जांगलू की कंकेड़ी धाम (Jangloo Dham)
नाथोजी कहते हैं- हे वील्हा! तुम्हारे यहां इस मंच में सम्मिलित होने से पूर्व, अभी ही कुछ दिनों की बात है कि गांव जांगलू की बरसिंगवाला तालाब के पास ही ककेहड़ी वृक्ष के जंगल में एक व्यक्ति भेड़ बकरियां चरा रहा था। वह व्यक्ति तालाब की सीमा के बाहर पश्चिम धोरे में एक कंकेहडी के नीचे बैठा हआ अपनी भेड़ बकरियों को चरा रहा था।
उस समय ज्येष्ठ का महीना कृष्ण पक्ष की एकादशी थी। उस ग्वाले ने अकस्मात एक योगी पुरुष को देखा। जो साक्षात् विष्णु स्वरूप जाम्भोजी सदृश ही था। कानों में आवाज सुनाई दी।
वह महापुरुष कह रहे थे – हे ग्वाला! तुम ऐसा करो कि जल्दी से जांगलू जाओ और गांव के लोगों से कहना कि कल द्वादशी तिथि है, वर्षा होने वाली है। तालाब में गोबर खात विखरा पड़ा है। सफाई का अभाव है। वर्षा के जल को गोबर खात अपवित्र कर देगा। शीघ्र ही गांव के लोग चले आये और तालाब की सफाई कर दें।
वह ग्वाला कहने लगा- है महाराज! आप की बात तो सत्य है किन्तु मैं यहां से भेड़ बकरियों को छोड़कर चला जाउंगा तो भेड़िये-नाहर आदि हमारे धन के खा जायेगा इनकी रखवाली कौन करेगा?
महात्माजी ने कहा- इनकी रखवाली मैं करूंगा। तूं जल्दी जा और वापिस लौटकर आजा। उस ग्वाले ने कहा- आप क्या भेड़ बकरी चराना जानते हैं? कैसे रखवाली करोगे जांगलू गांव यहां से तीन कोस दूर है। मैं जल्दी कैसे आ सकूँगा? अरे ग्वाले! तुम बहुत ही भोले हों मैं तो सभी जीव योनियों की रक्षा करता तुम्हारे ये कितने से जानवर है।
अब तुम देरी ना करो अतिशीघ्र जाओ और उनसे कह करके लौट आओ। वह ग्वाला उन सिद्ध पुरुष की बातों में आ गया और अपना पशु धन उनके हवाले करके भागता हुआ गांव आया और गांव के मुखिया वरसिंग के बेटे स्याणे से कहते हुए और तहां की सारी बातें बताते हुए उन्हें सचेत कर के दौड़ा दौड़ा वापिस आ गया।
जहां पर जिस कंकेहड़ी के नीचे छोड़कर गया था वहां आकर देखा तो कोई नहीं था। उस ग्वाले ने पैरों के निशान देखे किन्तु वे भी नहीं थे। ग्वाला आश्चर्यचकित हो गया कि यह क्या हुआ? क्या मैं स्वप्न तो नहीं देख रहा हूँ? मुझे क्या हो गया है, चलूं मेरे पशुधन को देखें, कहां गया होगा,अब तक जीवित है या नहीं? धोरे पर चढ़कर देखा कि वहीं पर ही पशुधन विचरण कर रहा है।
एक साधारण ग्वाले के समझ में कुछ नहीं आया। ग्वाला ही क्या, बड़े-बड़े योगी, यति, लोग निरंतर जिनका ध्यान, जप,पूजा,पाठ आदि करते हैं तो भी उनके समझ में कुछ नहीं आता। बुद्धि द्वारा अगम्य को बुद्धि द्वारा कैसे जाना जा सकता है। जांगलू गांव के लोगों ने स्याणे को अगुवा करके द्वादशी के दिन सूर्योदय के साथ ही तालाब सफाई का कार्य प्रारम्भ किया।
जब प्रात:काल में गये थे तो एक भी बादल नहीं था किन्तु हवन, यज्ञ, प्रसाद पूर्ण होते ही न जाने कहां से बादल उमडकर आये और लोगों के देखते ही देखते तालाब स्वच्छ जल से भर गया। उन सभी लोगों ने परमात्मा विष्णु जाम्भोजी को ही निमित्त कारण माना। वह काई अन्य साधारण योगी नहीं था वे तो विष्णु ही थे।
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इस प्रकार से समय समय पर अज्ञानान्धकार में सोये हुए जनों को जाग्रत करते आये हैं। उस दिन से लेकर आज पर्यन्त उसी गांव के लोग ठीक उसी समय पर उसी तालाब पर हाजिर होकर हवन-तालाब की सफाई आदि कार्य करते हैं। इन्द्र देवता को यज्ञ द्वारा प्रसन्न करके वर्षा करवाते हैं। हे वाला ! यह परचा भी अद्भुत ही था।
जाम्भोजी के अन्तर्धान होने के पश्चात लोगों को प्राप्त हुआ था। मैं समझता हूं कि आगे भी प्राप्त होता रहेगा। इस पवित्र जगह पर आने से ही पाप पंक धूल जायेगा शारीरिक, मानसिक, रोगों का निदान हो सकेगा। “श्रद्धावान लभते ज्ञानम्” श्रद्धावान पुरूष को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है। तर्क की कैंची से तो कुछ भी काटा जा सकता है।
मैं तुझे यह कहना चाहता हूं कि तुम कहीं दुर्भाग्यवश तर्क रूपी कैंची मत ले लेना। अन्यथा तो आत्मा परमात्मा आध्यात्मिक सुख से वंचित हो जाओगे। भगवान की लीला का आनन्द श्रद्धावान हृदय से ही लिया जा सकता है। कहीं ऐसा न हो कि तुम कुतर्क के जाल में पड़कर अपने को शुष्क बना लो।
इस प्रकार से गुरु शिष्य के संवाद के द्वारा जाम्भा पुराण पूर्णता की ओर अग्रसर हुआ है। अब आगे जाम्भोजी के शिष्यों द्वारा किया हुआ कार्य का अवलोकन किया जायेगा। सर्वप्रथम वील्होजी के कार्य एवं धर्म रक्षार्थ आंदोलन को देखेंगे। तत्पश्चात वील्होजी के शिष्य परम्परा एवं साहित्य संरचना तथा अन्य कार्यों के बारे में विचार किया जायेगा। इस पंथ ने कहां पर क्या क्या बलिदान दिया है ऐसे धर्मवीर सज्जनों का स्मरण किया जायेगा। यह जाम्भा पुराण का पूर्वार्द्ध पूर्ण हुआ।अब आगे उत्तरार्द्ध प्रारम्भ किया जा रहा है।
Chimpi Chola Dham, जांगलू की कंकेड़ी धाम (Jangloo Dham)