जम्भोजी ने सांणीया (भूत) को रोटू गाव से भगाया भाग 1

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   भूत सेवा साणिंया को रोटू गांव से उठाना भाग 1

जम्भोजी ने सांणीया (भूत) को रोटू गाव से भगाया
जम्भोजी ने सांणीया (भूत) को रोटू गाव से भगाया

जम्भोजी ने सांणीया (भूत) को रोटू गाव से भगाया

स्याणियो पेदड़ो कुम्भ पेदड़े को बेटो। गांव रोटू रह। जीह नै भूत लागो । उपंग की बात कहण लागो। एक विश्नोई की तरवार चोरी थी। मैंहदसर क रजपूत छान्य क कातर लाधौ । देसा परदेसा की बात कह। बीसनोइयां ने कह थे सीनान करो जको आधो सीनान थ।पहलू पाणी पीयो तो भीतरलौ सीनान हुव। पछै उपरलौ सीनान सुध्य बले। वीसन कै नाव मतल्यौ नह चै चै चैहमै चैहमै म चउ जाप करो। वीरम भादू डकराय जांभोजी क हजूरी आयो। साथै ल्यायो । जांभोजी श्री वायक कहै –

                             शब्द – 90

ओ३म् चोइस चेड़ा कालिंग केड़ा अधिक कलांवत आयसै।

 वै फेर आसन मुकर होय बैसैंला, नुगरा थान रचायसै।

 जाणत भूला महापापी, बहू दुनियां भोलायसैं।

दिल का कूड़ा कुड़ियारा, उपंग बात चलायसै।

 गुरु गहणा जो लैवे नाहीं, दश बंध घर बोसायसै।

आप थापी महापापी, दग्धी परलै जायसैं

 सतगुरु के बड़ें न चढ़ें, गुरु स्वामी ने भायसैं।

मंत्र बेलु ऋध सिध करसें, दे दे कार चलायसे।

 काठ का घोड़ा निरजीवता, सजीव करसै, तानैं दाल चरायसैं।

अधर आसन मांड बैसेंला, मूवा मड़ा हसांय सैं।

 जां जां पवन आसन, पाणी आसण, चंद आसण,

सूर आसण, गुरु आसन समराथले,

 कहै सतगुरु भूल मत जाइयो, पडोला अभै दोजखे।

गांव रोटू नागौर में विश्नोई बसते है, स्याणियों पेदड़ो जो कुम्भा का बेटा था। वही रोटू में ही रहता था। वन में सांढ-ऊटनी चराता था,एक दिन अशौच शरीर से वन में घूम रहा था,उसको कोई भूत-प्रेत चिपक गया था। उपंग की बात यानि अजब गजब की बात मानव द्वारा अदृष्ट बात कहने लगा।

जैसे- एक विश्नोई की तरवार खो गयी स्याणिये ने तुरंत बतला दी कि मैहदसर में एक राजपूत की छान-झोंपड़े में छिपा कर रखी गयी है। किसी की गाय किसी की भैंस आदि खो जाती तो सांणियां तुरंत बतला देता। इस प्रकार से स्यांणिये ने पूरे पन्द्रह परचे दिये। देश प्रदेश की सभी देखी अनदेखी बात बता

देता था।

 विशनोईयों ने पूछा- कि भाई तुम कौन हो? स्याणिये ने बतलाया कि मैं तो जांभोजी का छोटा भाई हां. जाम्भोजी ने समराथल पर अवतार लिया है, मैं यहां पर हूं जो प्रचा आपको चाहिए वह आप मेरे यही पर ले लेवे, इस प्रकार से रोटू गांव के पास ही एक धली पर बैठा हुआ भूत प्रेत चरित्र करने लगा। लोग उन्हें स्याणा ज्ञानी कहने लगे क्योंकि लोगों की दृष्टि में तो वह ज्ञान की ही बात करता था । विशेष रूप से जाम्भोजी के चेले विश्नोईयों से कहने लगा-

