू तोड़यो माया जाल ।।8।।
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सांवरिया तेरे दीदार ने, दीवाना कर दिया: भजन (Sawariya Tere Deedar Ne Deewana Kar Diya)
कैंलाश शिखर से उतर कर: भजन (Kailash Shikhar Se Utar Kar)
सीप बसे मंझसायरा ओपत सायर साथ,
रैणायर राचे नहीं अधर की आश ।।9।।
जल सारे विण माछला जल बिन मच्छ मर जाय ।
देव थे तो सारो हम बिना तुम बिन हम मर जाय ।।10।।
वोहो जल बेड़ी डूबता बूड़ नहीं गवार ।
केवल जंभे बाहरो म्हाने कोण उतारे पार ।।11।।
हंसा रो मानु सरोवरां कोयल अम्बाराय ।
मधुकर कमल करे तेरा साधु विष्णु के नाम ।।12।।
जल बिन तृसना न मिटे अन्न बिन तिरपत न थाय ।
केवल जंभे बाहरो म्हाने कोण कहे समझाय ।।13 ।।
पपैयो पीव पीव करे बोली सहे पीयास ।
भूमि पड़ियो भावे नहीं बूंद धर की आशा ।।14 ।।
ठग पोहमी पाहण धणां मेल्ही दूनी भूलाय ।
पाखड कर परमन हड़े तहां मेरो मन न पतियाय ।।15।।
गुरू काच कथीर ने राचही विणज्या मोती हीन।
मेरो मन लागो श्याम सू गूदड़ियों गुणा को गहीर ।।16।। निर्धनियां धन वाल्हमो किरपण वाल्हो दाम ।
विखियां ने वाली कामणी तेरा साधु विष्णु के नाम ।।17।।
धन्यरे परेव बापड़ा थारो वासो थान मुकाम ।
चूंण चूगे गुटका करे सदा चितारे श्याम ।।18||
अम्बाराय बधावणां आनन्द ठामो ठाम ।।
श्याम उमाहो मांडियो, पोह कियो पार गिराम ।।19।।
बोल्यो गुरू उमावड़ो कर, मन मोटी आस ।
आवागवण चुकाय के, दो अमरापुर बास ।।20।।
अवसर मिलियो मोमणा, भल मेलो कब होई।
दुःखी बिहावै तुम बिना हरि बिन धीर न होय ।।21।।
कांही के मन को धणी, कांहि के गुरू पीर ।
“विल्ह” भणै विश्नोइयां, आपा नांव विष्णु के सिर ।।22।।
तारण हार थला शिर आयो, तारण हार थला शिर आयो, तारण हार थला शिर आयो, तारण हार थला शिर आयो, तारण हार थला शिर आयो