झाली रानी का जाम्बा सरोवर पर आना
नाथोजी उवाच- हे शिष्य जाम्बोलाय की महिमा को चित्तौड़गढ़ के राणा सांगा एवं उनकी माता झाली रानी ने सुनी। जाम्बोजी से साक्षात्कार तो पूर्व में दोनों कर चुके थे। किन्तु जाम्बा सरोवर का दर्शन स्पर्श करना चाहते थे। उन्हें ज्ञान हुआ कि इस समय श्रीदेवजी तालाब खुदवा रहे हैं छ: महीने से वहीं पर ही है, अच्छा अवसर था।
रानी अपने बेटे से कहने लगी- हे बेटा। यदि तुम्हें राजकाज में फुर्सत हो तो एक बार जाम्बोलाय तालाब में स्नान करने की मेरी प्रबल इच्छा है। वहीं पर ही श्री विष्णु जाम्भोजी का दर्शन भी सुलभ हो सकेगा। सांगा कहने लगा-हे माताजी। इस समय मुझे राजकार्य में समय नहीं है मैं फिर कभी जाउंगा। आप चली जाइए। मैं आपकी सेवा के लिए कुछ सेवकों को भेज दूंगा। हम राज घराने के लोग हैं हमें वहा देवजी के पास खाली हाथ नहीं जाना चाहिये जो तुम उचित समझो भेंट लेकर अवश्य ही जाओ।
झाली रानी अपने सेवकों के साथ चित्तौड़ से एक संदूक में जाम्भोजी के लिए दिव्य भेंट लेकर चली थी। सहज रूप से चलते हुए सिरियारी गांव में तम्बू लगाया। भोजनादिक करने के पश्चात रानी एवं उनके सेवक सो गये। रात्रि में मेणा लोग जाम्भोजी की भेंट सन्दूक चुरा ले गये। रानी ने जम्भगुरु को याद किया। हे देव आपको दी जाने वाली भेंट चोर ले गये यह कैसे हो सकता है।
अनाधिकारी चोर आपकी भैंट को छू सके । यदि ऐसा हुआ तो आपकी सिद्ध का क्या होगा? ये आठ चोर थे जो चोरी कर ले गये। जाम्भोजी के प्रकोप के भाजन आने। जाम्भोजी ने उन्हें शिक्षित करने हेतु अंधा कर दिये। पांच दिन तक अंधे हो रहे। आंखे नहीं खुली। तब सचेत हुए और सन्दूक ज्यों की त्यों ले जाकर रानी को सौंप दी तभी उनकी आंखे खुली।
रानी से उन चोरों ने प्रार्थना की कि हे रानीजी! आप हमें क्षमा करें, हमने जाम्भोजी की करामात देख ली है। आप देवो क्षमा को मूर्ति है, हमारी नादानी पर ध्यान नहीं देगी। अब हमें छुट्टी देवें, पुनः ऐसी भूलना करेंगे।
झाली रानी वहां से चलकर सम्भराथल आयी, संभराथल पवित्र भूमि का दर्शन किया, तीन रात | विश्राम कर वहां से झी झाले साथरी का दर्शन किया। वहां से चलकर एक रात्रि खिंदासर में विश्राम किया वहां पर उदोजी के दर्शन हुए। वहां से जैसला तथा भीयासर होते हुए जाम्बोलाव तालाब पर रानी पंहुची।
सतगुरुदेव जाल वृक्ष के नीचे कमल हासन पर विराजमान थे। दिव्य प्रेमरूपी भेंट सतगुरु के आगे रखो। हाथ जोड़कर प्रणाम किया। झाली अपने स्वामी साक्षात् विष्णु का दर्शन करके अतिप्रसन्न हुई। जाम्बेशर की आज्ञा से जाम्भोलाव में स्नान करके अपने को पवित्र किया। तालाब की कुछ दूरी पर तम्बू तनवाये सांयकाल में संतों को निमंत्रण देकर जागरण करवाया। प्रात: काल श्री जाम्बेश्वरजी के कर कमलों से कलश की स्थापना करके पाहल अमृत का पान किया। अनेकों प्रकार के मिष्ठान्न भोजन संत भक्तों को माया, वस्त्र दान दिया।
सौ रूपया की मिट्टी निकलवायो। तालाब के चारों तरफ वस्त्र बिछा करके महोत्सव किया। वही वस्व संतों को प्रसाद के रूप में प्रदान किया। इस प्रकार से झाली रानी ने सूत फेराया। वस्त्र दान करके अपने जीवन को सफल किया। इस प्रकार से झाली रानी ने आठ दिनों तक जाम्बोलाव पर निवास किया और श्रीदेवी से आज्ञा लेकर वापिस प्रस्थान करते समय पूछा
झाली राणी पूछियो, देव तणे दरबार।
अयोध्या में आनन्द घणा, सुखी किसा करतार।
श्रीदेवी ने झाली के प्रति शब्द सुनाया
शब्द-111
ओ३म् खरड़ ओढ़ीजै, तूंबा जीमीजै, सुरहै दुहीजै।
कृत खेत की सींव मलीजै, पीजै ऊंडा नीरूं।
सुरनर देवां बंदी खाने, तित उतरीबा तीरूं।
भोले भाले टोलम टाइम, ज्यूं जाणो त्यूं आणो।
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तुलसी विवाह मंगलाष्टक (Tulsi Mangalashtak)
मैं बाचा दई प्रहलादा , चेलो गुरु लाजै।
छोड़ तेतीसूँ बाड़े दीन्हीं, तिनकी जात पिछाणो।
झाली रानी ने पूछा हे देव। अब आप यहां बागड़ देश में कैसे हो? पूर्व जन्म अयोध्या में तो बड़े आनन्द में थे।