आप लोग जो स्नान करते हो वह तो आधा स्नान है, प्रथम तो जल पीओ, उससे भीतर का स्नान होगा, जब भीतर का स्नान हो जाये तो फिर बाहर शरीर का स्नान करो तभी पूर्ण स्नान होगा। साणियां कहने लगा- आप लोग विष्णु का जप करते हो यह भी ठीक नहीं है यदि जप करना है तो चहमँ चहमैं इस मंत्र का जप करो, इससे तुम्हारा दुख कटेगा, इस प्रकार का पाखण्ड देखकर वीरम भादू जाम्भोजी के पास समराथल पर पहुंचा।

 हे देव! आप ही जैसा हमारी थली पर भी प्रगट हुआ है। जिस प्रकार से आप अलौकिक लीला करते है उसी प्रकार से वह भी करता है यदि कोई चोर चोरी करके चला जाता है तो सांणियां उसे तुरंत बतला देता है, वह तो आप का छोटा भाई भी अपने को बतला रहा है। आप ऐसे कितने भाई है। केवल प्रचे ही नहीं देता वह तो आपकी तरह ही धर्म भी बतलाता है, एक नया पंथ भी बतलाता है। वह आदेश देता है कि पहले जल पीओ पीछे स्नान करो और चहमैं चहमैं भजन करो।

जाम्भेश्वरजी ने कहा- यह तो चेड़ा है, अधोगति में पड़ा हुआ भूत-प्रेत योनि को प्राप्त जीव है। यदि वह तुम्हारे यहां रहेगा तो विष्णु पूजा धर्म नियमों में विघ्न पैदा करेगा उसे वहां से भगाना ही होगा। जांभोजी ने रोटू गांव के लिये प्रस्थान किया और गांव के निकट साथरी में खेजड़ी वृक्ष के नीचे आसन लगाया। गांव के लोग देव दर्शनार्थ आते और पूछते- 

              कहो देवजी, आप कितने भाई है? एक तो हमारो गली पर अवतरित हुआ है आप की तरह ही लीला कर रहा है किन्तु हमें पता नहीं है कि आपका पंथ सत्य है या आपके छोटे भाई का? वैसे तो आप बड़े सिद्ध है आपका भाई सैणा छोटा सिद्ध है वह तो सदा ही हमारी चली पर विराजमान है। ग्रामीण भक्तों के सरल सहज वचन सुनकर देवजी ने कहा- अच्छी बात है यदि छोटा भाई सिद्ध है तो किन्तु आप लोग जाओ और छोटे भाई को यही पर बुला लाओ।

 जाम्भोजी की आज्ञा को शिरोधार्य कर के चार जने सांणियां को बुलाने के लिये चले, कुछ लोग खेल देखने के लिए उनके साथ ही साथ चल पड़े। थलो पर जाकर देखा, सांणियां वहां पर बैठा ध्यान लगा रहा था। उन लोगों ने जाकर बतलाया और कहा- चलो ज्ञानीजी, आपके बड़े भाई आये है तुम्हें वही पर बुलाया है, ऐसी बात सुन कर सांणियां क्रोधित हो कर कहने लगा मुझे बुलाने वाला अनाड़ी कौन है?

विश्नोईयों ने कहा- रे सांणियां ऐसा क्यों बोलता है। जम्भ गुरु जी तो त्रिलोकी के नाथ है तूं उन्हें अनाड़ी कहता है? सांणियां ने कहा- जिसको गरज होती है वह अपने आप चला आता है। मुझे तो गर्ज नहीं है यदि जाम्भोजी को गर्ज है तो वै वही पर चलें आवे। मैं तो अपने आसन पर बैठा हूँ।

 जो आसन पर बैठा होता है, वही बड़ा होता है। दूसरे बाहर से आने वाले छोटे होते है, यदि उनको मिलने की इच्छा है तो यहां पर चले आवे अन्यथा वहां से चले जाये, मैं नहीं जा सकता क्योंकि यह मर्यादा के विरुद्ध है।

