श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गौ चारण लीला भाग 4
गुरु जम्भेश्वर भगवान गौ चारण लीला :
एक बात अवश्य ही मान्य है कि जब से यह बालक पीपासर में आया है तभी से हमारे यहाँ धन धान्य, गऊ आदि से परिपूर्ण हो गये हैं। यह तो हमारे लिए इन्द्र देवता या विष्णु से कम नहीं है। इसके आने के पश्चात तो हमारे यहाँ पर समय से वर्षा होती है। हमारी गायें पेट भरकर घास चरती है। हमारे धान के कोठे भर गये हैं। हमारी गायें भी पहले से कहीं अधिक दूध देती है। किसी प्रकार की आधी-व्याधी हमें नहीं सताती।
भगवान विष्णु से बस एक ही प्रार्थना है कि यह बालक अपनी धरती पर बना रहे। यहाँ से कहीं चला न जाये। एक महीना यहाँ न रहने से हमें कितना वियोग का कष्ट सहन करना पड़ा। हे भाईयों! यह या तो कोई परम योगी है, या शिव-ब्रह्मा-विष्णु में से कोई एक है। इनकी लीला तो अपरम्पार है। पहले की भांति अब की बार भी कहीं लोप न हो जाये। एक महीना यह बालक कहां रहा इस रहस्य को तो कोई नहीं जान सका।
वील्होजी उवाच:- हे गुरुदेव! आपने अभी अभी हमें बतलाया कि बाल्यावस्था में जाम्भेश्वरजी एक महीना तक लुप्त रहे। यदि आप बताना उचित समझें तो बताये कि कहाँ पर रहे। क्यों और कैसे रहे। उनका लुप्त रहने का क्या प्रयोजन था यदि अन्य कोई कथन करने योग्य वार्ता हो तो अवश्य ही बतलावें। आपसे अधिक वक्ता इस समय कोई मुझे दिखाई नहीं देता।
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नाथोजी उवाच:- एक माह तक जम्भेश्वर जी पाताल लोक में रहे। लाने हेतु रहे। भगवान ने जब नृसिंह रूप धारण करके प्रहलाद के अनुयायियों के उद्धार का वचन दिया था, उस वचन की पूर्ति हेतु वहाँ पर पंहुचे थे। कुछ तो यहाँ जम्बुद्वीप भग्तखण्ड के बागड़ देश में जन्म लेकर आ गये थे। तथा कुछ पाताल लोक में चले गये थे। उन्हें भी सचेत करके सद्पंथ के पथिक बनाया।
कलयुग में सर्वप्रथम पंथ की स्थापना जाम्भोजी ने पाताल लोक में ही की थी। उन्हें यही पंथ बतलाया था। जाम्भोजी तो सर्वसमर्थ अन्तर्यामी है। वे तो सभी के घट-घट की बात जानते हैं। बिछुड़े हुए जीवों की जाति से भी भली-भाँति परिचित है। म्हें खोजी थापण होजी नाहीं, खोज लहाँ धुर खोजूं।
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कैसे गये? यह प्रश्न हम साधारण शरीरधारी उठा सकते हैं। किन्तु उनका शरीर तो तेजोमय था। सम्पूर्ण सृष्टि की ज्योति तो एक ही है। ज्योति से ज्योति मिलकर ज्योतिस्वरूप से सर्वत्र व्यापक हो सकती है। यहाँ मृत्युलोक में भी रहते हुए कभी छाया नहीं झलकती थी। ज्योति के छाया कैसे हो सकती है। वह ज्योति ही जब मानव से वार्तालाप करने आती है तो मानव आकार धारण कर लेती है। इसके लिए अन्य चार तत्व आकाश वायु जल और पृथ्वी भी सूक्ष्म रूप से सम्मिलित हो जाते हैं।
गीता में प्रकृति स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया स्वयं ही अपनी प्रकृति को आधीन करके अनेक रूप धारण कर हैं। वैसे तो देखा जाये तो हमारी ऊर्जा शक्ति भी पाताल में ही छिपी हुई है। हमारा नाभि का क्षेत्र पाताल ही है। इसका स्पर्श करके ही अपनी सोयी हुई ऊर्जा शक्ति को जागृत किया जा सकता है। वहीं से लेते साक्षात्कार होगा, सर्वप्रथम अपनी ही शक्ति का पाताल में सोयी हुई ऊर्जा शक्ति जब प्राणायाम द्वारा जागृत होगी तभी ऊर्ध्वगमन करके सहस्रार को पहुंचेगी पाताल को पाणी आकाश कुें चढ़ायले तो भेटल गुरु का दर्शन।
कुछ समय तक, एक माह तक पाताल में हो रहना होगा। तभी हम प्रहलाद पंथ को सद्गुणी, सदवृत्ति को जागृत कर सकेंगे। अन्यथा मन को चंचलता हमें विचलित कर देगी। हमारा मूल पाताल ही है। नाभि सम्पूर्ण शक्तियों का केन्द्र है। मूल में प्रवेश करके ही जाम्भेश्वरजी ने अपना कार्यक्षेत्र प्रारम्भ किया था किन्तु साधारण ग्वाल बाल अशिक्षित ग्रामीण जन इस गंभीर बात को क्या जाने। वे तो कहने लगे कि कहाँ गये? कहाँ बैठे, कहाँ सोये, कुछ पता नहीं।
श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान गौ चारण लीला भाग 1