श्रीदेवी ने शब्द सुनाते हुए कहा- यह बागड़ देश तथा यहां के लोग एवं समय का प्रभाव ये अपना विशेषता तो प्रगट करेंगे ही। इस समय तो यहां पर खरड़-मोटा उनी-सूती कपड़ा ओढ़ा जाता है किन्तु अयोध्या में तो ऐसा नहीं था। वहां पर तो मखमल के वस्त्र देव पहने जाते थे।
यहां पर भोजन के लिए तूंबा जो कड़वा होता है वह भी खाया जाता है। किन्तु वहां अयोध्या में अमृत भोजन था। यहां पर भ देश में सुरह गाय का दूध दूहा जाता है। किन्तु अयोध्या में तो कामधेनु थो, इच्छित दूध देने वालो। यहा की गउवें अल्प मात्रा में दूध देती है। वहां त्रेतायुग में तो अयोध्या में हम थे वहा पर तो सम्पूर्ण धरती ही हमारी थी।
समुद्र ही सीमा थी। किन्तु यहां कलयुग के बागड़ देश में सीमाएं बहुत ही छोटी हो गयी है। अपनी ही खेत की सीमा में ही रहना होता है। पृथ्वी के छोटे छोटे टुकड़े हो गये हैं। भूमि के लिए मर रहे हैं। उस समय रामावतार में ऐसा नहीं था। पीने के जल का अभाव यहां पर है, जल मिलना दुर्लभ है बहुत ही गहराई में खोदेने से जल प्राप्त होत है वही जल पिया जाता है किन्तु उस समय राम रूप में हम थे तो जल सर्वत्र सुलभ था। इस समय जल नीचे चला गया है तथा कहीं पर खारा भी हो गया है। उस समय मधुर स्वच्छ जल सुलभ था।
उस समय त्रेतायुग में तेतीस प्रमुख देवता रावण की कैद में बन्द थे। रावण उनसे अपनी इच्छानुसार कार्य लेता था। सूर्य देवता रावण की रसोई पकाता है। अग्नि देवता कपड़े धोता था, पवन देवता बुहारी देता था। ब्रह्मा देवता आटा पीसते थे। रोग बुढ़ापे को रावण ने बांध रखा था। मृत्यु को कुएं में डाल रखी थी। उनको मुक्त करवाने के लिए मुझे वनवास हुआ, सीता का हरण हुआ, रावण की मृत्यु हुई, वे लोग पार उतर गये इसलिए ही लंका में एकत्रित हुए थे। वह राम रावण युद्ध पार उतारने का किनारा था।
हे झाली। उस समय तो हम भी इसी प्रकार से रहे अत्यंत सुखी थे। द्वापरयुग में भी गुरु जाम्भोजी कहते हैं कि मैं भोलम भालम टोलम टालम के रूप में आया था। मैनें देखा था कि उस समय मथुरा के लोग गोप-ग्वाल बाल, अत्यंत भोले भाले सरल जीवन जीने वाले हैं। उनके साथ रहना मुझे अच्छा लगा था वहां पर वृन्दावन में मैनें रास रचाई थीं वह तो अत्यंत ही मोहक थी। ब्रह्म जीव का साक्षात् करने वाला वह दिव्य खेल था। मैनें ऐसे ही समझा था, ऐसे ही वो लोग अधिकारी थे। वैसा ही दिव्य रूप कृष्ण का धारण करके मैं आया था। वहां के दिव्य आनन्द का तो आर पार ही नहीं है।
हे रानी! मैने ये अवतार क्यों लिये। इसमें भी काई कारण अवश्य ही है। जब सतयुग में हिरण्यकश्यपू को मारने के लिए मैनें नरसिंह रूप धारण किया था। उस समय मैनें हिरण्यकश्यपु को मारा था और प्रहलाद को वचन दिया था कि तुम्हारे तैतीस करोड़ अनुयायियों का मैं चार युगों में उद्धार करूंगा इकवीस करोड़ तो तीन युगों में पार पंहुच गये अब कलयुग में बारह करोड़ अवशिष्ट है उनका उद्धार करने |
हेतु मैं आया हूं। यदि प्रहलाद चेले को दिया हुआ वचन में पूरा नहीं करूंगा तो सु चेलो और गुरु दोनों ही लज्जित हो जायेंगे। मैं उन बिछुड़े हुए प्रहलाद पंथी जीवों को जाति जानता हूं उस समय के वे जीव इस समय यहां बागड़ देश में जन्म लेकर आये हैं। उनके स्वभाव को मैं पहचानता हूं, उन्हीं जीवों का उ्ार करना मेरा परम कर्तव्य है। वे जीव भी यही बागड़ देश में शरीरों को धारण करके रम रहे हैं, मैं उनको पार पहुंचाउंगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है। गुरु शिष्य पहले तो प्रतिज्ञा करे फिर प्रतिज्ञा तोड़ दे तो दोनों हो लज्जित हो जाते हैं।
हे वील्हा। इस प्रकार से श्रीदेवी ने झाली रानी को उनके मन की शंका का निवारण करते हुए वहां से विदाई दी कपिल सरोवर खुदाई का कार्य श्री देवजी ने स्वयं करवाया और वापिस सम्भराथल चले आये। | लगातार छ महीने श्रीदेवी का जाम्बोलाव पर ही विराजमान रहना और ज्ञान, ध्यान,तीर्थ महातम्य की चर्चा करना ये सभी बातें मैंने तुझे बतलायी है।
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