सांणियां इस प्रकार का जवाब सुन कर रोटू गांव के लोग वापिस आ गये और कहने लगे हे महाराज! वह तो आ नहीं रहा है और अपने को ही बड़ा सिद्ध आसन धारी बता रहा है, आप स्वयं ही वहां पर चलो। जाम्भोजी ने कहा- आप लोग दुबारा जाओ और उसका हाथ पकड़ कर धली से नीचे घसीट लेना, जब तक वहां थली पर बैठा हुआ है तभी तक ये बाते कर रहा है, वहां से घसीट लेंगे तो तुम्हारे साथ चल पड़ेगा तुम्हारा सामना नहीं करेगा।

वे लोग वापिस गये और जाकर कहा- अरे सांणियां तुम्हें जाम्भोजी ने बुलाया है, तुम्ही से कुछ बाते करनी है, तब सांणियां झुंझला कर विरम के मुख पर थाप चलाई उसी समय ही विरम ने सांणिये का हाथ पकड़ कर थली से नीचे घसीटा और जाम्भोजी के पास लेकर आ गये वह चुप-चाप बिना विरोध किये ही चला आया।

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जाम्भोजी ने कहा- दूसरा पंथ क्यों चलाता है, अपने को देवता क्यों कहता है, बिना स्नान किये जल क्यों पिलाता है, चहमैं चहमैं भजन क्यों बतलाता है चहमैं चहमैं भजन तो भूत पितर करते है।

सांणियां कहने लगा-मैं तो अपना जो सिद्धांत है वही बतलाता हूँ मुझे झूठा ओलाणा क्यों देते हो, |जो मैं हूं वही मैं कर रहा हूं इसमें आप मुझे दोषी नहीं कह सकते । जमाती लोगों ने पूछा- हे देव! हमें आश्चर्य हो रहा है कि यह खोयी हुई वस्तु कैसे बता देता है, यदि यह अभी आपके सामने से लोप हो जाये तो क्या होगा। तब जाम्भेश्वरजी ने शब्द सुनाते हुए कहा-

यह असली ताकतवर चेड़ा भूत प्रेत है। ये चेड़े चौबीस प्रकार के होते है। कलंकी वाले कीड़े जोंक की तरह दूसरों के चिपट जाते है। ये भूत प्रेत अधोगति प्राप्त साधारण जीव ही तो होते है किन्तु इनका वायु प्रधान शरीर होने से दूर दूर तक वायु के साथ समिलित हो कर जान लेते है तथा किसी अन्य मानवादि शरीर में प्रवेश कर जाते है फिर उनका खून जोंक की तरह चूसते है।

कुछ कला बाज लोग भी होते है जो अपनी कला द्वारा लोगों को मोहित करके अपनी पाखण्ड | क्रिया में सफल हो जाते है। कुछ लोग आसन लगा कर समाधि ध्यान का ढोंग कर के भी लोगों को ठगने | में सफल हो जाते है कुछ नुगरा गुरु विहीन मन मुखी लोग पेट भराई के लिये कहीं कोई मूर्ति की स्थापना कर लेते है ओर उसे ही देव कहते हैं,लोगो को भेंट चढावा चढाने के लिए प्रेरित करते हैं।

जानते हुए भी कि यह मूर्ति कोई देवता नहीं है फिर दूसरों को भूलावे में डालेंगे, ऐसे लोग तो महा पापी है, अनजान में पाप हो जाता है तो पापी है किन्तु जानते हुए पाप करता है, भूल करता है वह महा पापी है।

उपर से दिखावे के लिए तो सत्य का आचरण करते हुए मालूम पड़ते है किन्तु उनका दिल झूठ कपट वासना से भरा हुआ है ऐसे लोग उपंग बात उटपटांग बातें चलायेंगे गुरु के कथनानुसार तो जीवन यापन करेंगे नहीं किन्तु मनमुखी चलेंगे। अपनी कमाई का दसवां भाग दान देना चाहिये वह न कर के घर में ही अर्थ लगा लेंगे स्वयं ही मूर्ति की स्थापना करते है और स्वयं उसको नमस्कार करते है, ऐसे महा पापी दग्ध नरकों में गिरेंगे।

सतगुरु के द्वारा बताये हुए मार्ग पर तो चलेंगे नहीं, गुरु स्वामी की बात अच्छी नहीं लगेगी। ऐसे अज्ञानी जन मंत्र द्वारा, मिट्टी द्वारा रिद्धि सिद्धि दिखलायेंगे । कभी मंत्र द्वारा जल की कार दिला कर लोगों को भ्रमित करेंगे स्वकीय सिद्धि का प्रदर्शन करेंगे लकड़ी का घोड़ा बना कर उस निरजीव को सजीव कर के उसे हो सकता है कि दाल चरा दे। कभी कोई धरती के उपर अधर आकाश में आसन लगा कर बैठ जायेंगे।

मुरदे को हंसा सकेंगे, फिर भी हे लोगों । सावधान रहना। जब तक सूर्य का आसन, चन्द्र का आसन, पवन का आसन, जल का आसन मर्यादा स्थिर है ये सभी अपनी अपनी मर्यादा पर टिके हुए है तब तक जाम्भोजी कहते है कि मेरा आसन समराथल पर स्थिर है सतगुरु कहते है कि हे लोगो! भूल नहीं जाना अन्यथा तो दोरे नरक में गिरोगे। ऐ चौबीस प्रकार के चेड़ा आपको भूलावे में डाल सकते है, सावधान रहे।

रणधीर कह असा आयस्यै तो आंह ने किसो दोस। कीस आकीद रहेस्यै जांभोजी कह अता, थोक जाण्यस्यै नहीं। धरती मां वसत सूझयस्य नहीं, पानी ता घृत होयसी नहीं। परमन की लहस्यै नहीं,उरध र बाणी जाण्यस्यै नहीं, सुरग पहैली कहस्यै नहीं, केवल न्यांन की बात कहिस्यै नहीं, अति बात सतगुरु जांण, मेरा नहीं डीगस्यै, सतयुग में छाया दाग थो, मेर की छाया पड़े अति सतयुग क भूत नै सूझ ।

द्वापर में अगन्य दाग थो, वासदे की झल दीस अति दवापुर के भूत ने सुझ, कल्यजुग मां भौमी दाग थे मरद को बौल्यौ, गाय को रांभ्यो सुणित अतो कल्यजुग के वितर ने सुझ, अब वीतर नीसर गर्यो । ननेउ के कोहर क खेजड़ को डालौ भान्यौ, राव हमीर नै चिलत दिखाल्यौ।

 जाम्भोजी के हजूरी शिष्य रणधीर ने पूछा- हे देव। आपने जो शब्द कहा- मूा मड़ा हसायर्स, “काठ का घोड़ा निरजीव सरजीव कार्य” इत्यादि ऐसे कलाकार आयेंगे, विचित्र कर्तव करेंगे तो विचारे इस दुनिया का क्या दोष है? यही उनसे पीछे क्यों रहे।

जाम्भोजी ने समझाते हुए कहा- ये भूत प्रेत कलाकार अपनी ओकात के अनुसार ही जान पायेंगे, जो ईश्वरीय कर्म है वह ये नहीं कर पायेंगे इन्हें धरती में गड़ी हुई वस्तु दिखाई नहीं देगी। ये जल का घृत नहीं बना सकते, दूसरे के मन की बात नहीं बता सकेंगे और नहीं जान सकेंगे स्वर्ग पहेली मार्ग नहीं कह सकेंगे, | ये उपयुक्त बातें सतगुरु ही जानते है, ये भूत प्रेत नहीं, यही इनकी पहचान है। ब्रह्म वाणी नहीं जानते ।

 सतगुरु ने कहा- जो मेरा है, भक्त ज्ञानी है, भगवान का प्रेमी है वह तो अपनी मर्यादा को छोड़ेगा नहीं, दूसरे लोग ही इनके चक्कर में फंस जायेंगे। सतयुग में छाया अर्थात वन में ही मृत शरीर को छोड़ने की प्रक्रिया थी तब तो भूत प्रेतों को मेरू पर्वत की छाया जहां तक पडती थी उतना ही भूत को दिखता था प्रेता युग में जल का दाग धा यानि मृत शरीर को जल में बहाने का विधान था

तब तो एक समुद्र से दूसरे समुद्र के बीच में जितना फैसला है उतना भूत को दिखता था द्वापर में अग्नि का दाग था यानि मृत शरीर को अग्नि में जलाया जाता था तब तो अग्नि की ज्योति प्रकाश जहाँ तक दिखाई देता है उतना भूत को सुझता था। अब कलयुग में धरती को दाग है धरती में मुरदे को गाड़ा जाता है, इस समय मनुष्य की आवाज या गाय के रंभाने की आवाज जहां तक सुनाई देती है, वहीं तक भूतों को दिखता है अर्थात जहां तक धरती है वही तक दिखता है।

जाम्भोजी ने पूछा रे साणीयां मुलतान के दरवाजे पर क्या है? साणियां ने कहा- हे देवजी। दो घोड़े दौड़ रहे हैं। जिनका शरीर अति बलिष्ठ है। दुबारा जब लंका की बात पूछी तब कहने लगा- कि लंका के दरवाजे पर एक मालण बैठी हुई है, उसकी छबड़ी में चार नींबू है। देवजी ने दो नींबू उठा लिये और फिर पूछा- अब कितने है? सांणियां कहने लगा- अब दो हो दिख रहे है।

देवजी ने फिर उन दोनों नौंबुओं को मंगवा लिये तथा फिर पूछा अब कितने है? अब तो छबड़ी खाली है, किन्तु वे नौंबू कहां गये, सांणियां कहने लगा- ये तो मुझे पता नहीं है। देवजी ने अपने पास से दिखलाये और कहा- ये नींबू वो ही है या और? साणियां बोला है तो वही।

जाम्भोजी ने कहा- हे सांणियां ! तूं लंका मुलतान की बात तो बता देता है किन्तु तुम्हारे पास अति निकट की बात नहीं बता सकता, उसी समय ही उस सांणिये पेंदड़े के अंदर से प्रेत निकल गया। फि र उससे पूछा कि अब तुम्हें कितना दिखता है? सांणिये ने हाथ जोड़े- महाराज! अब तो जितना इन लोगों को दिखता है उतना ही मुझे दिखता है। जो अंदर बैठा हुआ देखता था वही बोलता था वह निकल के चला गया।

 जाम्भोजी ने बतलाया- अब वह भूत प्रेत ननेठ गांव के कुवे पर पहुंच गया है, एक खेजड़ी के डाले पर बैठा है और उसने पूरी ताकत लगा कर खेजड़े की डाली तोड़ डाली है अब वहां से भी चला गया है और फलौदी के राव हमीर  को चरित्र दिखलायेगा।

 वील्होजी ने पूछा- हे गुरु देव ! वह बिना शरीर की आत्मा हवा रूप में अति शीघ्र गमन कर जाता है, यह तो सत्य है किन्तु उस प्रेत ने फलौदी के राव हमीर को आगे क्या चरित्र दिखलाया? इन भूत प्रेतों की कथा द्वारा भी जाम्भोजी महाराज का दिव्य जीवन चरित्र सुनने को मिलता है। नाथोजी कहने लगे-

 जांभोजी ने हंकारो कियो, रणधीर कहे देवजी! क्यों रजपूत रजपूताणी ऊठ चडया, राव हमीर के दरबार गया फलोदी, रजपूताणी रावल गंज मां सौंपी, आकाश ने कूकड़ी बाही, तागो तागी उंचो चढयीं, हाथ ग बटका होय पड़या, रजपूताणी सती हुई, रजपूत पूर आयों, रजपूताणी रावल गंज मांही यों बलाय लाती, राव हमीर के मन मे इचरज हुवा, मां आम्ही ओठी चाडयो थे। औठी आयसी हंकारो कियो जदि ननेऊ के खेड़े को डालो भानी लुक गयीं, ननेक को ओठी आयसी, अंतरे दोय ओठियां आय हकीकत कहीं, लोग जमाती के पर्ची आयो, जाम्भोजी श्री वायक कहे-

जम्भोजी ने सांणीया (भूत) को रोटू गाव से भगाया भाग 2

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